लालू यादव के जन्मदिन पर ‘आंबेडकर’ की तौहीन, पैर के पास रख खिचवई तस्वीर.. वायरल हुई तो मचा बवाल

लोकप्रिय बिहार नेता लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन समारोह में वायरल हुआ एक वीडियो अब सियासी तूफ़ान बन चुका है। इस वीडियो में आरजेडी सुप्रीमो को डॉ. बी.आर. अंबेडकर की तस्वीर उनके पैर के पास रखकर फोटो सेशन करने के लिए मजबूर किया गया, जिससे राजनीतिक दलों और दलित समुदाय में भारी आक्रोश पैदा हो गया है। इस मामले ने बिहार चुनाव से पहले सत्ता की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।

वीडियो में क्या दिखा ?

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिख रहा है कि जन्मदिन समारोह के दौरान लालू प्रसाद की एक समर्थक उनके सामने अंबेडकर की तस्वीर प्रस्तुत करती है। बिगड़ती चुप्पी के बीच लालू तस्वीर को हाथ भी नहीं लगाते, बल्कि सुरक्षा कर्मी उसे उठा लेते हैं और समारोह आगे बढ़ जाता है, जिससे तस्वीर पैर के पास ही रह जाती है। यह दृश्य तेजी से चर्चा का विषय बन गया।

NDA ने साधा निशाना, दलित समुदाय में भड़का गुस्सा

NDA और भाजपा नेताओं ने इसे “दलबदल” और दलित समाज का अपमान करार दिया।

MSME मंत्री जीतन राम मांझी ने कटाक्ष किया कि “जब लालू सत्ता में नहीं हैं, तो तलवार से केक काटते हैं; सत्ता में आए तो शायद AK‑47 लाएंगे” — यह टिप्पणी बड़ी वायरल हुई।

भाजपा के राज्य अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने लालू के संस्कारों पर सवाल उठाया, कहा कि उनके नेतृत्व के दौरान बिहार में अपराध‑नियंत्रण का संकट था और ऐसी हरकतें उसी मानसिकता की झलक हैं।

आरजेडी का बचाव और विरोधियों पर पलटवार

आरजेडी ने आरोप लगाया कि वीडियो में दिखाई गई घटना विरोधियों द्वारा प्रचारित मानहानि का हिस्सा है।

पार्टी ने कहा कि तस्वीर पैर के समीप थी, लेकिन लालू को किसी प्रकार की अनुपयुक्तता की जानकारी नहीं थी और वह तस्वीर को अपने हाथ में लेने से इंकार कर रहे थे।

आरजेडी ने यह भी आरोप लगाया कि यह एक राजनीतिक षड़यंत्र है, विशेषकर दलित वोट बैंक को अस्थिर करने का इरादा हो सकता है।

दलित राजनीति पर गहरा प्रभाव

यह विवाद चुनावी एजेंडे में दलित राजनीति को एक बार फिर उभारकर लाया है।

विरोधी दलों का तर्क है कि यादव-नीतिश गुट द्वारा वर्षों से बिहार में सत्ता में बने रहने के दौरान दलितों की भावनाओं का सम्मान न होना, इस वीडियो घटना इसका ताजा उदाहरण है।

वहीं, आरजेडी और उसके सहयोगी दल इसे एक साजिश मानकर संवेदनशीलता के साथ निपटने की मांग कर रहे हैं।

आगे का राजनीतिक परिदृश्य

आने वाले दिनों में इस घटना का बिहार चुनावी रथ पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, यह देखने योग्य होगा।

विपक्ष इस मुद्दे को मोदी सरकार की नीतियों और गांधी परिवार पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है।

दूसरी ओर, विपक्ष इस विषय को मनमाना फैलाव करार देकर इसे चुनाव प्रचार का हिस्सा मान सकता है।

लालू प्रसाद के जन्मदिन समारोह में वायरल यह वीडियो धार्मिक और सामाजिक भावनाओं को छूने का कशमकश है। इसे दलित राजनीति, चुनावी रणनीति और राजनीतिक घमासान के संदर्भ में समझना जरूरी है। अब लक्ष्य यह है कि क्या यह नए विवाद की शुरुआत है या इसे राजनीतिक सरगर्मी से बाहर रखकर संभाला जाएगा।

 

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