जानें डिम्पल यादव के सामने क्या आएँगी अपर्णा।

जानें डिम्पल यादव के सामने क्या आएँगी अपर्णा।

पत्रकार – गौरव मैत्रेय, न्यूज़नशा

समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के लिए अपने प्रत्याशी की घोषणा कर दी है। पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से यह सीट खाली हुई थी। समाजवादी पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को मैदान में उतारा है। लेकिन सवाल यहां से शुरू होता है क्या ? बीजेपी मुलायम सिंह यादव की सीट हथियाने के लिए उन्हीं के घर में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है ।परिवार की गतिविधियों को लेकर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज थी कि समाजवादी पार्टी किसको प्रत्याशी के तौर पर उतारेगी।

लेकिन इससे पहले चर्चा यह भी थी कि मैनपुरी उप चुनाव में मुलायम के दूसरे बेटे प्रदीप यादव की पत्नी अर्पणा यादव को चुनाव में उतारा जा सकता है। जबकि अर्पणा यादव वैसे तो खुद उत्तराखंड की बिष्ट यानी राजपूत हैं। जो योगी आदित्यनाथ की बिरादरी से तालुक रखती है ,लेकिन प्रतीक यादव की पत्नी होने के नाते यादव लगाती हैं ।भाजपा को लगता है कि अर्पणा के नाम में यादव लगे होने से और मुलायम सिंह यादव के परिवार से आना मैनपुरी में इससे कामगर साबित हो सकता है। मैनपुरी सीट से नेता जी के निधन के बाद खाली हुई थी। और यही वजह है कि मैनपुरी की जनता अब पूरी सहानुभूति के साथ अखिलेश के साथ जुड़ चुकी है। कहीं ना कहीं नेताजी की सहानुभूति लोगों में देखी जा रही है। समाजवादी पार्टी को लगता है इस सहानुभूति की लहर में डिंपल की जीता तय है। इसकी काट बीजेपी को अर्पणा यादव में नजर आ रही है। यदि अर्पणा यहां से चुनाव लड़ती हैं तो अर्पणा की यह सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि लोगों में इस वक्त नेताजी के जाने के बाद लोगों की अपेक्षाएं अखिलेश से पूरी तरह जुड़ चुकी हैं। मैनपुरी की जनता यादव परिवार को यह सीट जरूर देगा। लेकिन मुलायम की बहू अभी भी डिंपल को ही माना जाता है ।यही कारण है कि वहां की जनता अर्पणा को राजनीतिक रूप से पसंद नहीं करते हैं ।क्योंकि जिस तरह से नेताजी के जाने के बाद उनकी दाह संस्कार क्रियाओं से लेकर पूरी रस्मो तक अर्पणा यादव और उनके पति प्रतीक यादव कहीं भी नजर नहीं आ रहे थे ।इस बात से साफ जाहिर होता है कि मैनपुरी की जनता डिंपल को ही राजनैतिक रूप से मानने के लिए तैयार है ।यदि इसके बावजूद भी अर्पणा चुनाव लड़ती हैं तो पूरा यादव परिवार खिलाफ हो जाएगा।

