लोकसभा की 3 और विधानसभा की 29 सीटों पर उपचुनाव शुरू, इन पर होगी सबकी नजर

नई दिल्ली. देश में दादरा व नगर हवेली सहित लोकसभा (Loksabha Bypolls) की तीन और 13 राज्यों में फैली विधानसभा की 29 सीटों (Assembly Seat Bypolls) पर होने वाले उपचुनाव (Bypolls 2021) के लिए शनिवार को मतदान शुरू हो गया है. मतदान प्रक्रिया के दौरान पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम के साथ ही कोविड बचाव उपाय भी सुनिश्चित किए गए हैं. अधिकतर सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होगा.

दादरा व नगर हवेली, हिमाचल प्रदेश के मंडी और मध्य प्रदेश के खंडवा में लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होगा. वहीं, जिन 29 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होगा, उनमें असम में पांच, पश्चिम बंगाल में चार, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा मेघालय में तीन-तीन, बिहार, राजस्थान और कर्नाटक में दो-दो जबकि आंध्र प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, मिजोरम तथा तेलंगाना की एक-एक सीट शामिल है. मतगणना दो नवंबर को होगी.

नगालैंड की शमातोर-चेसोर विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव की घोषणा की गई थी. हालांकि, क्षेत्रीय दल नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के उम्मीदवार को 13 अक्टूबर को निर्विरोध विजयी घोषित किया गया. लोकसभा की तीन सीटों पर सदस्यों के निधन के चलते उपचुनाव हो रहे हैं. वहीं, कुछ विधानसभा सीटों पर विधायक के निधन के कारण जबकि कई सीटों पर विजयी उम्मीदवार के दल बदलने के लिए इस्तीफा देने के कारण सीट रिक्त हुई. आइए जानते हैं कि कौन-कौन सी सीटों पर लड़ाई अहम है.

बंगाल की दो सीटों पर भाजपा के लिये प्रतिष्ठा की लड़ाई
बात अगर पश्चिम बंगाल की चार विधानसभा सीटों की करें तो सबकी निगाहें दिनहाटा सीट पर होंगी क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के दिग्गज नेता उदयन गुहा इस सीट पर फिर से जीत हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, जो अप्रैल में हुए चुनाव में भाजपा ने उनसे छीन ली थी. दो बार विधायक रह चुके गुहा ने 2011 में फॉरवर्ड ब्लॉक और 2016 में टीएमसी के टिकट पर इस सीट से जीत हासिल की थी. इस बार उनका मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार अशोक मंडल से है, जिन्होंने 2006 में टीएमसी उम्मीदवार के तौर पर उन्हें हराया था.

इनके अलावा जिन तीन सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें नदिया जिले की शांतिपुर, उत्तर 24 परगना की खरदा और दक्षिण 24 परगना की गोसाबा सीट शामिल है. दिनहाटा और शांतिपुर उपचुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है, जो वर्तमान में विधायकों और वरिष्ठ नेताओं के पार्टी बदलने की समस्या से जूझ रही है.

जीत पर टिकीं इनेलो उम्मीदवार अभय चौटाला की नजरें
वहीं हरियाणा के सिरसा जिले के ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में शनिवार को होने वाले उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. विपक्षी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के उम्मीदवार अभय सिंह चौटाला की नजरें एक बार फिर इस सीट पर जीत हासिल करने पर टिकी हैं. चौटाला ने केंद्रीय कृषि कानूनों के मुद्दे पर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जिसके चलते इस सीट पर उपचुनाव की जरूरत पड़ी है. हरियाणा लोकहित पार्टी के प्रमुख तथा विधायक गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा ने हाल में भाजपा का दामन थाम लिया था. वह इस सीट पर भाजपा-जजपा गठबंधन के उम्मीदवार हैं.

पिछले चुनाव में अभय चौटाला से हार का सामना करने वाले पवन बेनीवाल कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं. वह हाल में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए थे.

कृषि कानूनों के मुद्दे पर जनवरी में अभय चौटाला के इस्तीफे के कारण सिरसा जिले में पड़ने वाले इस ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव की जरूरत पड़ी. 1.85 लाख से अधिक मतदाता इस सीट पर मतदान के पात्र हैं. इनमें 98,000 से अधिक पुरुष और 86,000 महिलाएं शामिल हैं.

तेलंगाना में राजेंद्र के लिए करो या मरो की स्थिति
उधर तेलंगाना में हजूराबाद विधानसभा उपचुनाव की तैयारियां पूरी हो गयी हैं और इस चुनाव में सत्तारूढ़ टीआरएस, विपक्षी भाजपा एवं कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है. जून में इटाला राजेंद्र के इस्तीफे के बाद हजूराबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव की जरूरत उत्पन्न हुई. उन्होंने जमीन हथियाने के आरोपों के बीच मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाये जाने के बाद विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था.

आरोपों से इनकार कर चुके राजेंद्र ने टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्र समिति)से नाता तोड़ लिया और अब वह भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. इस उपचुनाव में 30 प्रत्याशी हैं . लेकिन मुख्य मुकाबला टीआरएस के गेल्लू श्रीनिवास यादव, भाजपा के राजेंद्र और कांग्रेस के वेंकट बालमूरी के बीच है.

