डिप्टी CM केशव मौर्य की फर्जी डिग्री मामला, हाईकोर्ट ने याचिका को लेकर लिया बड़ा फैसला, जानिए डिटेल

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की डिग्री से जुड़े मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिका को 7 जुलाई को खारिज कर दिया है। यह याचिका पूर्व भाजपा नेता और आरटीआई कार्यकर्ता दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने दाखिल की थी, जिसमें डिप्टी सीएम पर फर्जी डिग्री के जरिए चुनाव लड़ने और पेट्रोल पंप हासिल करने का आरोप लगाया गया था।

याचिकाकर्ता का आरोप

याचिका में दावा किया गया कि केशव प्रसाद मौर्य ने फर्जी डिग्री के आधार पर 5 अलग-अलग चुनाव लड़े। इसके अलावा, कौशांबी जिले में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से पेट्रोल पंप भी इसी फर्जी डिग्री के आधार पर प्राप्त किया गया। दिवाकर त्रिपाठी ने कोर्ट से मांग की थी कि डिप्टी सीएम के खिलाफ FIR दर्ज की जाए।

पहले भी खारिज हुई थी याचिका

2 साल पहले हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि आरोप तथ्यहीन और कमजोर हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जिसने हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की अनुमति दी। दिवाकर त्रिपाठी ने अप्रैल 2025 में पुनर्याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया।

कोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश चंद्र द्विवेदी, जबकि राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और शासकीय अधिवक्ता ए.के. संड ने बहस की। सरकार की तरफ से तर्क दिया गया कि याची ने अधीनस्थ अदालत में झूठा हलफनामा दिया है और जो आरोप लगाए गए हैं, वे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में नहीं आते। हाईकोर्ट ने 23 मई 2025 को फैसला सुरक्षित कर लिया था और 7 जुलाई 2025 को जस्टिस संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने याचिका खारिज कर दी।

याचिकाकर्ता का दावा

दिवाकर त्रिपाठी का आरोप है कि डिप्टी सीएम ने 2014 में फूलपुर लोकसभा सीट से नामांकन के दौरान हलफनामे में हिंदी साहित्य सम्मेलन से BA की डिग्री दर्शाई। जबकि उसी सम्मेलन से 1986 में प्रथमा, 1988 में मध्यमा और 1998 में उत्तमा की परीक्षा पास करने की जानकारी उन्होंने 2007 के चुनावी हलफनामे में दी थी। हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा दी जाने वाली “उत्तमा” की डिग्री को कुछ राज्यों में ग्रेजुएशन के समकक्ष माना जाता है, लेकिन यह BA की मान्यता प्राप्त डिग्री नहीं है। इस प्रकार, याचिकाकर्ता का आरोप है कि हलफनामे में BA की डिग्री दिखाना गलत जानकारी देना है।

हलफनामे में साल भी मेल नहीं खाते

दिवाकर त्रिपाठी ने सवाल उठाया कि अगर “उत्तमा” को ही BA माना जा रहा है, तो 2007 के हलफनामे में उत्तमा पास करने का वर्ष 1998 और 2012 तथा 2014 के हलफनामों में वही वर्ष 1997 क्यों दर्शाया गया? इससे याचिकाकर्ता ने डिग्री की प्रामाणिकता और हलफनामे की सच्चाई पर गंभीर सवाल उठाए।

शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं

दिवाकर त्रिपाठी का कहना है कि उन्होंने स्थानीय थाना, एसएसपी, यूपी सरकार और केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों तक शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यही कारण था कि उन्होंने न्यायालय का रुख किया।

 

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