चिराग की चतुराई ने तोड़ दी चाचा पारस की पार्टी

क्या पशुपति कुमार पारस के पास बचे है अब सीमित विकल्प?

रामविलास पासवान के निधन के बाद चाचा पशुपति कुमार पारस और भतीजे चिराग में शह-मात का खेल चल रहा था, जिसमें चिराग ने सीटों के बंटवारे तक के खेल को तो जीत लिया है। चाचा के लिए सबसे मुश्किल बात तो यह है कि एनडीए में कोई पूछ नहीं रहा। इंडिया गंठबंधन में प्रश्न यह है कि क्या इंडिया गठबंधन उन्हें मनमर्जी की सीट देगा? वहीं लालू या नीतीश का साथ मिलना भी कठिन है क्योंकि पशुपति साफ कर चुके है कि वह हाजीपुर से चुनाव लड़ेंगे और ये दोनों नेता अपने-अपने गठबंधनों बंधे है। ऐसे में पशुपति पारस के पास विकल्प है कि वह खुद ही अपनी पार्टी से चुनाव लड़े।

साथी भी नहीं दे रहे दिखाई

जब चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी से टूटकर पशुपति ने राष्ट्रीय जनशक्ति पार्टी बनाई तो वहां से 4 सांसदों को लुभवाने सपने दिखाकर लाए थे, वह भी साथ छोड़कर भाग रहे हैं। मंगलवार को हुई प्रेस कांफ्रेंस में उनके साथ कोई साथी नहीं दिखा। कांफ्रेंस में न तो चंदन सिंह दिखे और न ही भतीजा प्रिंस राज कहीं दिखा।

वहीं वैशाली से सांसद वीणा सिंह ने पहले ही चिराग पासवान का हाथ थाम लिया था।

अन्याय हुआ है

पशुपति पारस हमेशा मोदी का साथ देते नज़र आएं है। फिर चाहे सोशल मीडिया अकाउंट पर ‘मोदी का परिवार’ लिखकर या फिर मोदी के साथ मंच पर फूल पहनाते हुए दिखे हैं। सीटें न मिलने की वजह से राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता ने कहा कि ये हमारा अपमान है और हमारे साथ अन्याय हुआ है। हमारी आज भी लोगों के बीच लोकप्रियता है। भाजपा को भ्रमित किया गया है।

पशुपति के फैसले में स्वार्थ

जब पशुपति पारस ने केंद्रीय मंत्री से इस्तीफा दिया तो राजनीति के जानकारों का मानना था कि पशुपति पारस सभी फैसले भावुक होकर ले रहे हैं। भाजपा ने उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाने की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। वह अपने फैसलों पर अड़े रहे और हाजीपुर से लड़ने की जिद लेकर बैठे रहे। वहीं भतीजे प्रिंस को विधान परिषद का सदस्य बनाकर बिहार में मंत्री पद देना चाहती थी। चंदन को भी भाजपा ऑफर दे रही थी। लेकिन पशुपति पारस अपनी बातों पर ही अड़े रहे, जिस वजह से भाजपा ने उनसे और उनकी पार्टी से दूरी बना ली।

हाजीपुर से लड़े तो…

राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर वह अपनी पार्टी से हाजीपुर से लड़े तो उनकी भूमिका वोट काटने वाली की बनकर रह जाएगी। लेकिन इसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।

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