बड़ी खबर: अर्द्धसैनिक बल vs मोदी-शाह ! अधिकारी ने लिखा खुला पत्र, कहा – “हमें सिर्फ चुनावों में मत इस्तेमाल कीजिए”

एक सीएपीएफ अधिकारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक भावुक और तीखे शब्दों वाला खुला पत्र लिखा है, जो अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। यह पत्र उस दर्द और नाराजगी को उजागर करता है जो भारत की सीमा पर तैनात और UPSC द्वारा सीधे भर्ती किए गए CAPF (Central Armed Police Forces) अधिकारियों के दिल में लंबे समय से पल रही है।
“देश की रक्षा की, पर अपना हक अब तक नहीं मिला”
पत्र लिखने वाले अधिकारी ने खुद को “गर्वित पर अब क्षुब्ध” बताते हुए कहा है कि उन्होंने 19 साल तक देश की सेवा की है—आग की रेखा पर खड़े होकर, दुर्गम इलाकों में नेतृत्व करते हुए। लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि उनका बलिदान और निष्ठा केवल एकतरफा है।
“हम देश के लिए लड़ते हैं, लेकिन हमारे लिए कौन लड़ता है?”
OGAS स्टेटस पर केंद्र सरकार की चुप्पी से नाराजगी
अधिकारी ने सरकार पर CAPF अधिकारियों को “Organised Group A Service” (OGAS) का दर्जा देने से इनकार करने का गंभीर आरोप लगाया है। सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही इस संबंध में फैसला सुना चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने उस निर्णय के खिलाफ रीव्यू पेटीशन दायर कर दिया।
“हम आपकी Z+ सुरक्षा संभालते हैं, लेकिन जब बात हमारे प्रमोशन, समान वेतन और सम्मान की आती है, तो हमें ‘दूसरी पंक्ति’ में खड़ा कर दिया जाता है।”
“कोर्ट से न्याय मिला, सरकार ने अपील ठोंक दी”
पत्र में यह भी उल्लेख है कि उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने CAPF अधिकारियों को संगठित ग्रुप A सेवा का दर्जा देने के पक्ष में फैसला दिया है। साथ ही यह भी कहा गया कि IPS अधिकारियों का एकाधिकार खत्म किया जाना चाहिए। मगर केंद्र सरकार ने इन निर्णयों के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर “फ्यूडल स्ट्रक्चर” को बनाए रखा है।
“आप चाहें तो बदलाव अभी कर सकते हैं, पर इरादा कहां है?”
इस पत्र में प्रधानमंत्री मोदी को सीधे तौर पर संबोधित करते हुए लिखा गया है:
“आपने देश के कई कानून रातों-रात बदले हैं। संसद में साहसिक फैसले लिए हैं। फिर CAPF अधिकारियों के साथ न्याय करने में इतनी देर क्यों? यह कानून का मामला नहीं है, यह आपके इरादे का सवाल है।”
“हमें सिर्फ चुनावों में मत इस्तेमाल कीजिए”
पत्र के अंत में अधिकारी ने कटाक्ष करते हुए लिखा है कि सरकार उन्हें चुनावों में “राष्ट्रवाद का चेहरा” बनाने से नहीं चूकती, लेकिन जब वे अपने अधिकार की बात करते हैं तो उन्हें अदालत में घसीटा जाता है।
“हम आपका वोट बैंक नहीं हैं। हम इस देश के संविधान से मान्यता प्राप्त सशस्त्र बल हैं।”
अंतिम आग्रह: “हमें कुर्बानी का प्रतीक न बनाएं, बराबरी का दर्जा दीजिए”
पत्र का समापन बेहद भावुक अंदाज में किया गया है:
“हर दिन जब आप न्याय टालते हैं, तो हर CAPF अधिकारी को यह संदेश देते हैं — ‘हम तुम्हारा खून-पसीना तो लेंगे, लेकिन तुम्हें बराबरी का हक नहीं देंगे।’ ये वही भारत नहीं है जिसकी आपने कल्पना की थी।”
यह पत्र उस गहरे आक्रोश, थकान और हताशा का प्रतीक है जो देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले अधिकारियों के भीतर पल रहा है। केंद्र सरकार के लिए यह एक मौका है—एक चुप्पी तोड़ने का, एक अन्याय को मिटाने का और उन जवानों की बात सुनने का जिनकी बंदूकें देश के लिए उठती हैं, लेकिन जिन्हें खुद अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए एक खुला पत्र लिखना पड़ता है।