यूपी का अद्भुत गाँव ! हर घर में एक फौजी.. 1 ही परिवार के 5 भाइयों ने लड़ा युद्ध, अब कहा – “हमें भी मौका..”

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में स्थित सिरसा गांव को लोग प्यार से ‘सैनिकों का गांव’ कहते हैं। वजह साफ है—यहां हर घर से एक बेटा भारत की सेना, बीएसएफ या सीआरपीएफ में तैनात है। इस गांव के 250 से अधिक युवा आज भी देश की सीमाओं की रक्षा में जुटे हैं, जबकि 300 से ज्यादा पूर्व सैनिकों ने पहले ही राष्ट्र सेवा में अपना योगदान दिया है। सिरसा न सिर्फ अलीगढ़ बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय बन चुका है।
हर घर से निकलते हैं सैनिक
अलीगढ़ के छर्रा ब्लॉक का सिरसा गांव मानो भारतीय सेना की एक अनौपचारिक छावनी बन गया है। यहां के हर घर से कोई न कोई बेटा सेना में है। कोई बीएसएफ तो कोई सीआरपीएफ में कार्यरत हैं। यहां गांव में देशसेवा को लेकर एक अलग ही जज़्बा देखने को मिलता है। हर साल औसतन 5 से 6 युवा भारतीय सेना में भर्ती होते हैं, जबकि दर्जनों युवा सेना भर्ती की तैयारियों में लगे रहते हैं।
1957 में शुरू हुई यह परंपरा, आज तक जारी
इस गांव में सेना में भर्ती की यह परंपरा 1957 में शुरू हुई, जब 90 वर्षीय हरपाल सिंह जाट रेजिमेंट में हवलदार बने। उन्होंने भारत-चीन और भारत-पाक युद्धों में बहादुरी से हिस्सा लिया। हरपाल सिंह के सेना में भर्ती होने के बाद यह परंपरा गांव में गहराई से बस गई और अगली पीढ़ियों ने इसे आगे बढ़ाया।
अफ्रीका तक पहुंची देशभक्ति की गूंज
गांव के 87 वर्षीय श्योदान सिंह ने 1960 में जाट रेजिमेंट में सिपाही के तौर पर सेवा शुरू की। उन्होंने भारत-चीन और भारत-पाक युद्धों के अलावा दक्षिण अफ्रीका में कांगो युद्ध में भी भाग लिया। सेवा के दौरान उन्हें सात पदकों से नवाज़ा गया। उनके परिवार में आज तीसरी पीढ़ी सेना में सेवा दे रही है।
बेटों और पोतों की वीरगाथा
श्योदान सिंह के बेटे अशोक कुमार, विनोद कुमार, भूरा सिंह और योगेंद्र सिंह सभी सेना में सेवा देकर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अब उनके पोते रोहन सिंह, मोहन सिंह, पंकज सिंह और दीपू सिंह देश की सीमाओं पर तैनात हैं। यह परंपरा गांव की जड़ों में बस चुकी है और युवा इसमें गर्व महसूस करते हैं।
एक ही परिवार के पांच भाइयों ने लड़ी युद्ध की जंगें
कैप्टन (सेवानिवृत्त) केहरी सिंह ने बताया कि उन्होंने और उनके चार भाई—सरदार सिंह, रामेंद्र सिंह, सूबेदार मुख्तियार सिंह और शौली सिंह ने भारत-पाक युद्धों में हिस्सा लिया। आज उनका पौत्र ऋषि चौधरी जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में तैनात है। एक ही परिवार के इतने सदस्य देश की सेवा में हों, यह अपने आप में मिसाल है।
कारगिल योद्धा ओमवीर सिंह, अब भी तैयार हैं जंग के लिए
ओमवीर सिंह, जो कि नायब सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, ने 1998 में सेना जॉइन की और कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया। उनके पिता स्व. नन्नू सिंह भी सेना में हवलदार थे और भारत-पाक युद्ध लड़ चुके थे। ओमवीर सिंह कहते हैं कि अगर देश ने पुकारा तो वे आज भी सीमा पर जाने को तैयार हैं।
सिरसा गांव की कहानी है प्रेरणा का स्रोत
अलीगढ़ का सिरसा गांव सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा की जीवंत मिसाल है। यहां की मिट्टी से निकलने वाले सपूत आज भी देश की रक्षा में मोर्चा संभाले हुए हैं। यह गांव दिखाता है कि जब परवरिश में देशभक्ति हो, तो हर पीढ़ी सैनिक बनकर ही उभरती है।