राजेंद्र के लिए यह उपचुनाव ‘करो या मरो’ जैसा है और उनकी पार्टी के लिए भी बड़ा अहम है जो 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले टीआरएस के विकल्प के रूप में उभरने का लक्ष्य लेकर चल रही है. मतगणना दो नवंबर को होगी.

हिमाचल में अगले साल विधानसभा चुनाव की पूर्व परीक्षा हैं उपचुनाव
हिमाचल प्रदेश में मंडी लोकसभा और अर्की, फतेहपुर तथा जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीटों पर शनिवार को होने वाले उप चुनाव को राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की पूर्व परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्थानीय नेताओं के अनुसार, इन उप चुनाव के परिणाम अगले साल दिसंबर में होने वाले विधानसभा के परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं. मंडी लोकसभा सीट में 17 विधानसभा क्षेत्र आते हैं.

भाजपा की प्रदेश इकाई के प्रवक्ता रणधीर शर्मा ने कहा कि इस उप चुनाव के परिणाम विधानसभा चुनाव के परिणामों को प्रभावित करेंगे. इन चारों सीट पर उप चुनाव, मौजूदा सांसद और विधायकों के निधन के चलते कराए जा रहे हैं. इन सभी सीटों के लिए मतगणना दो नवंबर को की जाएगी.

मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच टक्कर
मध्य प्रदेश में लोकसभा की एक एवं विधानसभा की तीन सीट पर उपचुनाव के लिए कुल 48 प्रत्याशी मैदान में हैं. मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा तथा विपक्षी कांग्रेस के बीच है. इन चार सीटों में से खंडवा लोकसभा सीट सहित दो सीटों पर भाजपा का कब्जा था, जबकि बाकी दो सीट कांग्रेस के पास थीं. विपक्ष शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार पर भ्रष्टाचार, ईंधन की कीमतों में वृद्धि, महंगाई और कोरोना काल में बदइंतजामी के आरोप लगाते हुए हमले कर रहा है.

चौहान इस साल की शुरुआत में दमोह उपचुनाव में शर्मनाक हार के बाद जीत की सख्त जरूरत है. मार्च 2020 में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के 27 विधायक BJP में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस भी राज्य में पार्टी को बचाने के लिए पूरा प्रयास करेगी.

राजस्थान में गहलोत सरकार का लिटमस टेस्ट हैं उपचुनाव
इसके साथ ही राजस्थान के वल्लभनगर (उदयपुर) और धरियावद (प्रतापगढ़) विधानसभा सीटों पर शनिवार को होने वाले उपचुनाव को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के प्रदर्शन के लिये एक महत्वपूर्ण परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है. दिसम्बर में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के तीन साल पूरे हो रहे है. हालांकि उपचुनाव की दो सीटें सरकार की स्थिरता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन इन दोनों सीटों के परिणामों को कांग्रेस सरकार के तीन वर्षों के कार्यों के प्रदर्शन के साथ जोडकर देखा जा रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार के सामने पिछले वर्ष 18 विधायकों के साथ पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बागी तेवर अपनाने पर बड़ी चुनौती खड़ी हुई थी जिसे पार्टी आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद सुलझाया गया था.

चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने जहां महंगाई और ईंधन की बढती कीमतों, घरेलू सिलेंडरों की कीमतों में वृद्धि को लेकर केन्द्र सरकार को निशाना बनाया और राज्य सरकार के कार्यकाल में किये गये काम पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की वहीं भाजपा ने प्रदेश की कानून व्यवस्था, अपराध दर, बेरोजगारी भत्ता, बिजली की दरों में वृद्धि को प्रमुख तौर पर चुनावी मुद्दा बनाया.

बिहार में 2 सीटों से तय होगा सरकार का भविष्य?
दूसरी ओर बिहार में राजद और कांग्रेस दोनों शनिवार को दो सीटों तारापुर (मुंगेर) और कुशेश्वर अस्थान (दरभंगा) पर विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं. जनता दल (यूनाइटेड), जिसने पिछले विधानसभा चुनावों में दोनों सीटें जीती थीं, ऐसे में उसके लिए यह चिंता का कारण है क्योंकि राज्य विधानसभा में एनडीए के पास कम बहुमत है. दोनों सीटें हारने से राजद को राज्य सरकार का समर्थन करने वाले छोटे दलों के साथ बातचीत करने का मौका मिल सकता है.

असम में कम से कम तीन सीटों पर जीत चाहती है बीजेपी
असम में भाजपा का लक्ष्य पांच में से तीन सीटों पर जीत हासिल करना है जो उन्हें बहुमत के करीब ले जाएगा. 59 सीटों के साथ, भाजपा राज्य में बहुमत से पांच कम है और असम गण परिषद (एजीपी) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) पर निर्भर है.

विपक्षी दल कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं.

कर्नाटक में क्या होगा?
कर्नाटक की दोनों विधानसभा सीटें- हनागल और सिंदगी, लिंगायत बहुल उत्तर कर्नाटक में हैं. लिंगायत राज्य में सबसे बड़ा समुदाय है यह चुनाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हनागल लिंगायत नेता बसवराज बोम्मई के गृह जिले की ही सीट है. उन्होंने जुलाई में राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में बीएस येदियुरप्पा की जगह ली थी. येदियुरप्पा को राज्य का सबसे लंबा लिंगायत नेता माना जाता है . येदियुरप्पा भी बोम्मई के साथ प्रचार कर रहे थे.

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