Ajmer Sex Scandal: लड़कियां सिसकती रहीं, लेकिन मुंह तक नहीं खोला..कुछ ने आत्महत्या की तो कुछ ने स्कूल छोड़ा.. कर्नाटक सेक्स स्कैंडल जैसी ही है, देश के सबसे चर्चित और बड़े अजमेर सेक्स स्कैंडल की कहानी

देश का सबसे चर्चित और बड़ा रेप कांड जहां सैकड़ों लड़कियों का रेप हुआ था। इस रेप का आरोप किसी और पर नहीं, बल्कि वहां के प्रसिद्ध चिस्ती परिवार पर लगा था।

Ajmer Sex Scandal: आजकल कर्नाटक सेक्स स्कैंडल (Karnataka Sex Scandal) सुर्खियों में है, और सुर्खियों में रहे भी क्यों न, क्योंकि यहां के सबसे प्रसिद्ध देवगौड़ा परिवार पर सैंकड़ों महिलाओं के साथ रेप का आरोप जो लगा है। HD देवगौड़ा जोकि भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। अगर उनके बेटे और पौत्र पर यह आरोप लगे तो निश्चित तौर पर इसकी चर्चा लाजिमी है।

जानें क्या था अजमेर सेक्स स्कैंडल की कहानी

अब हम आपको करीब 3 दशक पहले ले चलते हैं, क्योंकि कर्नाटक जैसा एक सेक्स स्कैंडल यहां भी हुआ था, जिसकी चर्चा आज भी होती है। हम बात कर रहे हैं अजमेर सेक्स स्कैंडल (Ajmer Sex Scandal) रेप केस की, जी हां, यह वही सेक्स स्कैंडल है जो उस समय सियासत के गलियारे में भूचाल मचा दिया था।

दरअसल, अप्रैल 1992 में नवज्योति अखबार में एक खबर छपती है, उस खबर में अजमेर में चल रहे एक सेक्स स्कैंडल की जानकारी दी जाती है। खबर कुछ यूं थी की, ‘अजमेर में लंबे समय से एक सेक्स स्कैंडल को अंजाम दिया जा रहा है। कुछ लोगों का एक ग्रुप स्कूल में पढ़ने वाली कम उम्र की लड़कियों का सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं।’ चूंकि उस समय सोशल मीडिया का जमाना नहीं था, तो यह खबर बस खबर बनकर रह गई। लोग इस पर यकीन नहीं किए। फिर मई में एक बार फिर कुछ लड़कियों की धुंधली तस्वीर के साथ एक खबर नवज्योति अखबार में प्रकाशित होती है। इस तस्वीर में कुछ लोग इन लड़कियों के साथ आपत्तिजनक हालत में नजर आते हैं। यह खबर इतनी फैली की, उस समय के मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत की कुर्सी तक डगमगा गई। अब इस तरह की खबर रोज अखबार में छपने लगी और जिरोक्स कॉपी कराकर लोग एक दूसरे को बांटने लगे।

चिश्ती परिवार पर लगा आरोप

इस बहुचर्चित सेक्स स्कैंडल का आरोप वहां के धनाढ्य और प्रसिद्ध चिश्ती परिवार के दो भाइयों नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती पर लगा था। यह दोनों ही उस समय यूथ कांग्रेस के नेता हुआ करते थे। नफीस यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष तो फारूक उपाध्यक्ष था। इस बात को बहुत लोग इसलिए नहीं मानने को तैयार थे क्योंकि, उस समय चिश्ती परिवार का अजमेर में बहुत रुतबा था और सामाजिक स्तर पर यह परिवार काफी समृद्ध था।

लड़कियों को इस तरह फंसाते थे दोनों भाई

उस समय अजमेर में सोफिया स्कूल और सावित्री स्कूल हुआ करते थे और शहर में केवल दो ही रेस्टोरेंट प्रसिद्ध थे। इन रेस्टोरेंट में ही इन दोनों स्कूलों की लड़कियां जाया करती थीं। और पार्टियां किया करती थीं। उस समय की प्रसिद्ध फिएट कारों में घूमने वाले नफीस और फारूक को इन रेस्टोरेंट की जानकारी हुई तो यह भी इसमें जाने लगे। फिर क्या था वह लड़कियों को महंगे महंगे गिफ्ट देने लगे। उनको खाना खिलाने लगे। लड़कियों के साथ पार्टियां करने लगें। लड़कियों का इन सबसे प्रभावित होना जाहिर था। फिर क्या था मौका हाथ लगते ही यह दोनों भाई लड़कियों को गैस कनेक्शन देने और कई सुविधा देने के बहाने अपने बंग्लो, फार्म हाउसों और पोल्ट्री फर्मों तक ले जाने लगे और उनका दुराचार करके फोटो बनाने लगे। इन अश्लील तस्वीरों के जरिए लड़कियों को ब्लैकमेल किया जाने लगा और उनसे अपने सहेलियों को भी लाने के लिए कहा जाने लगा। बदनामी के डर से लड़कियां अपनी सहेलियों को भी बहला फुसलाकर लाने लगीं। फिर यह सिलसिला शुरू हो गया और इस दलदल में रोज नई लड़की फंसती चली गई। इन लड़कियों को अब फंसाकर कई रसूखदार लोगों  के पास भी भेजा जाने लगा। कुछ पीड़ित लड़कियों ने यह मुद्दा उठाने की कोशिश की लेकिन उनके आवाज को यह कहते हुए दबा दिया गया कि, अगर तुम शिकायत करोगी तो तुम्हारा फोटो पूरे शहर में बांट दिया जायेगा।

लैब से लडकियों का फोटो बाहर आया

नफीस और फारुक जिस कलर लैब से फोटो प्रिंट कराते थे। संयोगवस वहीं से कुछ तस्वीरें लोगों के हाथ लग गईं और मामला बाहर आ गया। फिर क्या था सियासत में तूफान मचना लाजिमी था। इन तस्वीरों के बाहर आने से और कुछ लड़कियों की तस्वीरें लोगों के सामने आने से उन लड़कियों ने आत्महत्या कर ली तो कुछ स्कूल छोड़कर दूसरे शहर में चली गईं।

आरोपियों पर नहीं हो सकी प्रभावी कार्यवाही

कुछ पीड़ित लड़कियों के बयान के बाद 1992 में अजमेर सेक्स स्कैंडल कांड में पहली चार्जशीट फाइल की गई. जिसमें आठ आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई। प्रारंभ में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाए। लेकिन बाद में ज्यादातर लड़कियां गवाही देने से मुकर गईं। 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने वर्ष 2001 में उनमें से 4 आरोपियों को बरी कर दिया। फिर 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया। फिर, 2007 में अजमेर की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करा चुके फारूक चिश्ती को दोषी ठहराया। लेकिन जेल में बंद फारुक को 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि, वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है। 2012 में जेल में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर रिहा हो गया। इस तरह पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में और हनक के चलते दोषियों को कड़ी सजा नहीं मिल सकी और वह दोनों पहले की ही तरह मौज से घूम रहे हैं।

 

 

 

 

 

 

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