UP: सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, योगी सरकार से मांगा जवाब – कांवड़ यात्रा में QR कोड या धर्म की पहचान ? देखें पूरी खबर

कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए एक नए आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। राज्य सरकार ने कांवड़ मार्ग पर स्थित सभी ढाबों और रेस्टोरेंट्स को अपने प्रतिष्ठानों पर QR कोड लगाने का निर्देश दिया है। इसका उद्देश्य यात्रियों को पंजीकृत और सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराना बताया गया है। लेकिन इस आदेश को “डिजिटल धर्म आधारित प्रोफाइलिंग” बताया गया है और सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई है।
आदेश का विवरण: क्या है QR कोड योजना?
उत्तर प्रदेश सरकार ने यह निर्देश जारी किया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी खाद्य प्रतिष्ठान—चाहे वह ढाबा हो या रेस्टोरेंट—अपने बाहर एक विशेष QR कोड प्रदर्शित करें। इस कोड को स्कैन करने पर ग्राहक यह जान सकेगा कि उस दुकान का मालिक कौन है, उसका नाम, पता, लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन डिटेल क्या है। सरकार ने दावा किया है कि यह कदम खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता के मानकों को बनाए रखने की दिशा में है।
याचिका और याचिकाकर्ता: किसने और क्यों उठाई आपत्ति?
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि यह आदेश विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों के व्यापारियों को निशाना बनाता है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इससे उनकी धार्मिक पहचान सार्वजनिक हो सकती है, जिससे उनके खिलाफ सामाजिक भेदभाव या भीड़ आधारित हिंसा की संभावना बढ़ जाती है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया: निजता और धर्मनिरपेक्षता पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है और अगले सप्ताह तक जवाब मांगा है। अदालत यह जांचेगी कि क्या यह आदेश संविधान में निहित निजता के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को 2023 में खारिज किए गए एक पुराने आदेश की याद दिलाई जिसमें दुकानों पर “मालिक का नाम और जाति” लिखने का निर्देश दिया गया था। तब भी अदालत ने इसे असंवैधानिक करार दिया था।
चिंताएं: QR कोड या धार्मिक पहचान का सार्वजनिक खुलासा?
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि QR कोड योजना खाद्य सुरक्षा से ज्यादा धार्मिक पहचान उजागर करने का औजार बन सकती है।
कांवड़ यात्रा में अक्सर स्वयंभू निगरानी समूह दुकानों की पहचान करके “जांच” करते देखे गए हैं।
यह आदेश संविधान के मूल मूल्य—निजता, धर्मनिरपेक्षता और समानता—के विरुद्ध हो सकता है।
सरकार का पक्ष: तकनीक के जरिए फूड सेफ्टी सुनिश्चित करने की पहल
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि यह आदेश किसी भी प्रकार से धार्मिक भेदभाव के उद्देश्य से नहीं दिया गया है। सरकार के अनुसार, यह कदम “फूड सेफ्टी कनेक्ट ऐप” के तहत लागू किया गया है, जो यात्रियों को पंजीकृत और साफ-सुथरा भोजन देने की कोशिश है। सरकार ने दावा किया कि QR कोड से स्वास्थ्य और स्वच्छता की निगरानी आसान होगी और इससे भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगेगी।
आगे की राह: संवैधानिक परीक्षण की घड़ी
अब सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर विस्तार से सुनवाई करेगा। यदि अदालत इसे निजता और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन मानती है, तो इस आदेश पर रोक लगाई जा सकती है, जिससे एक नई संवैधानिक मिसाल स्थापित होगी।
यह मामला केवल एक तकनीकी QR कोड तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका संबंध इस व्यापक प्रश्न से है कि क्या सरकार आधुनिक तकनीक के नाम पर धर्म विशेष के लोगों की पहचान सार्वजनिक कर सकती है?