अफगानिस्तान: अमेरिकी फौज की वापसी, तालिबान का बढ़ता वर्चस्व

नई दिल्ली, अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी का सिलसिला शुरू होते ही वहां की परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आ रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में जिस तरह तालिबान का कब्जा हो रहा है, उससे परिस्थितियां विकट होती जा रही हैं।अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की अचानक वापसी पर बाइडेन प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं।

अफगानिस्तान के लगातार बिगड़ते हालत को देखते हुए दो दिनों पहले भारत ने काबुल स्थित वाणिज्यिक दूतावास से अपने कर्मचारियों को भारत वापस बुला लिया। उधर, 31 अगस्त के तयशुदा समय में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान सरकार के साथ-साथ स्थानीय नागरिकों के लिए तालिबान की चुनौतियों से जूझना आसान नहीं होगा।

उन अफगानी नागरिकों को गहरा झटका लगा है, जो यह मानते थे कि अफगान सरकार और अमेरिकी फौजों की वापसी को लेकर हुई वार्ता के बाद तालिबान अपने कट्टर रुख और नीतियों में बदलाव लाएगा। वैसे अफगान नागरिकों को उन इलाकों में इसके उलट होता दिख रहा है, जहां अमेरिकी फौज की वापसी के साथ-साथ तालिबान का कब्जा होता जा रहा है। अफगानिस्तान के 400 में से 100 से भी अधिक जिलों में तालिबान का दोबारा कब्जा शुरू हो गया है।

अफगानिस्तान के एक प्रमुख मीडिया संस्थान दी काबुल टाइम्स के मुताबिक प्रांतीय राजधानी मजार-ए-शरीफ से 20 किलोमीटर उत्तर स्थित बल्ख के निवासियों ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि तालिबान की तरफ से लोगों के लिए सख्त प्रावधान के निर्देश दिये गए हैं। यह सभी नागरिक प्रावधान वैसे ही हैं, जो 1960- 2001 के बीच तालिबान शासन के दौरान लोगों के लिए जरूरी थे। खासतौर पर महिलाओं से संबंधित कानूनों को सख्ती के साथ लागू किया जा रहा है, जिसमें बिना किसी पुरुष सहयोगी के महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी और हिजाब पहनने की अनिवार्यता है।

तालिबानी शासन की इन पाबंदियों में तब बदलाव आया, जब 2001 में अमेरिकी फौज के समर्थन से अफगानिस्तान में नयी सरकार अस्तित्व में आयी और उसने लड़कियों की शिक्षा के साथ-साथ नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया। एक स्थानीय महिला का कहना है कि नये प्रतिबंधों को मानना अब इसलिए मुश्किल भरा है क्योंकि बहुत सारी महिलाएं कामकाज कर अपने परिवार को चला रही हैं और उन्हें इसके लिए घर से निकलने की मजबूरी है।

अफगानिस्तान सरकार का भी कहना है कि सरकारी सेवाओं में 30 फीसदी महिलाएं हैं, जिन्हें तालिबानी शासन के दौरान घरों से निकलने की आजादी नहीं थी। पिछले साल अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते में तालिबान की तरफ से इन स्थितियों को देखते हुए अपनी नीतियों में बदलाव का भरोसा भी दिया गया था लेकिन हाल के महीनों में तालिबान की तरफ से जारी कार्रवाइयों से साफ है कि तालिबान के रुख में फिलहाल बदलाव नहीं हुआ है।

Related Articles

Back to top button