BJP का अपने ही विधायकों पर ‘गुप्त हमला’: तीन कैटेगरी में बंटे भाजपा MLA, गोपनीय एजेंसियाँ एक्टिव

उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपने ही विधायकों पर अविश्वास जताती नजर आ रही है। सत्ता में लगातार दो बार रहने के बावजूद अब पार्टी ने टिकट वितरण से पहले अपने मौजूदा विधायकों का ऑडिट कराने का फैसला लिया है। यानी जनता के प्रतिनिधि अब जनता की सेवा नहीं, पार्टी की गुप्त एजेंसियों के सर्वे की चाकरी में लगेंगे।
जनता नहीं, सर्वे एजेंसियां तय करेंगी विधायकों का भविष्य
भाजपा का यह कदम सीधे तौर पर इस बात का संकेत है कि पार्टी अब अपने नेताओं की जनता में स्वीकार्यता को लेकर आश्वस्त नहीं है। हर विधायक को पार्टी की गुप्त निगरानी एजेंसियों के जरिए परखा जाएगा। जनता की कसौटी तो बहाना है, असल में ये ऑडिट सत्ता के भीतर से उपजे अविश्वास की कहानी कहता है।
सरकार की निगरानी में होगा पार्टी का टिकट बंटवारा
हैरानी की बात यह है कि यह ऑडिट भाजपा खुद नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार करा रही है। यानी, विधायकों की परफॉर्मेंस तय करने के लिए सरकार ने कुछ निजी एजेंसियों को चुपचाप नियुक्त कर दिया है। ये एजेंसियां फील्ड में जाकर जनप्रतिनिधियों के खिलाफ या पक्ष में फीडबैक जुटा रही हैं — वह भी गोपनीय तरीके से। सवाल यह है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुने हुए प्रतिनिधियों का मूल्यांकन क्या जनता नहीं, बल्कि सरकार की एजेंसियां करेंगी?
403 सीटों पर जातीय गणित का खेल
भाजपा सिर्फ विधायकों का कामकाज नहीं देख रही, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को भी माप रही है। 403 विधानसभा क्षेत्रों में जाति आधारित रिपोर्ट तैयार की जा रही है। यानी टिकट अब न तो सेवा पर मिलेगा, न ही उपलब्धियों पर — बल्कि उस जाति पर निर्भर करेगा जो चुनावी गणित में फिट बैठे। यह वही BJP है जो ‘जातिवाद के खिलाफ’ बोलती रही है, लेकिन अंदरखाने पूरा तंत्र उसी पर आधारित है।
तीन कैटेगरी में बंटेंगे विधायक: A, B और C
इस सर्वे के बाद विधायक तीन श्रेणियों में बांटे जाएंगे — A, B और C। A में वो विधायक जो पार्टी के हिसाब से सबसे योग्य होंगे, B में औसत और C में वो जिनका टिकट लगभग कटना तय है। लेकिन यह प्रक्रिया कितनी पारदर्शी होगी? क्या यह विधायकों के बीच दरार और गुटबाजी को नहीं बढ़ाएगी?
किन बिंदुओं पर परखा जा रहा है विधायक?
भाजपा विधायकों को इन मापदंडों पर जांच रही है:
- पहली और दूसरी बार के विधायकों का प्रदर्शन
- विकास निधि का सही उपयोग
- जनता की समस्याओं के प्रति सक्रियता
- पिछली बार चुनावी मार्जिन और हार-जीत का कारण
- विधायक की जनता में छवि
2027 में जीतने की संभावनाएं
लेकिन क्या जनता की नज़र में ‘छवि’ का आकलन वाकई निष्पक्ष होगा? या यह पार्टी के आंतरिक समीकरणों और ऊपरी नेताओं की व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर आधारित रहेगा?
विपक्ष की ताकत पर भी पैनी नजर
इस ऑडिट के बहाने भाजपा विपक्षी दलों की स्थिति, जातीय पकड़ और क्षेत्रीय प्रभाव की भी गुप्त जानकारी जुटा रही है। यानी चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से नहीं, बल्कि पूरी तैयारी के साथ ‘मैनेज’ करने की कोशिश हो रही है। लोकतंत्र में जहां जनता फैसला करती है, वहां अब डेटा, सर्वे और एजेंसियां तय करेंगी कि किसे टिकट मिलेगा और कौन बाहर होगा।
‘हैट्रिक’ की आड़ में लोकतंत्र की बेआवाज सर्जरी
BJP अब 2027 में तीसरी बार सत्ता में आने की हैट्रिक की तैयारी कर रही है। लेकिन जो तरीका अपनाया जा रहा है वह लोकतांत्रिक नहीं बल्कि नौकरशाही और गुप्तचर एजेंसियों पर आधारित है। एक ओर खुद को ‘सबका साथ, सबका विकास’ कहने वाली पार्टी है, और दूसरी ओर अपने ही विधायकों पर भरोसा नहीं कर पा रही।