ये कैसा सौदा ? प्रधान पति ने दरोगा को सरेआम धमकाया, कहा – ‘1 लाख दिया है…अब बैठ जा!’.. वीडियो से बवाल

झांसी जिले के उल्दन गांव में एक चौंकाने वाला वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें एक ग्राम प्रधान पुलिस इंस्पेक्टर को सरेआम फटकारते हुए कहा जा रहा है कि “तुम नीचे बैठो, तुम्हारे जैसे कई दारोगा देखे हैं।” यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से फैल रहा है और पुलिस तथा ग्राम व्यवस्था के मध्य टकराव को उजागर कर रहा है ।

प्रधान ने पकड़ा थानेदार को, रोका युवकों की गिरफ्तारी

वीडियो में प्रधान नाराज़गी जताते हुए थानेदार को जमीन पर बैठने और शांत बनने के लिए कहते हुए, युवकों की गिरफ्तारी रोकता दिख रहा है। ग्रामीण प्रधान का कहना है कि युवकों की धरपकड़ के पहले गांव वालों से बात-जानकारी लेनी ज़रूरी थी । यह दृश्य ग्रामीण समुदाय और पुलिस के बीच बड़े स्तर पर असंतोष को दर्शाता है।

गांव में घुसपैठ, पंचायत या दबंगई?

स्थानीय सथानों के अनुसार, यह घटना तब सामने आई जब पुलिस युवकों को गिरफ्तार करने पहुंची, लेकिन प्रधान ने सुनवाई की मांग करते हुए थानेदार को रोक दिया। प्रधान का तर्क था कि गिरफ्तार किए जाने वाले लोग गांव के ही हैं और उनकी कोई गलती होगी तो पहले ग्रामीणों को मौके पर बुलाकर सुनना चाहिए था। यह विवाद अब वीडियो के वायरल होने के बाद विरोध और समर्थन दोनों आधार पर चर्चा का विषय बन गया है ।

पंचायत पर सवाल, पुलिस पर रोक

सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर कई लोग इस वीडियो को देखते हुए कह रहे हैं कि “पंचायत नहीं, दबंगई हो रही है”, जबकि कुछ का मानना है कि “राजनैतिक स्वायत्तता की रक्षा” की जड़ में प्रधान खड़े थे। कई उपयोगकर्ताओं ने प्रधान के रवैये को कानून का अपमान बताया, वहीं अन्य ग्रामीणों की चाह व्यक्त की कि पहले गांव की बात सुनी जानी चाहिए थी।

क्या बोले अधिकारी

झांसी आर्यवाल थाना या जिला पुलिस अफसरों ने अभी तक इस घटना पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। आरोपी प्रधान या थानेदार पर किसी प्रकार की कार्यवाही की जानकारी फिलहाल उपलब्ध नहीं है। वहीं, पुलिस में अटकलें तेज हैं कि क्या वीडियो में नजर आ रही घटना का कोई गंभीर अनुसंधान होगा, या इसे सामान्य पंचायत विवाद ही माना जाएगा।

यह मामला स्पष्ट रूप से राजनीतिक दबदबे, ग्रामीण स्वायत्त सत्ता और पुलिस के बीच जूझने वाले संतुलन को दर्शाता है। जब पंचायत की अवैध सीमा पुलिस के सामने आ खड़ी हो जाती है, तो यह सवाल बनता है – क्या ग्राम प्रधान कानून से ऊपर है या पुलिस की कार्रवाई से पहले सामाजिक सहमति भी जरूरी है?

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