इस पूरी रचना को समझने की कोशिश करते हैं। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी समाजवादी पार्टी के सबसे मजबूत गढ़ के तौर पर जाना जाता है। जी हां अभी भी मुलायम के नाम का सिक्का चलता है। मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक शुरुआत मैनपुरी इटावा से शुरू की थी । यहां की जनता का हमेशा स्वाभाविक लगाव रहा है।मुलायम सिंह के साथ और उनके परिवार के साथ खासकर मुसलमानों और यादवों का साथ हमेशा रहा। बीजेपी ने बहुत कोशिश की गैर यादवों और गैर मुसलमानों को साथ लेकर मुलायम के इस किले को तोड़ा जा जाए ।लेकिन वह इस किले को तोड़ नहीं पाए मुलायम सिंह के निधन से बीजेपी इस मौके को देख रही है। इसलिए उसने मैनपुरी में बहुत तरीके से घेराबंदी शुरू की है बीजेपी किले में सेंध लगाने का मौका चूकना नहीं चाहती ।और इसलिए वह अर्पणा यादव पर दांव लगाने की तैयारी कर सकती है। दूसरी तरफ अखिलेश यादव किसी भी स्थिति में इस सीट पर जीत हासिल करने में लगे हैं। ऐसा करके उनकी कोशिश मुलायम के प्रति सम्मान को बरकरार रखना है । सूत्रों की मानें तो खुद योगी आदित्यनाथ ने अर्पणा का नाम आगे बढ़ाया यादव बिरादरी के वोट और मुलायम सिंह यादव परिवार के नाम के चलते अर्पणा को उतरना फायदेमंद हो सकता है ।अगर इसमें बीजेपी के परंपरागत और ब्राम्हण ठाकुर बनिया मौर्य कुशवाहा अगर जुड़ जाएं तो यह सीट समाजवादी पार्टी से छीनी जा सकती है ।लेकिन इस पर अंतिम फैसला बीजेपी का होगा यही नहीं अगर अर्पणा को प्रत्याशी बनाया गया तो बीजेपी की मुश्किलें और भी बढ़ा जाएंगी। क्योंकि इटावा के पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य विधायक ममतेश शाक्य प्रेम सिंह शाक्य यह भी तो लोग उम्मीदवारी के लिए हसरत भरी निगाहें लेकर बैठे हैं ।मैनपुरी लोकसभा सीट पर यादव पाल ,लोध जैसे ओबीसी जातियां बड़ी वोट बैंक हैं। और इस तबके के नेताओं को नाराज करके बीजेपी कोई गलती नहीं करना चाहेगी। इसलिए योगी के आवास पर प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने जीत के लिए मंथन किया जल्द ही कमेटी की बैठक बैठेगी इस बैठक में प्रत्याशी के नाम पर चर्चा की जाएगी ।और सभी नामों को केंद्रीय नेतृत्व के पास भेजा जाएगा जबकि जबकि नामांकन की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और 8 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी बीजेपी ने इस सीट पर जीत के लिए एक बार फिर से शाक्य जैसे नेताओं पर दांव लगाने का बीड़ा उठा चुकी है

इसीलिए अखिलेश यादव मैनपुरी में कोई भी चूक नहीं करना चाहते ।लिहाजा भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों ने उम्मीदवारों के ऐलान से पहले जोर शोर से तैयारी कर रखी थी मैनपुरी लोकसभा सीट पर भाजपा ने पिछले दिनों से अपना जनाधार बढ़ाया है हालांकि समाजवादी पार्टी का हमेशा 50 फ़ीसदी से ज्यादा वोट प्रतिशत रहा है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के मुलायम सिंह यादव इस सीट से एक बार फिर से जोरदार तरीके से जीते थे बीजेपी के तमाम दांव पेच के बावजूद उन्हें 5 लाख से अधिक वोट मिले थे ।जबकि बीजेपी ने प्रेम सिंह शाक्य को चार लाख के करीब वोट मिले थे जीत का अंतर लगभग 1लाख वोटों का था। मुलायम सिंह को 54 फ़ीसदी वोट मिले थे, तो बीजेपी के प्रत्याशी को 44 फीसदी वोट मिले थे ।

यदि अखिलेश डिंपल के लिए प्रचार करेंगे तो जीत तय है। अगर बीजेपी अर्पणा को चुनाव मैदान में उतारती है तो अर्पणा को शिकस्त हाथ लग सकती है। लेकिन जो बीजेपी आलाकमान के पास 3 प्रत्याशियों की लिस्ट भेजी गई है ,उनमें से किसी भी महिला प्रत्याशी का नाम नहीं है यूं तो साफ हो जाता है कि डिंपल के सामने अर्पणा चुनाव नहीं लड़ेंगी।

लेकिन सवाल है अखिलेश के मन में क्या चल रहा है अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी रूठे हुए चाचा शिवपाल सिंह यादव को मनाना और जो इतना आसान नहीं है। लेकिन समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी लोकसभा चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है और जोर शोर से प्रचार के लिए लग चुके हैं। यही नहीं बल्कि डिंपल यादव दो बार सांसद रह चुकी हैं। कन्नौज से उपचुनाव और फिर 2014 के चुनाव में वह सांसद बनी थी। इसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा । वही2022 के उपचुनाव में डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाकर मुलायम सिंह यादव की विरासत और सियासत पर एकाधिकार संदेश भी दिया है। यही नहीं अखिलेश यादव ने संदेश देने की कोशिश की है, कि वह खुद भले ही नेताजी की सीट पर चुनाव न लड़े लेकिन डिंपल को मैनपुरी से पूरी तरह से जोड़े रखेंगे । जातीय समीकरण के लिहाज से डिंपल पर सबसे ज्यादा सटीक माना जा रहा है।

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