दलाई लामा का बड़ा ऐलान: मौत के बाद उत्तराधिकारी चुनेगा सिर्फ.., चीन समेत किसी विदेशी सरकार को नहीं हक

90 वर्ष के हुए दलाई लामा ने एक ऐतिहासिक बयान देते हुए स्पष्ट किया है कि उनका अगला पुनर्जन्म केंद्रीय रूप से केवल उनके द्वारा स्थापित ‘गदेन फोड्रांग ट्रस्ट’ के पास होगा, न कि किसी विदेशी सरकार द्वारा—जिसमें चीन विशेष रूप से शामिल है। यह बयान उस कयास को ठेस पहुंचाता है जिसमें चीन को अगले दलाई लामा चुनने का अधिकार दिया गया था।

चीन को चुनने का अधिकार नहीं

दलाई लामा ने स्पष्ट कहा कि कोई भी बाहरी एजेंसी, चाहे वह सरकार हो या धार्मिक संस्था, उनका उत्तराधिकारी तय नहीं कर सकती। उन्होंने दोहराया कि गदेन फोड्रांग ट्रस्ट ही इस कार्य के लिए एकमात्र मान्य संस्था होगी। यह बयान चीन द्वारा प्रयोग होने वाले “गोल्डन यूर्न” चयन पद्धति को चुनौती है।

पुनर्जन्म की परंपरा जारी रहेगी

दलाई लामा ने अपने आध्यात्मिक दौरे और शिक्षाओं को जारी रखने का आश्वासन दिया और कहा कि चाहे वह कहीं भी पुनर्जन्म लें—यह 90 प्रतिशत संभावना है कि वह पुनर्जन्म लेंगे। ट्रस्ट को ही उत्तराधिकारी की पहचान करने दिया जाएगा, चाहे वह चीन के बाहर जन्मे, किसी भी लिंग के क्यों न हों।

साम्प्रदायिक और वैश्विक प्रतिक्रियाएं

तिब्बती निर्वासित सरकार ने चीन के हस्तक्षेप को राजनीतिक आक्रामकता बताया और इसे खारिज किया ।

अमेरिकी सांसदों ने भी चीन की धार्मिक हस्तक्षेप की आलोचना की और तिब्बती स्वायत्तता का समर्थन किया ।

पृष्ठभूमि—’गोल्डन यूर्न’ विवाद

चीन ने 2007 में धार्मिक मामलों के लिए ‘गोल्डन यूर्न’ चयन प्रणाली अपनाई, जिसमें पुनर्जन्म उम्मीदवारों के नाम को एक सोने की क्यूरी में रखा गया और लॉट ड्रा कर अगले पुनर्जन्म की पूंजी तय की जाती है । यह परंपरा तिब्बती बुद्धिज़्म में विवादास्पद रही है।

दलाई लामा का यह निर्णय न सिर्फ चीन की राजनीतिक मंशा को चुनौती देता है, बल्कि तिब्बती धर्म और सांस्कृतिक स्वायत्तता की रक्षा करता है। यह निर्णय नेपाल जैसे देशों को भी प्रेरणा दे सकता है कि धर्म की मर्यादा और परम्परा को राजनीति से अलग रखा जाए। ट्रस्ट के हाथ में आने वाला यह अधिकार भविष्य में एक शांतिपूर्ण और पारंपरिक उत्तराधिकरण सुनिश्चित करेगा।

 

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