चीन से अपनी आन बचा पाएगा ताइवान ?

यूक्रेन का साथ देने के लिए अमेरिका नाटो के साथ कर रहा तैयारी

लखनऊ: चीन ताइवान को एक देश नहीं बल्कि अपना ही प्रांत मानता है और उसका विलय चाहता है। हाल ही में ताइवान के प्रति चीन की गतिविधियां काफी आक्रामक रही हैं और इस मुद्दे पर रूस ने चीन के पक्ष में बयान देकर मामले को फिर गर्मा दिया है। आइये जानते हैं कि क्या है पूरा विवाद और किस तरह एक महाशक्ति से लोहा ले रहा ताइवान ?

रूस का चीन को ‘रिटर्न गिफ्ट’

ताइवान (Taiwan) के मुद्दे पर चीन (China) ने एक और कूटनीतिक चाल चली है । ताइवान को बलपूर्वक नहीं बल्कि शांतिपूर्वक चीन में मिलाने की बात कहकर अगले ही दिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन से ताइवान को चीन का हिस्सा कहलवाना, चीन की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। दरअसल, यूक्रेन (Ukraine) पर रूस (Russia) के पक्ष में बयान देने के बाद बदले में रूस से रिटर्न गिफ्ट तो बनता ही था। अब बात निकली है तो दूर फिर तलक जायेगी । जाहिर है, ऐसे घटनाक्रम संकेत देते हैं कि रूस और चीन, अमेरिका और नाटो (NATO) से मुकाबले के लिए किसी बड़ी रणनीति पर काम कर रहे हैं।

बलि का बकरा बनेंगे यूक्रेन, ताइवान ?

ताइवान और चीन के विवाद की पड़ताल से पहले कुछ नये घटनाक्रमों को जानना जरूरी है । रूस का यूक्रेन से पंगा चल रहा है और यूक्रेन का साथ देने के लिए अमेरिका नाटो (North Atlantic Treaty Organization) के साथ तैयारी में जुटा है। नाटो वही सैन्य गठबंधन (military alliance) है जिसमें किसी भी सदस्य देश पर हमला पूरे संगठन पर हमला माना जाता है। हालांकि यूक्रेन नाटो में नहीं है लेकिन उसे लाने की कोशिशें चल रही हैं। उधर दूसरी ओर चीन ताइवान से उलझा हुआ है और इस मामले में अमेरिका (America) ताइवान का साथ देने को बेताब है। इस तरह दोनों मामलों के केंद्र में है अमेरिका, जिसकी चीन और रूस से तनातनी से दुनिया वाकिफ है। अगर हालात नहीं सुधरे तो महाशक्तियों (Super Powers) के आपसी द्धंद में बलि का बकरा बन सकते हैं यूक्रेन और ताइवान । दोनों छोटे देश हैं, अपेक्षाकृत शांत हैं और अपनी संप्रभुता (sovereignty) को स्थापित करने के लिए जूझ रहे हैं ।

स्वाभिमान बनाम अभिमान का संघर्ष

अब बात ताइवान बनाम चीन की, जो कि सीधे तौर पर स्वाभिमान बनाम अभिमान से जुड़ी है । बड़ी बात यह है चीन अब ताइवान को लेकर ज्यादा आक्रामक (Aggressive) है, जिसकी शुरुआत 2012 में शी जिनपिंग (Xi Jinping) के सत्ता संभालने के साथ ही शुरू हो गई थी । हाल ही में चीन की वायुसेना ने अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए एक महीने में 60 बार ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र (Air Defense Territory) में घुसपैठ की थी । तनाव दरअसल तभी से बढ़ा हुआ है । ऐसे में शांतिपूर्वक एकीकरण (Unification) की चीन की बात पर सवाल उठना लाजिमी है।

ऐन-केन-प्रकारेण विलय चाहता है चीन

चीन ताइवान का विलय (merger) चाहता है जबकि ताइवान बार-बार कह रहा है कि वो एक स्वतंत्र देश है और चीन गणराज्य का हिस्सा नहीं था। वो ‘एक चीन’ (One China) और उसके ‘एक देश-दो प्रणाली’ (One Nation-Two System) के प्रस्ताव को खारिज करता  रहा है । ताइवान का कहना है कि देश का भविष्य ताइवान के लोगों के हाथों में है और उसे कोई चीन के बनाए रास्‍ते पर चलने के लिए मजबूर नहीं कर सकता । वहीं चीन कभी ताइवान को बुरी तरह डराता है, कभी धमकियां देता है, कभी प्रस्ताव देता है और कभी पुचकार भी लेता है,लेकिन ताइवान सतर्क है और अपनी हैसियत के मुताबिक हर स्तर पर तैयारी में जुटा रहता है। अमेरिका से हथियार लिये जा रहे हैं और कूटनीतिक मोर्चे (Diplomatic Fronts) पर समर्थन जुटाने की कोशिश की जा रही है ।

