आज का इतिहास

आधी रात को ट्रैक पर खड़ी ट्रेन में जा घुसी थी दूसरी ट्रेन, सुबह हुई तो हर तरफ बिखरे थे लोगों के शरीर के टुकड़े

20 अगस्त 1995। रात के 2 बजकर 46 मिनट। दिल्ली जाने वाली कालिंदी एक्सप्रेस फिरोजाबाद से निकली ही थी। ट्रेन को चला रहे थे लोको पायलट एस. एन. सिंह। उन्होंने देखा कि ट्रैक पर एक नीलगाय खड़ी है। इससे पहले कि सिंह ट्रेन को रोक पाते, ट्रेन नीलगाय से जा टकराई। इस टक्कर से ट्रेन के वैक्यूम ब्रेक एक्टिव हो गए और ट्रेन अपनी जगह पर ही खड़ी हो गई।

इधर, फिरोजाबाद स्टेशन के वेस्ट केबिन में फोन बजा। केबिनमैन गोरेलाल ने फोन उठाया। फोन पर असिस्टेंट स्टेशन मास्टर एस.बी. पांडेय थे। उन्होंने गोरेलाल से पूछा कि ट्रैक क्लियर है? गोरेलाल ने जवाब दिया- हां। पांडेय ने पुरुषोत्तम एक्सप्रेस को हरी झंदी दे दी, जिसे उसी ट्रैक से गुजरना था जिस पर कालिंदी एक्सप्रेस खड़ी थी।

100 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा रफ्तार से पुरुषोत्तम एक्सप्रेस फिरोजाबाद स्टेशन से निकली। थोड़ा ही आगे चलकर ड्राइवर ने देखा कि ट्रैक पर एक ट्रेन पहले से खड़ी है। ड्राइवर के पास इमरजेंसी ब्रेक लगाने का ऑप्शन था, लेकिन वो जानते थे कि इतनी रफ्तार में ब्रेक लगाए तो ट्रेन के सभी डिब्बे एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाएंगे। उनके पास अब ज्यादा कुछ करने का ऑप्शन नहीं था। कुछ ही सेकेंड्स बाद पुरुषोत्तम एक्सप्रेस कालिंदी एक्सप्रेस में पीछे से जा घुसी।

टक्कर इतनी भयानक थी कि ट्रेन के डिब्बे पूरी तरह चपटे हो गए।

ट्रेन की बोगियों में सो रहे सैकड़ों लोगों को जागने का मौका ही नहीं मिला। बोगियां एक-दूसरे के ऊपर चढ़ गईं। सैकड़ों लोग इन बोगियों में पिस गए। जैसे-जैसे सूरज निकला, हादसे की भयावहता भी सामने आने लगी। ट्रैक के आसपास शरीर के अंग बिखरे पड़े थे। किसी बॉडी का हाथ गायब था तो किसी का पैर। किसी का केवल धड़ ही बचा था। अगले 3 दिन तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया। कई बॉडी ऐसी थी, जिन्हें पहचानना भी मुश्किल था। ट्रैक के पास पड़े शरीर के अंग इकट्ठे किए गए, इन्हें एक साथ जलाया गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 305 लोग मारे गए और 393 घायल हुए।

एक के बाद एक 3 लोगों की लापरवाही

कालिंदी एक्सप्रेस के ड्राइवर एस. एन सिंह: ट्रैक पर ट्रेन रुकने के बाद ड्राइवर की जिम्मेदारी थी कि वो नजदीकी स्टेशन को इसके बारे में बताए, लेकिन उन्होंने इसकी सूचना किसी को नहीं दी। उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि केबिनमैन ने ट्रेन की लाल लाइट को देखकर समझ लिया होगा कि ट्रेन रुक गई है।

केबिनमैन गोरेलाल: गोरेलाल केबिन से बाहर निकलकर देखते तो उन्हें ट्रेन का पिछला हिस्सा दिख जाता। साथ ही केबिन में एक पैनल लगा होता है। जब ट्रेन सिग्नल को पार करती है तो इस पैनल पर हरी लाइट जलती है। गोरेलाल ने इस पैनल पर भी ध्यान नहीं दिया।

असिस्टेंट स्टेशन मास्टर एस. बी. पांडेय: पांडेय ने गोरेलाल से ट्रैक क्लियर होने के बारे में पूछा। इसके बाद उनकी जिम्मेदारी थी कि अगले स्टेशन से भी पूछते कि ट्रेन वहां पहुंची या नहीं। उन्होंने भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई।

1979: चौधरी चरण सिंह का इस्तीफा

1977 में देश में इमरजेंसी खत्म हुई और चुनाव हुए। इमरजेंसी की वजह से विलेन बनीं इंदिरा गांधी बुरी तरह चुनाव हारीं और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। उन्होंने चौधरी चरण सिंह को उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पद की जिम्मेदारी दी, लेकिन ये सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी। 27 जुलाई 1979 को मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।

15 अगस्त 1979 को तिरंगा फहराने जाते चौधरी चरण सिंह।

अगले ही दिन कांग्रेस के समर्थन से चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 20 अगस्त तक का समय मिला। जैसे-जैसे ये तारीख नजदीक आती जा रही थी, चरण सिंह को खबरें मिलने लगी थीं कि इंदिरा गांधी विश्वासमत के दौरान उनका समर्थन नहीं करेंगी। कहा जाता है कि इंदिरा चाहती थीं कि उनके और संजय गांधी के खिलाफ सभी मुकदमे वापस लिए जाएं।

20 अगस्त के दिन चरण सिंह को संसद में बहुमत साबित करना था। वे संसद जाने के लिए घर से निकले, लेकिन सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंच गए। उन्होंने राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को इस्तीफा सौंप दिया। चौधरी चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने कभी संसद का सामना नहीं किया। दो दिन बाद राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग कर दी।

1897: मलेरिया फैलाने वाले मच्छर की पहचान हुई

आज ही के दिन 1897 में डॉक्टर रोनाल्ड रॉस ने मलेरिया फैलाने वाले मच्छर मादा एनाफिलीज की पहचान की थी। वे मद्रास प्रेसिडेंसी में मलेरिया पीड़ित लोगों का इलाज कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने मलेरिया मरीज के शरीर पर मौजूद एक मच्छर की कोशिका का अध्ययन किया।

कोलकाता की लेबोरेटरी में रोनाल्ड रॉस। सोर्स – wellcomecollection.org

इस मच्छर में प्लास्मोडियम पैरासाइट मौजूद था, जो खून में मिलकर मलेरिया की वजह बनता है। 1902 में मलेरिया पर की गई स्टडी के लिए रॉस को मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार दिया गया।

20 अगस्त को इतिहास में इन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से भी याद किया जाता है…

1988: भारत और नेपाल में 6.5 तीव्रता का भूकंप आया। इसकी चपेट में आकर करीब 1 हजार लोग मारे गए।

1974: फखरुद्दीन अली अहमद भारत के 5वें राष्ट्रपति बने।

1953: सोवियत संघ ने दुनिया को बताया कि उसने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है। ये परीक्षण 12 अगस्त को कजाकिस्तान में किया गया था।

1920: डेट्रॉयट में पहले कॉमर्शियल रेडियो स्टेशन की शुरुआत हुई।

1914: पहले विश्वयुद्ध में जर्मन आर्मी ने ब्रसेल्स पर कब्जा किया।

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