खुद ही खुद का प्रमोशन.. वाह फील्ड मार्शल ‘असीम मुनीर’, क्या भारत से मार खाना अब प्रमोशन का पैमाना ?

पाकिस्तान की सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर को हाल ही में ‘फील्ड मार्शल’ की पदवी दी गई है। लेकिन ये कोई आम सैन्य सम्मान नहीं है — ये प्रमोशन ऐसे वक़्त में हुआ है जब जनरल मुनीर भारतीय ऑपरेशन ‘सिंदूर’ में रणनीतिक तौर पर बुरी तरह पिटे और देश की सुरक्षा को शर्मनाक झटका लगा। और मज़े की बात यह है कि यह फैसला पाकिस्तान की नागरिक सरकार ने नहीं, बल्कि सेना ने खुद अपने लिए लिया है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से हिला पाकिस्तान, फिर भी मिली पदोन्नति

7 मई 2025 को भारत द्वारा की गई मिसाइल स्ट्राइक — ऑपरेशन सिंदूर — ने पाकिस्तान के आतंकी ढांचों को सीधा निशाना बनाया। दावा है कि कई आतंकी शिविरों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। जबकि पाकिस्तानी सेना एक बयान जारी कर अपना चेहरा बचाने में लगी रही, हकीकत यह है कि उनके सिस्टम की पोल पूरी तरह खुल चुकी थी। लेकिन इसके बावजूद जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बना दिया गया — यह किसी सैन्य उपलब्धि से ज्यादा एक ‘पॉलिटिकल मैनेजमेंट’ जैसा लग रहा है।

पाकिस्तान में लोकतंत्र नाम की चीज़ बाकी है क्या?

जिस देश में प्रधानमंत्री से ज्यादा ताकतवर सेना प्रमुख हो, वहां फैसले कौन करता है, ये बताने की ज़रूरत नहीं। जनरल असीम मुनीर की फील्ड मार्शल के रूप में पदोन्नति भी शायद उन्हीं की सिफारिश पर उन्हीं को मिली। पाकिस्तान में एक प्रहसन चल रहा है — जनता को लोकतंत्र का मुखौटा दिखाया जाता है और असली सत्ता GHQ (जनरल हेडक्वार्टर, रावलपिंडी) में चलती है।

इतिहास में दूसरा फील्ड मार्शल, पर ये किस जीत के लिए?

1959 में अयूब खान को फील्ड मार्शल बनाया गया था, कम से कम उस समय उन्होंने सत्ता अपने हाथों में ली थी। लेकिन असीम मुनीर को यह पद ऐसे समय मिला जब सेना एक शर्मनाक हार का सामना कर रही है। सवाल ये है — आखिर किस उपलब्धि पर इतनी बड़ी पदवी दी गई? क्या भारत से मार खाना अब पाकिस्तान में प्रमोशन का पैमाना बन गया है?

ISI और MI दोनों संभालने वाले पहले अधिकारी

असीम मुनीर पाकिस्तान के इकलौते सैन्य अधिकारी हैं जिन्होंने ISI और मिलिट्री इंटेलिजेंस दोनों की कमान संभाली है। लेकिन इसके बावजूद भारतीय खुफिया तंत्र से बार-बार मात खा जाना बताता है कि काम ज्यादा प्रचार में हुआ, जमीनी नतीजे नदारद हैं।

खुद की पीठ थपथपाने की परंपरा या सेना का नया ड्रामा?

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाकर सेना अपनी गिरती साख को बचाना चाहती है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था रसातल में है, राजनीति हास्यास्पद स्थिति में है, और सेना — जिसकी छवि अब तक “सब कुछ कंट्रोल करने वाली ताकत” की रही है — उसे अब अपने जनरल की गद्दी चमकाकर जनता का ध्यान भटकाना पड़ रहा है।

प्रमोशन का जश्न या आत्मघोषित सम्मान?

पाकिस्तान की राजनीति और सैन्य ढांचे पर अगर नज़र डालें तो स्पष्ट है कि यह ‘पदोन्नति’ अधिकतर सेना की खुद की बनाई स्क्रिप्ट का हिस्सा है। भारत से हालिया पराजय और आतंकवाद के खिलाफ ढुलमुल रवैये के बावजूद असीम मुनीर को सर्वोच्च सैन्य सम्मान मिलना बताता है कि पाकिस्तान में असफलता ही सबसे बड़ी योग्यता बन चुकी है।

Related Articles

Back to top button