चीन-ताइवान संबंध का अजब इतिहास

चीन और ताइवान के संबंध अजब रहे हैं। इतिहास का संदर्भ लें तो इसकी शुरुआत 1949 में चीनी भूभाग में हुए गृहयुद्ध (Civil War) से जुड़ी है जब खूनी संघर्ष के बाद हुए अघोषित विभाजन (Partition)  में चीन के बड़े भूभाग पर माओ त्से तुंग (Mao Tse-tung) के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी काबिज हो गई और च्यांग काइ शेक (Chiang Kai-shek) की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कुओमितांग  (Kuomintang) पार्टी ने मात खाने के बावजूद ताइवान पर कब्जा कर लिया और सरकार बना ली । दरअसल, माओ की सेना समुद्र के बीच बने ताइवान पर हमला नहीं कर सकी क्योंकि उनके पास नौसेना नही के बराबर थी ।

एक विद्रोही प्रांत है ताइवान : चीन

इसके बाद ताइवान में अलग राजनीतिक व्यवस्था (Political System) धीरे-धीरे स्थापित होने लगी लेकिन चीन उसे अलग देश मानने के लिए तैयार नहीं हुआ। आज भी नहीं है और सारी तनातनी इसी को लेकर है। चीन ताइवान को अपना ही एक विद्रोही प्रांत (Rebellion State) ठहराते हुए उसे वापस चीन में मिलाने की कोशिशें करता रहा। आगे चलकर ‘एक राष्ट्र – दो व्यवस्था’ (One Nation-Two System) के तहत हांगकांग ( Hong Kong) और मकाऊ (Macau) की तरह ताइवान (Taiwan) को भी अपने नियंत्रण में लेने की मुहिम छेड़ी गई लेकिन अभी तक चीन इसमें सफल नहीं हुआ है ।

स्वतंत्र पहचान के लिए जूझता ताइव

ताइवान का इतिहास खंगालें तो बरसों पहले डच, जापानी, पुर्तगाली और स्पेनी शासक भी इसे हथियाने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन सभी नाकाम रहे अर्थात अपने एक स्वतंत्र अस्तित्व के लिए ताइवान की जनता ने बहुत कुर्बानियां दी हैं। यहां रह रहे ज्यादातर लोग मूल निवासी हैं । वे पूरी तरह साक्षर हैं और बौद्ध धर्म (Buddhism) के अनुयायी हैं । विज्ञान, तकनीक और खेलों में संपन्नता के साथ-साथ यहां के लोग शांति प्रिय, परिश्रमी और प्रगतिशील हैं । चीन की आधिपत्यवादी उत्पीड़न के एक नहीं कई किस्से हैं । मिसाल के लिए ओलंपिक (Olympic) में ताइवान को ‘चाइनीज ताइपे’ (Chinese Taipei)  नाम से ही हिस्सा लेने की इजाजत है और अगर उसका कोई खिलाड़ी मेडल जीतता है तो ध्वज (National Flag) नहीं फहराया जाता और राष्ट्रगान (National Anthem) भी नहीं बजाया जाता ।

ताइवान जुटा पाएगा समर्थन ?

ताइवान की ढाई करोड़ जनता की लड़ाई उसकी आन (dignity) और स्वाभिमान (Pride) की लड़ाई है।  यह सच है कि सामरिक शक्ति में ताइवान चीन के आगे कहीं नहीं ठहरता लेकिन उसका साथ देने के लिए कई देश तैयार हैं, खासकर अमेरिका (U.S.) और जापान (Japan) । ताइवान जानता है कि एक महाशक्ति से दूसरी महाशक्ति ही निपट सकती है । चीन के दुश्मनों की वैसे भी भरमार है और आस-पड़ोस ही दर्जन भर देशों से उसके विवाद हैं । भले ही ताइवान के दुनिया के देशों के साथ राजनयिक संबंध (Diplomatic Relation) नहीं हैं लेकिन अनौपचारिक (Informal) रूप से कई देश उससे जुड़े हुए हैं जिनमें कई छोटे-बड़े देश भी शामिल हैं । इनमें से कई ऐसे हैं जिनकी चीन से खुन्नस है। ऐसे में चीन के लिए भी कोई कड़ा कदम आसान नहीं होगा ।

 

(वरिष्ठ पत्रकार विजय शर्मा )

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