बंटवारे के वक़्त खून खराबा देख बदला था अपना मुस्लिम धर्म, ऐसे ‘योगी’ सत्यपति का हुआ निधन

नई दिल्ली
वैदिक योगी स्वामी सत्यपति का गुरुवार सुबह 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। योगगुरुस्वामी रामदेव ने उनके निधन की पुष्टि की और उन्हें श्रद्धांजलि दी है। स्वामी सत्यपति का जन्म एक मुस्लिम परिवार में साल 1927 में हुआ था।

हरियाणा के रोहतक जिले के गांव फरमाणा में जन्मे स्वामी सत्यपति को 19 वर्ष की आयु तक कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी। उन्होंने गांव के ही कुछ लोगों की मदद से खुद अपनी पढ़ाई-लिखाई की पहल की और हिंदी वर्णमाला सीखी।

साल 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तो उन्होंने अपनी आंखों के सामने हजारों निर्दोष लोगों, महिलाओं और बच्चों की हत्या होते देखी। उस नरसंहार ने उन्हें इतना व्यथित किया कि उनके दिल में वैराग्य की भावना पैदा हो गई। इसके बाद उन्होंने अपने सारे पारिवारिक संबंधों को खत्म कर दिया और ‘सत्य’ की खोज में निकल पड़े।

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उन्होंने हिंदू धर्म अपनाया और शुरुआत में उन्हें मनुदेव के नाम से जाना जाता था। स्वामी सत्यपति ने काफी कम समय में ही हिंदी और संस्कृत सीख ली। वह सबसे ज्यादा महर्षि दयानंद की शिक्षाओं से प्रेरित थे। उन्होंने महर्षि पतंजलि के निर्धारित गुरुकुल परम्परा और अष्टांग योग की भी दीक्षा ली। उन्होंने अपने जीवन को प्रामाणिक पतंजलि योग के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया।


स्वामी सत्यपति को योग में व्यावहारिक प्रशिक्षण देने के लिए पूरे भारत की यात्रा करने के लिए भी जाना जाता है। योग शिविरों का आयोजन करके उन्होंने हजारों लोगों को आध्यात्मिक रास्ते की ओर प्रेरित किया। वेद-पुराणों का ज्ञान, प्रशिक्षण और सहायता देने के लिए उन्होंने दर्शन योग महाविद्या, आर्ष गुरुकुल और विश्व कल्याण धर्मार्थ ट्रस्ट जैसे आदर्श संस्थानों की स्थापना की।

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