आपको पता है, मकर संक्रांति को खुलता है स्वर्ग का द्वार!

हिन्दू शास्त्रों में मकर संक्रांति को पुण्यदायी पर्व माना गया है। इस दिन श्राद्धकर्म तथा तीर्थ स्नान करना फलदायी माना गया है।

योगेश कुमार गोयल

मूलतः सूर्य उपासना का प्राचीनतम पर्व मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 या 15 जनवरी को भारत सहित कई अन्य देशों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। इसी दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं, खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं। इसीलिए यह पर्व सारे भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व 14 अथवा 15 जनवरी को ही मनाए जाने के पीछे सूर्य की भूमिका का विशेष महत्व है। इस वर्ष यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। हालांकि तारीख के हिसाब से कुछ लोग इसे 14 जनवरी को भी मना रहे हैं। माना जाता है कि इसी दिन सूर्य देवता इन्द्रधनुषी रंग से मेल खाते अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर मकर राशि में प्रवेश करते हुए अपनी उत्तर दिशा की यात्रा आरंभ करते हैं, जो हमारे जीवन को उजाले से भरने तथा अंधकार से छुटकारे का प्रतीक है।
मान्यता है कि इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी भुलाकर उनके घर गए थे। कहा जाता है कि महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए मकर संक्रांति के ही दिन तर्पण किया था। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में होने वाले परिवर्तन यानी सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आने को अंधकार से प्रकाश की ओर परिवर्तन माना जाता है। सूर्य प्रायः 14 या 15 जनवरी को ही मकर राशि में प्रवेश करता है, इसीलिए उसी दिन मनाए जाने वाले पर्व को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है। यह हिन्दू पर्व भारत के अलग-अलग राज्यों में भी अलग-अलग तरीकों और नामों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव इत्यादि नामों से जाना जाता है जबकि मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है।
दक्षिण भारत में यह त्योहार ‘पोंगल’ उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण, माघी, खिचड़ी, पौष संक्रांति, भोगाली बिहू, शिशुर सेंक्रांत आदि नामों से भी जाना जाता है। नेपाल में इसे माघे संक्रांति या माघी संक्रांति व खिचड़ी संक्रांति, श्रीलंका में पोंगल या उझवर तिरूनल, बांग्लादेश में पौष संक्रांति, थाईलैंड में सोंगकरन, म्यांमार में थिंयान, कम्बोडिया में मोहा संगक्रान तथा लाओस में पिमालाओ नाम से मनाया जाता है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति से ही दिन तिल-तिल करके बढ़ता है अर्थात इस दिन से दिन की अवधि रात के समय से अधिक होने लगती है यानी दिन लंबे होने लगते हैं, जिससे खेतों में बोए हुए बीजों को अधिक रोशनी, अधिक ऊष्मा और अधिक ऊर्जा मिलती है, जिसका परिणाम अच्छी फसल के रूप में सामने आता है। इसलिए इस अवसर का खासतौर से किसानों के लिए तो बड़ा महत्व है।
मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द जहां मकर राशि को इंगित करता है, वहीं ‘संक्रांति’ शब्द का अर्थ है संक्रमण अर्थात प्रवेश करना। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को ही संक्रांति कहा जाता है। सूर्य हर माह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है अर्थात् एक-एक करके वर्षभर में कुल 12 राशियों में प्रवेश करता है। सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे ‘संक्रांति’ कहा जाता है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति और अक्ष पर भ्रमण की वजह से दिन और रात होते हैं। जब पृथ्वी का कोई भाग सूर्य के सामने आता है, उस समय वहां दिन होता है जबकि पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने नहीं होता, वहां रात होती है। यह पृथ्वी की दैनिक गति कहलाती है। पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा 12 महीने में पूरी करती है, जिसे पृथ्वी की वार्षिक गति कहा जाता है। इस वार्षिक गति के आधार पर ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय पर अलग-अलग ऋतुएं होती हैं।

हिन्दू शास्त्रों में मकर संक्रांति को पुण्यदायी पर्व माना गया है। इस दिन श्राद्धकर्म तथा तीर्थ स्नान करना फलदायी माना गया है। इस दिन लाखों श्रद्धालु विभिन्न तीर्थ स्थलों पर पवित्र स्नान करते हैं और तिल से बने पदार्थों का दान करते हैं। गंगासागर पर तो इस अवसर पर तीर्थस्नान के लिए लाखों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है, जो इस पर्व की महत्ता को परिलक्षित करता है। मान्यता है कि इस दिन देशभर के किसी भी पवित्र तीर्थ, संगम स्थल या गंगा अथवा यमुना के तट पर स्नान करने से आध्यात्मिक, शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक ऊर्जा मिलती है। कहा जाता है कि इसी दिन स्वर्ग का द्वार भी खुलता है और इस विशेष दिन को सुख-समृद्धि का दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान, पूजा इत्यादि करने से पुण्य प्रभाव हजारों गुना बढ़ जाता है। मकर संक्रांति पर्व ‘पतंग महोत्सव’ के रूप में भी मनाया जाता है। दरअसल इस दिन लोग न केवल अपने घर की छतों पर या खुले मैदानों में पतंग उड़ाते हैं बल्कि देश के कई हिस्सों में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती हैं। चूंकि कड़ाके की ठंड के इस मौसम में सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक, स्फूर्तिदायक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यधिक लाभदायक माना जाता है, इसीलिए मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने के पीछे कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना मुख्य कारण माना जाता है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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