“जिन्हें पीटा, उन्हीं पर FIR”, यादव कथावाचक मामले में आया नया ट्विस्ट, जानिए पुलिस ने क्यों लिया ये एक्शन ?

उत्तर प्रदेश के इटावा में बात धर्म की सुनते-सुनाते जाति विवाद में तब्दील हो गई। भागवत कथा के दौरान कथावाचकों की जाति छुपाने के आरोप पर बदसलूकी और चोटी काटे जाने का वायरल वीडियो सामने आने के बाद प्रशासन सख्त कार्रवाई में जुटा है।
कथावाचकों पर खुदा मामला दर्ज
बकेवर थाना में आरोपियों—आशीष तिवारी, उत्तम कुमार अवस्थी, निकी अवस्थी व मनु दुबे—के खिलाफ FIR दर्ज की गयी है और उन्हें गिरफ्तार किया गया है ।
इसके साथ ही द्विपक्षीय जांच के चलते कथावाचकों मुकुटमणि यादव व संत सिंह यादव के खिलाफ फर्जी आधार कार्ड बनवाने व जाति छुपाकर कथावाचन करने का मुकदमा भी दर्ज हुआ है।
वायरल वीडियो में दिखा सच्चा रूप
सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में कथावाचकों से पूछा गया, “महाराज जी, आप कौन जाति के हो?” घबरा कर उन्होंने अपनी जाति बताई। जिसके बाद ग्रामीणों ने उन्हें ‘ब्राह्मण’ बनते हुए झूठ बोलने का आरोप लगाया और चोटी काटकर सिर मुंडवा दिया ।
जातिगत अपमान का खौफनाक सच
ग्रामीणों का दावा है कि कथावाचकों ने खुद को ब्राह्मण बताकर कथा कराई, जबकि असल में वे यादव थे। कथानुसार उनके पास से ‘अग्निहोत्री’ नाम का आधार कार्ड मिला, जिससे विरोधियों ने उन्हें ब्राह्मण दिखाने की कोशिश कहा ।
हिंसा की पराकाष्ठा और सांप्रदायिक आरोप
वायरल फुटेज में दिखा गया दृश्य चौंकाने वाला है: कथावाचकों के चोटी कटने, सिर मुंडाने के साथ-साथ कथित तौर पर नाक रगड़े जाने और कथानक क्वचर (मुत्र फेंकने), हैरान कर देने वाली अमानवीय हरकत के रूप में सामने आया।
संजय यादव ने लगाए अन्य आरोप
एसएसपी इटावा, बृजेश श्रीवास्तव ने बताया कि घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर आने के तुरंत बाद चार आरोपियों को गिरफ्तार कर चार्जशीट तैयार की जा रही है ।
दूसरी ओर, कथावाचकों के खिलाफ मोहल्ले की महिला ने आरोप लगाया है कि कथावाचन के दौरान छेड़छाड़ भी हुई—यह भी जांच का विषय बना हुआ है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इस घटना को जातीय प्रभुत्व का अपमानकारी उदाहरण कहा। उन्होंने वायरल घटना की निंदा करते हुए पूछा, “धर्माभियान में जातिप्रदर्शन क्यों किया गया?” ।
धर्म क्या बनी जाति का बहाना?
यह पूरी घटना न सिर्फ कथावाचन की गरिमा को ठेस पहुंचाती है, बल्कि जातिगत भेदभाव और सांप्रदायिकता की शर्मनाक हदों का भी संकेत देती है। सवाल अब यह है—क्या धार्मिक स्वरूप ‘सत्य व संप्रभुता’ का माहौल ला सकता है, या यह ‘जातिगत ताकत’ ही बनकर रह गया?