अमेरिकी सीनेट में खास बिल पेश, तबाह हो जाएगी PAK इकोनॉमी और आर्मी; जानिए इस बिल के बारे में सब कुछ

अमेरिकी सीनेट के 22 रिपब्लिकन मेंबर्स ने तालिबान और आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए एक बिल पेश किया है। इसमें तालिबान पर जितना फोकस है, उससे कहीं ज्यादा पाकिस्तान को टारगेट किया गया है। अगर 180 दिनों में यह बिल पास हो जाता है और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इसे हरी झंडी दे देते हैं तो पाकिस्तान की इकोनॉमी तबाह हो जाएगी। इस बिल के पेश होने के बाद इमरान सरकार, फौज और ISI सब दहशत में हैं। हर टीवी चैनल पर बहस का मुद्दा यही है।

बिल पास होने में दिक्कत आने की आशंका भी कम ही है। इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान की हरकतों पर डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन करीब-करीब एक ही नजरिया रखते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने तो इमरान खान से मुलाकात तक कर ली थी, लेकिन बाइडेन तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से फोन पर भी बात करने को तैयार नहीं हैं।

आइए जानते हैं, अमेरिकी सीनेट में पेश बिल से जुड़ी कुछ बातें और इसके पाकिस्तान पर पड़ने वाले असर के बारे में…

पहले जानिए क्या है ये बिल?
इस बिल का नाम है- अफगानिस्तान में आतंकवाद विरोधी अभियान, निगरानी और जवाबदेही। इसे जिस कमेटी ने तैयार किया है उसके चेयरमैन रिपब्लिकन सीनेटर जिम रीश हैं। इसमें बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन से कुछ बेहद सख्त सवाल किए गए हैं। इसके अलावा 20 साल चली अफगान जंग में पाकिस्तान की जवाबदेही और तालिबान के मददगारों की जानकारी मांगी गई है।

ये भी पूछा गया है कि क्या पंजशीर घाटी में हुई जंग में पाकिस्तान ने तालिबान को खुली मदद दी? क्या पाकिस्तान ने नॉन स्टेट एक्टर्स और ड्रग तस्करों के जरिए तालिबान को मदद और अमेरिका को नुकसान पहुंचाया? यानी सवाल बेहद गंभीर और सख्त हैं। हालांकि इन्हें नया कहना गलत होगा। खुद अमेरिका हर सच जानता है, लेकिन न जाने क्यों, कभी पाकिस्तान को सजा नहीं दे पाया।

मामला कितना गंभीर, एक उदाहरण से समझिए
अमेरिकी सेना के सबसे बड़े अफसर जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ जनरल मार्क मिले हाल ही में सीनेट के सामने पेश हुए थे। कुछ सीनेटर्स ने उनसे पाकिस्तान को लेकर सवाल पूछे तो जनरल मार्क ने कहा- कुछ बातें टॉप सीक्रेट हैं। मैं बंद कमरे में ही इनका जवाब दूंगा। मार्क ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि सीनेट की सुनवाई कैमरों के सामने होती है और दुनिया में इसे कहीं भी देखा जा सकता है। लिहाजा अति संवेदनशील जानकारी जनरल मार्क ने नहीं दी।

आगे क्या होगा?
इस बिल को तैयार करने में कई संसदीय समितियों ने सहयोग दिया है। अमेरिकी रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और खुफिया एजेंसियां 180 दिन में तमाम जानकारी इन कमेटियों को मुहैया कराएंगी। इन पर उच्च स्तर पर विचार और बहस होगी। इसके बाद कानून को अंतिम रूप दिया जाएगा। राष्ट्रपति बाइडेन ने मंजूरी दी तो कानून लागू हो जाएगा।

बिल में अड़ंगे क्यों नहीं लगेंगे?
अमेरिका में मीडिया और आम लोगों का मानना है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की शर्मनाक वापसी इस देश के सुपर पॉवर होने पर बड़ा सवालिया निशान है। दुनिया में अमेरिकी साख को बट्टा लगा है। बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन को देश में चारों तरफ से खरी-खोटी सुनने को मिल रही है।

अमेरिकी संसद और आम लोगों के जेहन में यह बात मौजूद है कि पाकिस्तान की वजह से ही तालिबान ने हुकूमत पर कब्जा किया और वो ही अब इस सरकार को मान्यता दिलाने के लिए दिन-रात एक कर रहा है। इस मुद्दे पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट एक होते नजर आ रहे हैं। इसलिए यह बिल जल्द पास हो सकता है।

