3 साल की बच्ची ने लिया संथारा.. आधे घंटे की धार्मिक विधि, 10 मिनट में दुनिया से विदा हो गई मासूम

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से एक भावनात्मक और ऐतिहासिक मामला सामने आया है, जहां मात्र 3 साल 4 महीने और 1 दिन की एक बच्ची ने “संथारा” लिया और कुछ ही मिनटों में इस संसार से विदा हो गई। ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही इस मासूम बच्ची का नाम वियाना जैन था, जिसे 21 मार्च को आध्यात्मिक संकल्प के तहत जैन धर्म के सर्वोच्च व्रत संथारा (सल्लेखना) में शामिल किया गया।

क्या है संथारा?

जैन धर्म में मृत्यु से पहले आत्मिक शुद्धि और त्याग का व्रत

संथारा या सल्लेखना एक जैन धार्मिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम क्षणों में स्वेच्छा से अन्न और जल का त्याग करता है। यह निर्णय सामान्यतः तब लिया जाता है जब व्यक्ति असाध्य बीमारी से ग्रसित हो या जीवन में कोई उपचार संभव न हो। इसे मोक्ष की ओर अग्रसर होने की एक आध्यात्मिक साधना माना जाता है।

आधे घंटे की धार्मिक विधि, दस मिनट में विदा हुई मासूम

वियाना के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन, जो दोनों आईटी प्रोफेशनल हैं, ने बताया कि उनकी बेटी पिछले साल दिसंबर में ब्रेन ट्यूमर से ग्रसित हुई थी। इलाज के लिए वे मुंबई गए, लेकिन कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। डेढ़ महीने पहले वे अपनी बेटी को जैन मुनि श्री राजेश महाराज के दर्शन के लिए ले गए, जहां बच्ची की स्थिति को गंभीर बताते हुए संथारा का सुझाव दिया गया। जिसके बाद संथारा की प्रक्रिया आधे घंटे तक चली और उसके 10 मिनट बाद ही बच्ची ने प्राण त्याग दिए।

धार्मिक विश्वास से लिया गया कठिन निर्णय

परिवार ने इस धार्मिक निर्णय को बेहद गंभीरता से लिया और केवल कुछ करीबी रिश्तेदारों को इसकी जानकारी दी। वियाना के संथारा को जैन मुनि श्री राजेश महाराज और सेवाभावी राजेंद्र मुनि महाराज साहब के सान्निध्य में पूर्ण कराया गया। जैन समाज ने इस निर्णय के लिए माता-पिता को सराहा और उन्हें बीते बुधवार को इंदौर के कीमती गार्डन में एक सादे समारोह में सम्मानित भी किया।

गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ नाम

जैन समाज के अनुसार, इतनी कम उम्र में संथारा लेने का यह पहला मामला है, जिसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि जैन परंपरा के इतिहास में एक नई मिसाल भी है।

बालिका का धार्मिक जीवन और अंतिम संकल्प

वियाना के माता-पिता ने बताया कि उनकी बेटी बेहद चंचल और धार्मिक प्रवृत्ति की थी। उसे बचपन से ही गोशाला जाना, पक्षियों को दाना डालना, गुरुदेव के दर्शन करना और पचखाण (व्रत) जैसी धार्मिक क्रियाओं से जोड़ा गया था। यही वातावरण और धार्मिक संस्कार इस निर्णय की पृष्ठभूमि बने।

समाज के लिए प्रेरणा बनी वियाना की संथारा यात्रा

वियाना की इस आध्यात्मिक यात्रा ने समाज में गंभीर विचार का विषय प्रस्तुत किया है। इस घटना ने यह भी दिखाया है कि जैन धर्म में आस्था और त्याग की परंपरा कितनी गहराई से जुड़ी हुई है। देशभर में इस निर्णय की व्यापक चर्चा हो रही है, और कई लोग इसे धर्म, भावनात्मक साहस और आस्था का अनोखा संगम मान रहे हैं।

 

तीन साल की बच्ची वियाना जैन की संथारा यात्रा सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिकता की अद्वितीय मिसाल बन गई है। यह घटना समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि मृत्यु का सामना भी कितना शांतिपूर्वक और गरिमा से किया जा सकता है।

 

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