रायबरेली और अमेठी से गांधी परिवार नहीं लड़ेगा चुनाव, इन ठाकुर प्रत्याशियों पर लगा सकती है दांव।

रायबरेली और अमेठी से गांधी परिवार ने दूरी बना ली है और परिवार का कोई भी सदस्य अपनी इन परंपरागत सीटों से आगामी चुनाव नहीं लड़ेगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों ने ही अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है।

उत्तर प्रदेश: पिछली बार अमेठी में राहुल गांधी की हार और हाल ही में सोनिया गांधी के राज्यसभा सदस्य बनने के बाद से यह सवाल उठ रहा था कि अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस किसे मैदान में उतारेगी। इन अटकलों पर विराम लगता दिख रहा है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि अमेठी और रायबरेली सीट पर कैंडिडेट का फैसला अगले 24-30 घंटे में हो जाएगा। पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने दोनों सीटों पर कैंडिडेट तय करने का अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दिया है।यह पूछे जाने पर कि निर्णय लेने में देरी क्यों हो रही है और क्या कांग्रेस राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को मैदान में उतारने से डर रही है। रमेश ने कहा- कोई देरी नहीं हो रही है। क्या भाजपा ने रायबरेली में अपने उम्मीदवार की घोषणा की है? स्मृति ईरानी मौजूदा सांसद हैं कोई भी डरा हुआ नहीं है। चर्चा चल रही है। तीन मई तक का समय है।

आखिर कांग्रेस ठाकुर बिरादरी के प्रत्याशियों पर क्यों लग रही है दांव –

रायबरेली राजनीति के साथ ही सामाजिक जुड़ाव के कारण अरखा घराने के लोगों को हमेशा इज्जत मिली। राजा अजय पाल सिंह के पिता राजनीति में अजेय रहे। उनके बेटे भी हमेशा जनता के बीच ही रहते हैं। वह भले ही अभी विधायक नहीं हैं, मगर अभी भी स्थानीय लोग अपनी समस्याएं लेकर उन तक पहुंचते हैं। वह भी जनता का दुख-दर्द दूर करने का हर संभव प्रयास करते हैं। राजनीति की बात करें तो पूर्व विधायक अजय पाल सिंह के पिता कुंवर हरनारायन सिंह क्षेत्र में चार बार लगातार कांग्रेस के विधायक रहे। वह जीवन भर राजनीति में अजेय रहे। वर्ष 1992 में उनकी मृत्यु के बाद अजय पाल सिंह का राजनीति सफर शुरू हुआ।

वह पिता की मृत्यु के बाद रिक्त हुई सीट डलमऊ (तब ऊंचाहार विधानसभा नहीं थी) से टिकट चाह रहे थे, मगर कांग्रेस ने उनकी जगह गणेश शंकर पांडेय को टिकट दे दिया। इस घटना से उनके मन में कांग्रेस को लेकर खटास आ गई, लेकिन वह 1995 तक इसी पार्टी में बने रहे। वर्ष 1995 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अरखा भवन आए। उन्होंने अजय पाल सिंह को भाजपा में शामिल कराया। विधानसभा चुनाव में भाजपा से उन्हें उम्मीदवार बनाया। वह महज 171 मत के अंतर से चुनाव हार गए। फिर वर्ष 2006 में वह पुन: कांग्रेस में शामिल हो गए। उसके बाद 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में वह विधायक निर्वाचित हुए। फिर 2012 और 2017 के विधान सभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद वह क्षेत्र में ही सक्रिय रहते हैं।

गांधी परिवार और राजघराने का कुछ ऐसा है इतिहास

-कभी सुलतानपुर जिला का हिस्सा रही अमेठी किसी परिचय की मोहताज नहीं है। आज देश की परिधि के बाहर भी अमेठी का नाम है।इसके पीछे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से अमेठी राजघराने का ही हाथ है। गांधी परिवार को अमेठी लाने का श्रेय राज परिवार को ही जाता है।
पूर्व पीएम राजीव गांधी और सोनिया गांधी यहां से सांसद रहे है।गांधी परिवार और अमेठी राजघराने के राजनीतिक रिश्ते की शुरुआत जरूर हुई, लेकिन तमाम उतार-चढ़ाव के बाद राजनीति का ये लंबा सफर पारिवारिक रिश्तों में बदल चुका है।दुहाई शायद ही कभी ऐसा मौका रहा हो जब गांधी परिवार के प्रत्येक सदस्य ने अपने भाषण में पारिवारिक रिश्ते की दुहाई न दी हो।
-गांधी परिवार की नई और पुरानी पीढ़ी के लोग समय-समय पर पारिवारिक रिश्ते की इस डोर को मजबूती देते रहे।
राजनीति में आने से पहले राहुल गांधी नें राजनीति का ककहरा इसी अमेठी से सीखा था।

प्रियंका गांधी राजनीति में सक्रिय भले न हो, लेकिन अमेठी में उनकी सक्रियता हमेशा बरकरार रही है।अभी कुछ दिन पहले प्रिंयका का बेटा अमेठी घूमने भी आया था, जिसको लेकर सियासी गलियारों में खूब चर्चाएं रही।

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