पाकिस्तान के होश उड़ना शुरू
जैसे ही यह बिल सीनेट में पेश हुआ, पाकिस्तान में दहशत फैल गई। इमरान सरकार में मंत्री शिरीन मजारी ने सोशल मीडिया पर कहा- हमने 20 साल अमेरिका और नाटो का साथ दिया। हमें फिर बलि का बकरा बनाया जा रहा है। हमारे 80 हजार लोग और फौजी मारे गए। 450 ड्रोन हमले झेले। अब फिर भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

होम मिनिस्टर शेख राशिद बोले- अमेरिकी सीनेट में बिल आ चुका है। हमारे बड़े और कड़े इम्तिहान होंगे, लेकिन हम सरेंडर नहीं करेंगे।पूर्व डिप्लोमैट और पीपीपी नेता शेरी रहमान ने कहा- अगर यह बिल पास हो गया तो हम पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा। ये हमारे साथ पहले कभी नहीं हुआ।विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा- अमेरिका में पाकिस्तान विरोधी सक्रिय हैं। हमने हमेशा अमेरिका की मदद की है। आज हमें ही गलत ठहराया जा रहा है।

बिल पास हो गया तो पाकिस्तान का क्या हश्र होगा?
पाकिस्तान में इकोनॉमी के एक्सपर्ट प्रोफेसर हामिद सिद्दीकी ने एक चैनल से कहा- यह हमारे लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी है। दुआ कीजिए कि ये बिल पास न हो। सिद्दीकी के मुताबिक, बिल पास हुआ तो मुल्क पर ये असर होंगे।

दुनिया के तमाम फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन यानी आर्थिक संगठन जैसे IMF, वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक आर्थिक मदद और कर्ज देना फौरन बंद कर देंगे। ये सिलसिला बहुत आगे बढ़ जाएगा। अभी डॉलर का एक्सचेंज रेट 172 पाकिस्तानी रुपए है। पाबंदियां लगी तो ये चंद दिनों में 200 रुपए के पार हो जाएगा।अमेरिका ने एम्बार्गो एक्ट 1807 में बनाया था। प्रस्तावित बिल उसका ही एक्सटेंशन है। हम पर आर्म्स डील, टेक्नोलॉजी, ट्रेड और एक्सपोर्ट से जुड़ी सख्त पाबंदियां लग सकती हैं। अमेरिका, उसके मित्र देश और संगठन एक साथ हमारी हर तरह की मदद बंद कर देंगे।

पाकिस्तान के कई मंत्री मान चुके हैं कि तालिबान नेता उनके देश में रहते हैं। (फाइल)

यूरोप भी नहीं छोड़ेगा पाकिस्तान को
यूरोपीय यूनियन यानी EU ने 2014 में पाकिस्तान को ‘जनरलाइज्ड स्कीम ऑफ प्रेफरेंसेज प्लस’ यानी GSP+ स्टेटस दिया था। आसान भाषा में समझें तो इस रियायत की वजह से पाकिस्तान जो सामान यूरोप के 27 देशों को एक्सपोर्ट करता है, उस पर टैक्स नहीं लगता है। तालिबान और अफगानिस्तान में पाकिस्तान की धोखेबाजी को लेकर यूरोपीय यूनियन भी पाकिस्तान से सख्त खफा है। मई में EU ने इस स्टेटस की समीक्षा की थी। अब वह यह सुविधा छीन सकती है। अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान को लाखों डॉलर टैक्स देना होगा। पाकिस्तान के कुल निर्यात का 45% EU को ही जाता है। अमेरिका को भी जोड़ लें तो यह 70% हो जाता है।

आखिर में 2 बातें जरूर समझिए

पहली : 1965, 1971 और 1998 में भी पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगे थे, लेकिन अमेरिकी सरकारों ने किसी दूसरे रास्ते या प्रोविजन के जरिए मदद पहुंचानी जारी रखी।दूसरी : अगर अमेरिकी संसद बिल पास कर देती है। राष्ट्रपति इसे हरी झंडी दे देते हैं। कानून बन जाता है। तो भी बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन पाकिस्तान को तबाह होने से बचा सकता है। सिर्फ कुछ तकनीकी दांव-पेच अपनाने होंगे।

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