धर्मेंद्र यादव को आज़मगढ़ सीट देकर अखिलेश यादव ने निभाया भाई का फर्ज़

आज़मगढ़ में धर्मेंद्र यादव है कितने मज़बूत?

समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए जब 5वीं लिस्ट जारी करके आज़मगढ़ सीट पर धर्मेंद्र यादव के नाम की मुहर लगाकर बता दिया कि धर्मेंद्र यादव अभी मैदान में है। इससे पहले उन्हें बदयूं से सीट दी गई थी लेकिन तीसरी सूची में उनका नाम कटा देखकर बदयूं की जनता काफी भावुक हो गई थी।

अब आज़मगढ़ से सीट का ऐलान करने के बाद सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने न्यूज़ नशा की टीम से बात करते हुए कहा कि धर्मेंद्र यादव को आज़मगढ़ की सीट देकर अखिलेश ने ना सिर्फ़ भाई बल्कि एक मज़बूत कार्यकर्ता को आगे बढ़ाने का फर्ज़ निभाया है। उन दोनों में कभी कोई विवाद नहीं था और सीट का ऐलान होने के बाद विरोधियों की इन बातों की भी हवा निकल गई है।

क्यों उठा था विवाद?

2022 में हुए लोकसभा उपचुनावों में जब अखिलेश यादव प्रचार में नहीं पहुंचे, तो धर्मेंद्र यादव और अखिलेश यादव के बीच खटपट की खबरें बहुत उछाली गई थी, लेकिन दोनों ने इस पर कोई बयान नहीं दिए थे। पांचवी सूची में धर्मेंद्र यादव को आज़मगढ़ की सीट घोषित करके अखिलेश ने इस तरह के सभी विवादों को विराम दे दिया।

गौरतलब है कि धर्मेंद्र यादव दो बार बदयूं सीट से जीते हैं और उन्होंने इन 10 सालों में उन्होंने जनता के बीच कई काम किए। जनता के बीच रहने के लिए बदयूं में ही उन्होंने अपना घर भी बना लिया था। उनका बदयूं के साथ काफी लगाव रहा है। इसी कारण जब इस बार बदयूं से उनका टिकट कटा, तो लोग बहुत भावुक हो गए थे। पर अब आज़मगढ़ में मिली सीट भी धर्मेंद्र यादव के लिए बहुत खास है क्योंकि ताऊ मुलायम और भाई अखिलेश पहले से ही इस सीट पर अपनी जीत दर्ज करवा चुके हैं। इधर बदयूं से शिवपाल यादव को भावुकता की लहर का फायदा मिल सकता है, तो वहीं धर्मेंद्र यादव के लिए यादव-मुस्लिम समीकरण और गड्डू जमाली के साथ से आज़मगढ़ की सीट जीतना लगभग तय माना जा रहा है। इस तरह अखिलेश यादव ने ‘एक पंथ दो काज’ कर दिए।

Ex MP Dharmendra Yadav
Dharmendra Yadav

धर्मेंद्र यादव का राजनैतिक सफर

मुलायम सिंह के तीसरे भाई अभयराम के बेटे धर्मेंद्र यादव अभी इलाहाबाद में पढ़ रहे थे कि नेताजी का बुलावा आ गया। दरअसल नेताजी के भाई रतन सिंह यादव के बेटे रणवीर सिंह यादव की अचानक मृत्यु के बाद उन्होंने धर्मेंद्र यादव को सैफई के ब्लॉक की व्यवस्था संभालने के लिए बुलवा लिया गया था। उन्होंने अपने करियर की शुरूआत ब्लॉक व्यवस्था देखने से की, इसलिए वह कार्यकर्त्ताओं से ज़मीनी तौर पर जुड़ते चले गए। यह एक वजह है कि साल 2004 के लोकसभा चुनावों में मैनपुरी की सीट से जीत हासिल की थी। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन चुनावों में उन्होंने रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की थी और चूंकि उम्र 25 साल की थी, तो वह सबसे कम उम्र के सांसद बने थे।

माफिया डीपी यादव को चटाई धूल

2004 के चुनावों के समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी लेकिन अगले चुनाव तक बहुजन समाज पार्टी की सरकार राज्य में आ गई तो नेताजी मैनपुरी की सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। इसलिए धर्मेंद्र यादव को बदयूं भेजा गया। ज़मीन से जुड़े होने के कारण धर्मेंद्र यादव ने इस सीट पर 2009 और 2014 दोनों लोकसभा चुनावों में जीत का परचम लहराया। 2009 में उन्होंने माफिया डॉन डीपी यादव को हराया था। उन्हें समाजवादी पार्टी का स्टार प्रचारक माना जाता है।

साल 2012 में धर्मेंद्र यादव एक बार फिर चर्चा में आए थे और वजह थी संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी में भाषण देना। जनता और मीडिया में उनकी बहुत तारीफ हुई थी।

अखिलेश के रहे खास

ये भी देखने को मिला जब अखिलेश और शिवपाल यादव की आपसी कलह चल रही थी, तब धर्मेंद्र यादव ने अखिलेश का पूरा साथ दिया था। कहा जाता है कि धर्मेंद्र यादव की वजह से कई नेता अखिलेश के खेमे में बने रहे।

आज़मगढ़ से पुराना रिश्ता

2019 के लोकसभा चुनाव में हारने के बाद आज़मगढ़ में अखिलेश यादव ने जब 2022 के विधानसभा चुनाव को लिए अपनी सीट छोड़ी तो उन्होंने वहां के उपचुनावों में नामांकन भरा। इस सीट पर पहले अखिलेश यादव ने बीजेपी के दिनेश लाल निरहुआ को मात दी ती लेकिन उपचुनावों में निरहुआ बाज़ी मार गए। इस सीट पर धर्मेंद्र यादव भले ही हार गए, लेकिन वह कार्यकर्ताओं के साथ लगातार संपर्क में बने रहे।

आज़मगढ़ को जीतने की तैयारी 

इस बार आज़मगढ़ में धर्मेंद्र यादव का मुकाबला एक बार फिर से बीजेपी के निरहुआ से होगा। सपा ने जब सीट का ऐलान किया तो दिनेश निरहुआ ने काफी तीखे तेवर दिखाए थे। हालांकि राजनैतिक जानकारों का मानना है कि इस सीट पर जनता अपना भरोसा धर्मेंद्र यादव पर दिखा सकती है।

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