पूर्वांचल में एक दूसरे का किला भेदने की तैयारी में अमित शाह और अखिलेश यादव

लखनऊ. पूर्वांचल की राजनीति में गोरखपुर (Gorakhpur) और आजमगढ़ (Azamgarh) दो ध्रुव हैं. एक में बीजेपी (BJP) का तो दूसरे में उसके मुख्य विरोधी सपा (Samajwadi Party) का कब्जा है. इस बार दोनों पार्टियां एक दूसरे के किले को ध्वस्त करने में जुटी हुई हैं. शनिवार 13 नवम्बर का दिन यूपी विधानसभा के लिए बहुत खास रहा. दो बड़ी पार्टियों के बड़े नेताओं में इतिहास बदलने की तड़प दिखी. एक तरफ आजमगढ़ में योगी-शाह ने रैली की तो दूसरी तरफ गोरखपुर में अखिलेश यादव ने रथयात्रा की. दोनों एक दूसरे के गढ़ में एक ही दिन हुंकार भरते नजर आये.

इसे समझने के लिए 2017 के चुनाव के आंकड़े ही देखना काफी होगा लेकिन, इससे पहले जानते हैं कि दोनों शहर खास कैसे हैं. सबसे पहली बात तो ये कि गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का संसदीय क्षेत्र रहा है. वे यहां से कई बार सांसद चुने गये हैं. सीएम बनने से पहले वे गोरखपुर से ही सांसद थे. आजमगढ़ से अखिलेश यादव मौजूदा सांसद हैं लेकिन, दोनों ही पार्टियों के नेता एक दूसरे का किला ध्वस्त करने की कोशिशों में लगे हुए हैं.

इसके मजबूत कारण भी हैं. बात सबसे पहले बीजेपी की. 2017 के चुनाव में पूरे राज्य में बीजेपी की ऐसी आंधी चली कि उसे अब तक की सबसे बड़ी जीत सूबे में मिली. बीजेपी ने 300 से ज्यादा सीटें जीतीं लेकिन, मन में एक बड़ा मलाल रह गया. उसे आजमगढ़ में मुंह की खानी पड़ी. 10 सीटों वाले इस जिले में बीजेपी को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा. सपा ने दस में से पांच सीटें जीत लीं जबकि बसपा ने 4 पर कब्जा कर लिया. 2017 के चुनाव में तमाम समीकरण टूट गये लेकिन, आजमगढ़ में बीजेपी की किस्मत नहीं खुली. ये जिला उसके लिए हमेशा से टफ रहा है. 2012 के विधानसभा चुनाव में तो सपा ने 10 में से 9 सीटें जीत ली थीं. बसपा को एक सीट मिली थी जबकि बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था.

बीजेपी  निगाहें आजमगढ़ पर

अब इन 10 सीटों पर बीजेपी की नजर है. पार्टी को लगता है कि आजमगढ़ में सपा का ग्राफ गिर रहा है. 2012 में सपा ने 9 सीटें जीती थीं लेकिन, 2017 में वो सिर्फ 5 सीटें ही जीत पायी. शायद इसीलिए बीजेपी यहां बड़ी सेंधमारी की जुगत में है. अमित शाह ने अपने भाषण की शुरुआत ही इसी बात से की कि आजमगढ़ से उठने वाली आवाज लखनऊ तक जानी चाहिए. इस बार आजमगढ़ की सभी की सभी सीटों पर कमल खिलने वाला है.

अब बात सपा और अखिलेश यादव की. जो हाल बीजेपी का आजमगढ़ में है वही हाल सपा का गोरखपुर में है. इसीलिए अखिलेश यादव इस जिले में सफलता की ताक लगाये हुए हैं. आंकड़े देखिये. 2012 में प्रदेश में अखिलेश यादव की पूर्ण बहुमत की सपा सरकार बनी लेकिन, उनके मन में भी एक मलाल रह गया होगा कि गोरखपुर का किला नहीं टूट सका. 2012 में गोरखपुर की 9 सीटों में से सपा को महज एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था. चार सीटें बसपा ने जबिक तीन बीजेपी ने जीती थी. NCP को एक सीट मिली थी. 2017 के चुनाव में तो सपा खाली हाथ ही हो गयी. बीजेपी ने न सिर्फ 9 में 8 सीटें जीत ली बल्कि पिपराइच की सपा की सीट भी उससे छीन ली. अखिलेश यादव इस इतिहास को तोड़ने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.

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