भाजपा को सचेत कर रहे अयोध्या के नतीजे: दो सीटें घटना और जीत का अंतर कम होना बड़ा सवाल

भाजपा के लिए अयोध्या की दो विधानसभा सीटों पर हार और चुनाव में जीत का अंतर एक चेतावनी की तरह है। यहां जीते विधायकों की जीत का अंतर भी कम हो गया है।

 

राजनीति के केंद्र में हिंदुत्व को लाने वाले अयोध्या, मथुरा और काशी में रामनगरी का सबसे अहम स्थान है। अतिश्योक्ति नहीं होगी यदि कहा जाए कि सियासत में हिंदुत्व की ताकत का अयोध्या प्राण है। पर, उसी अयोध्या में इस बार भाजपा की न सिर्फ दो सीटें घट गईं बल्कि रुदौली छोड़कर जीती हुई सीटों पर भी 2017 के मुकाबले जीत का अंतर घट गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि अयोध्या के मतदाताओं ने इस तरह के नतीजों से भाजपा नेताओं को 2024 या 2027 में चुनावी चुनौतियों को लेकर कुछ बताने, समझाने और अभी से सचेत करने की कोशिश की है।

अयोध्या की तरह हिंदुत्व की शक्ति का प्रतीक मथुरा जहां भाजपा को 2017 में एक मांट सीट नहीं मिली थी। वहां, भी भाजपा को इस बार सभी 5 सीटों पर जीत मिल जाती है। मथुरा की मांट सीट से अपराजेय माने जाने वाले दिग्गज नेता और बसपा के उम्मीदवार श्यामसुंदर शर्मा को भाजपा के राजेश चौधरी पराजित कर देते हैं।

काशी की सभी आठ सीटों पर भी भाजपा जीत जाती है। ऐसे में अयोध्या में दो सीटें गोसाईगंज व मिल्कीपुर भाजपा के हाथ से निकलकर सपा को मिलना भगवा दल की पेशानी पर बल डालने के लिए काफी है। अयोध्या सीट पर भाजपा के वेदप्रकाश गुप्त जीत तो गए, लेकिन उनकी जीत का अंतर पहले की तुलना में घट गया है। जीत भी तब हुई जब भाजपा संगठन सहित पूरे संघ परिवार ने ताकत लगाई और घर-घर संपर्क किया।

इसलिए भी गौर करना जरूरी
2017 में अयोध्या सीट पर भाजपा के वेदप्रकाश गुप्त की 50 हजार से अधिक वोटों से जीत हुई थी। भाजपा ने रुदौली सीट 33,520 वोटों से जीती थी। मिल्कीपुर 28 हजार, बीकापुर 26 हजार और गोसाईगंज 11 हजार से अधिक मतों से भाजपा के खाते में आई थी। इसमें इस बार मिल्कीपुर और गोसाईगंज सीट पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा।

बीकापुर में लगभग 6000 वोटों से ही जीत मिली। सिर्फ रुदौली में जीत का अंतर बढ़ा। बावजूद इसके कि वहां यादव व मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं। रुदौली से रामचंद्र यादव लगातार तीसरी बार भाजपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए। पिछली बार उनकी जीत का अंतर लगभग 33 हजार था। इस बार 40 हजार से अधिक है।

सपा ने भी रुदौली में यादव उम्मीदवार उतारा था। इसलिए यह विचार ज्यादा जरूरी हो जाता है कि अन्य स्थानों पर भाजपा उम्मीदवारों की पराजय या उनकी जीत का अंतर घटने के पीछे कहीं संबंधित जनप्रतिनिधियों का कामकाज का तरीका, रीत-नीति या व्यवहार तो जिम्मेदार नहीं है।

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