PCS की पत्नी को 5 बार दी एनेस्थीसिया.. पैर सुन्न, डॉक्टर के खिलाफ FIR, अब PCS vs ‘मेडिकल एसोसिएशन’ हुआ मामला

प्रयागराज में एक पीसीएस अधिकारी की पत्नी की डिलीवरी के दौरान हुई चिकित्सकीय लापरवाही ने प्रशासन और मेडिकल लॉबी के बीच टकराव को जन्म दे दिया है। मामला तब गंभीर बना जब ऑपरेशन के बाद अधिकारी की पत्नी का एक पैर सुन्न हो गया और चलने में असमर्थता बनी रही। आरोप है कि ऑपरेशन से पहले पांच बार एनेस्थीसिया देने की कोशिश की गई, जिससे नर्व डैमेज हो गया।
क्या हुआ था ऑपरेशन के दौरान?
10 अप्रैल 2025 को कमला नेहरू मेमोरियल अस्पताल में डिलीवरी के लिए पीसीएस अफसर अविनाश सिंह यादव की पत्नी साधना को भर्ती कराया गया। ऑपरेशन के दौरान एनेस्थेटिस्ट डॉ. शुभ्रा घोष ने उन्हें बेहोश करने के लिए पांच बार एनेस्थीसिया देने की कोशिश की। साधना ने अपने बयान में बताया कि हर बार इंजेक्शन के बाद उनके पैरों में करंट जैसा झटका महसूस हो रहा था। ऑपरेशन के बाद डिस्चार्ज तो हो गईं, लेकिन घर आने पर दाहिना पैर बिल्कुल सुन्न हो चुका था।
ACMO की रिपोर्ट में भी लापरवाही की पुष्टि
जांच के आदेश प्रयागराज के डीएम की ओर से CMO ऑफिस को दिए गए थे। ACMO डॉ. आरसी पांडेय द्वारा की गई जांच में पाया गया कि ऑपरेशन के दौरान दी गई बार-बार की एनेस्थीसिया से मरीज को नर्व इंजरी हुई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि डॉक्टर ने मरीज की शिकायतों को अनदेखा किया।
FIR दर्ज, डॉक्टर को हाईकोर्ट से मिली राहत
CMO रिपोर्ट के आधार पर 24 जून 2025 को कर्नलगंज थाने में डॉ. शुभ्रा घोष के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई। अगले ही दिन डॉक्टर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर स्टे ले लिया। डॉक्टर ने सभी आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि 40 साल की सेवा में कभी कोई लापरवाही नहीं की। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि यदि गलती हुई थी तो दो महीने बाद FIR क्यों दर्ज कराई गई?
डॉक्टरों का समर्थन, मेडिकल एसोसिएशन उतरी मैदान में
FIR के 24 घंटे के भीतर इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन डॉक्टर के समर्थन में आ गया। एसोसिएशन ने दावा किया कि यह कार्रवाई मेडिकल पेशेवरों को दबाने का प्रयास है। डॉक्टरों की ओर से यह भी कहा गया कि यदि किसी डॉक्टर को सस्पेंड या ट्रेनिंग के लिए भेजा जाए तो इसकी प्रक्रिया निष्पक्ष होनी चाहिए।
जांच प्रक्रिया और पुलिस का बयान
कर्नलगंज थाने के इंस्पेक्टर प्रदीप सिंह ने बताया कि मामले की जांच जारी है। पुलिस CMO रिपोर्ट और सभी संबंधित बयानों के आधार पर कार्रवाई करेगी। पहले डॉक्टर, फिर पीड़िता साधना और बाद में अस्पताल के अन्य स्टाफ के बयान दर्ज किए जाएंगे।
रिटायर्ड कर्नल पिता की तहरीर ने खोली परतें
पीड़िता के पिता नंदलाल यादव, जो कि सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल रह चुके हैं, ने एफआईआर में साफ लिखा है कि बार-बार एनेस्थीसिया देने से उनकी बेटी को नर्व इंजरी हुई, जिससे वह चलने में असमर्थ हो गईं। उन्होंने डॉक्टर को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया।
क्यों उठा सवाल प्रशासनिक जांच पर?
डॉक्टर शुभ्रा ने यह भी सवाल उठाया कि जब मामला मेडिकल से जुड़ा था, तो जांच समिति की अध्यक्षता ADM (FR) को क्यों सौंपी गई? जांच में किसी वरिष्ठ मेडिकल विशेषज्ञ को शामिल क्यों नहीं किया गया?
सवालों के घेरे में लापरवाही और प्रशासनिक प्रक्रिया
इस पूरे मामले ने चिकित्सा पेशेवरों की जवाबदेही, प्रशासनिक जांच की निष्पक्षता और स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। आने वाले दिनों में कोर्ट के निर्णय और पुलिस की जांच इस बात को स्पष्ट करेंगे कि गलती किसकी थी—डॉक्टर की, प्रक्रिया की या फिर सिस्टम की।