TMC नेता ने EC को दी खुली चुनौती! महुआ मोइत्रा बोलीं ‘असंवैधानिक है आदेश’, वोटर लिस्ट केस में गई सुप्रीम कोर्ट

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सियासत चरम पर पहुंच गई है। तृणमूल कांग्रेस की नेता और सांसद महुआ मोइत्रा ने इस प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा 24 जून को जारी किया गया यह आदेश संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है और इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर असर पड़ सकता है।

महुआ मोइत्रा की सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका

महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर कर निर्वाचन आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि 24 जून को जारी आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(A), 21, 325, 326, 328 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 व निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 का उल्लंघन करता है।

क्या है विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)?

निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई है। इसका उद्देश्य मतदाता सूची से अपात्र नामों को हटाना और सुनिश्चित करना है कि केवल पात्र नागरिक ही मतदाता सूची में दर्ज हों। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए जरूरी है।

महुआ मोइत्रा का तर्क – “लोकतंत्र पर हमला”

महुआ मोइत्रा की याचिका में कहा गया है कि जिन मतदाताओं के नाम पहले से ही सूची में हैं या जो कई बार मतदान कर चुके हैं, उनसे अब फिर से पात्रता साबित करने को कहा जा रहा है। यह प्रक्रिया अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है और नए तरीके से बाहरी योग्यताएं थोप रही है। महुआ ने चेतावनी दी है कि यदि यह आदेश रद्द नहीं हुआ, तो देशभर में लाखों पात्र नागरिक मताधिकार से वंचित हो सकते हैं, जिससे लोकतंत्र कमजोर होगा।

देशभर में प्रभाव की आशंका

महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में शीर्ष अदालत से यह भी अनुरोध किया है कि निर्वाचन आयोग को देश के अन्य राज्यों में इस तरह के विशेष पुनरीक्षण आदेश जारी करने से रोका जाए। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है जब ECI ने इस तरह की व्यापक पुनरीक्षण प्रक्रिया अपनाई है, जिससे मतदाताओं को बिना किसी ठोस आधार के अस्थायी रूप से अपात्र ठहराया जा सकता है।

ADR भी उठा चुका है मुद्दा

इससे पहले, ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) नामक गैर-सरकारी संगठन ने भी इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। ADR ने भी कहा था कि यह आदेश संविधान और कानून के खिलाफ है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित कर सकता है।

चुनाव आयोग की दलील

भारत निर्वाचन आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह संवैधानिक है और इसका उद्देश्य सिर्फ अपात्र नाम हटाकर मतदाता सूची को शुद्ध करना है। बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, और यह पुनरीक्षण निष्पक्ष चुनाव की दिशा में एक अहम कदम है।

न्यायिक फैसले का इंतजार

अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हैं, जो तय करेगा कि क्या बिहार में चल रही यह विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया जारी रहेगी या इसे संविधान के उल्लंघन के आधार पर रोका जाएगा। यह मामला सिर्फ बिहार नहीं, बल्कि देशभर में मतदाता अधिकारों और लोकतंत्र की निष्पक्षता से जुड़ा एक अहम सवाल बन चुका है।

 

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