भारत को लद्दाख में उलझाकर खुद को हिंद महासागर में मजबूत कर रहा है चीन?

भारत और चीन के बीच चीज़ें पिछले एक साल से अधिक से ठीक नहीं हैं। चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ शुरू करने के बाद से दोनों देशों की सेना आमने-सामने है। हालांकि भारतीय स्ट्रेटजिक थिंकर्स अभी तक बहुत साफ नहीं बता रहे हैं कि चीन क्यों भारतीय क्षेत्र में दखल देने की कोशिश कर रहा है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि हिंद महासागर में भारत को समुद्री प्रभाव बढ़ाने से रोकने के लिए चीन भारत को लद्दाख में उलझाए हुए है।

छह महीने और कई राउंड की बातचीत के बाद भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि लद्दाख के 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स में से एक गोगरा पोस्ट से फेस ऑफ की स्थिति को कम करने के लिए चीन के साथ एक समझौते पर पहुंच गए हैं। हालांकि इस मसले पर अब तक चीन की ओर से कोई भी बयान नहीं आया है। इसके साथ ही भारत को उम्मीद है कि देपसांग क्षेत्र से सेना हटाने को लेकर भी बातचीत की जाएगी जहां पीपल्स लिबरेशन आर्मी कथित तौर पर भारतीय सीमा के 15 किलोमीटर अंदर है।

भारत पीछे हट रहा?

ब्रह्मा चेलानी डिफेंस एक्सपर्ट हैं। भारत चीन मामले को लेकर खुलकर राय रखते हैं। उन्होंने कहा है कि भारतीय अधिकारियों ने चीन द्वारा प्रस्तावित बफर जोन को स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया है। इससे भारतीय सेना अब पारंपरिक पेट्रोलिंग पॉइंट तक नहीं जा सकेगी बल्कि भारतीय क्षेत्र में भी पीछे रह जाएगी। देश को बताया गया कि गलवान की झड़प पेट्रोलिंग पॉइंट 14 हथियाने को लेकर हुआ था लेकिन भारत यहां से 1.7 किलोमीटर पीछे हट गया है। गोगरा से 5 किलोमीटर का बफर क्षेत्र भारतीय पेट्रोलिंग पॉइंट 17A पर केंद्रित है। पैंगोंग लेक वाले क्षेत्र में चीन का दावा फिंगर 4 तक है लेकिन भारत फिंगर 2 और 3 के बीच वापस चला गया।

इस सबके बावजूद भारत सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि 6 हॉटलाइन के अलावा अस्थायी बफर जोन बॉर्डर पर किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए बनाए जा रहे हैं। रिटायर्ड कर्नल शशिधरन दिनी बताते हैं कि तरह से दोनों देशों ने सैनिकों को बॉर्डर पर जमा किया है, उसे पूरी तरह से हटने में कुछ समय लगेगा।

रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि लद्दाख बॉर्डर पर चीन के साथ तनातनी के बाद मिलिट्री एसेट्स को लेकर लद्दाख सेक्टर में बड़ा खर्च आया है। भारत सरकार ने 208 अरब रुपये के अतिरिक्त हथियार, गोला-बारूद और लॉजिस्टिक आइटम ख़रीदे हैं। यह नौसेना के हर साल युद्धपोतों और पनडुब्बियों को बनाए रखने में खर्च के बराबर है।

चीन हर साल 20-25 युद्धपोत जोड़ रहा

डिफेंस एनालिस्ट्स का मानना है कि हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करने को लेकर चीन लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत को उलझाए हुए है। सबमरीन वेटरन कमोडोर अनिल जय सिंह बताते हैं कि चीन भारत पर दबाव बनाता रहेगा। उन्हें पता है कि बॉर्डर पर किसी भी तरह कि स्थिरता इकॉनमी पर कितना दबाव डालती है। भारत चीन की तरह हर चीज़ें एकसाथ नहीं कर सकता। भारत हिंद महासागर के साथ 3488 किलोमीटर के लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर एक साथ बहुत मुखर नहीं हो सकता।

चीनी नौसेना हर साल करीब 20-25 युद्धपोत और पनडुब्बियां जोड़ रही है। हालिया सालों में चीन ने भारतीय नौसेना की तुलना में अधिक टन भार वाले नए जहाजों को लॉन्च किया है। चीन जिबूती में अपना बेस बना रहा है। इसके साथ ही केन्या, तंजानिया, जाम्बिया, जिम्बाब्वे और मेडागास्कर में भी चीनी नौसेना की उपस्थिति है।

2035 के चीन को लेकर काम करे भारत

अनिल जय सिंह बताते हैं कि अगले 10 सालों में चीन एक स्थायी युद्धवाहक हिंद महासागर में तैनात कर देगा। भारत को मौजूदा चीनी नौसेना के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए और 2035 के चीनी नौसेना पर सोचना और काम करना चाहिए।

भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने दिसंबर 2019 में स्वीकार किया था कि नौसेना के गिरते बजट के कारण दीर्घकालिक योजनाओं पर फिर से सोचने पर मजबूर हो गए थे। उन्होंने कहा था कि 2027 तक 200 युद्धपोतों को चालू करने की पहले की योजना के बजाय अधिकतम 175 युद्धपोतों को ही सेवा में लाया जा सकता है।

नौसेना के गिरते बजट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2021-22 के लिए युद्धपोतों और पनडुब्बियों के रखरखाव के लिए नौसेना को 4.7 अरब डॉलर की अनुमानित मांग के बजाय 3.2 अरब डॉलर मिले। खरीद की बात करें तो सरकार ने इस साल 9.7 अरब डॉलर की अनुमानित मांग के मुकाबले 4.5 अरब डॉलर आवंटित किए हैं।

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