रुपाणी को हटाने के 5 कारण; इससे पहले रावत, सोनोवाल और येदियुरप्पा को भी हटा चुकी है BJP

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। ऐसा लग रहा है कि भाजपा अपने मुख्यमंत्रियों को बदलने के मिशन पर है। पिछले छह महीने में पार्टी अपने 5 मुख्यमंत्री बदल चुकी है। हालांकि, पांचों बदलाव बेहद आसान रहे और कहीं भी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। इससे पहले जुलाई में बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था।

65 साल के रुपाणी अगस्त 2016 में मुख्यमंत्री बनाए गए थे, जब 75 वर्षीय आनंदी बेन पटेल ने उम्र को आधार बनाकर इस्तीफा दिया था। रुपाणी के नेतृत्व में ही भाजपा ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बावजूद 2017 विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी। गुजरात में विधानसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले मुख्यमंत्री के पद छोड़ने को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं।

रुपाणी को हटाने की ये हो सकती हैं वजहें-

1. केंद्रीय नेतृत्व नहीं था खुश

रुपाणी के इस्तीफे की मुख्य वजह उनके नॉन-परफॉर्मेंस से जोड़ा जा रहा है। सूत्र इसे “कोर्स करेक्शन’ कह रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व रुपाणी के परफॉर्मेंस से संतुष्ट नहीं था। स्ट्रैटजी सिम्पल है- अगर राज्य में नेतृत्व के खिलाफ कोई विरोध है तो उसे अभी ही खत्म किया जाए। चुनावों का इंतजार न किया जाए। उत्तराखंड और कर्नाटक में हम ऐसा देख चुके हैं। कर्नाटक में येदियुरप्पा को हटाया गया और उत्तराखंड में दो-दो रावत को।

2. संघ का फीडबैक

पिछले दिनों खबरें आई थीं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रुपाणी से खुश नहीं है। संघ का यह फीडबैक भी रुपाणी के खिलाफ गया। संघ का जमीनी सर्वे मुख्यमंत्री के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी दिखाता है। सूत्र बताते हैं कि संघ के फीडबैक के आधार पर पार्टी अगले चुनावों में कम से कम 50 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों के चेहरे बदल सकती है। कई विधायकों के टिकट कटना भी तय बताया जा रहा है।

3. कोविड-19 क्राइसिस से निपटने में नाकामी

गुजरात में कोविड-19 को लेकर मिस-मैनेजमेंट देखने को मिला। पिछले साल खबरें आई थीं कि खुद मोदी और शाह भी रुपाणी से नाराज थे। गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने कहा कि गुजरात के लोगों को अच्छा लगता, यदि रुपाणी कोविड-19 संकट से निपटने में नाकामी की वजह से इस्तीफा देते। यह इस्तीफा तो 2022 के विधानसभा चुनावों को लेकर लिया गया है।

4. पाटीदार आंदोलन को दबाने में नाकामी

भाजपा ने रुपाणी को विधानसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले हटाया है। पार्टी ने 2017 में भले ही रुपाणी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी, उसकी सीटें दो अंकों में रह गई थीं। रुपाणी से पाटीदार आंदोलन का गढ़ रहे सौराष्ट्र में अपना दबदबा बढ़ाने की उम्मीद की गई थी। रुपाणी को जब अगस्त 2016 में अमित शाह ने मुख्यमंंत्री के तौर पर चुना तो लग रहा था कि वे पाटीदार आंदोलन को दबा देंगे, पर ऐसा हुआ नहीं।

5. सभी समुदायों को नहीं साध सके रुपाणी

रुपाणी जैन-बनिया कम्युनिटी से ताल्लुक रखते हैं, जिसकी गुजरात की आबादी में हिस्सेदारी 5% है। 2016 में रुपाणी को न्यूट्रल कैंडिडेट के तौर पर आगे बढ़ाया गया था। उम्मीद की जा रही थी कि वे बाकी समुदायों के साथ सामंजस्य बिठा लेंगे, पर वे ऐसा नहीं कर सके। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव ऐसे नेता के नेतृत्व में नहीं लड़ना चाहती, जिसके साथ ज्यादातर समुदाय न हो। रुपाणी के खिलाफ कुछ समुदायों के नेता लामबंद भी हो रहे थे।

इससे पहले भाजपा ने इन मुख्यमंत्रियों से भी लिया इस्तीफा

येदियुरप्पा ने 26 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दिया था। चार बार मुख्यमंत्री रहे, पर कभी भी 5 साल कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

बीएस येदियुरप्पाः उम्र को वजह बताया, पर विरोध था मुख्य वजह

येदियुरप्पा ने 76 वर्ष की उम्र में 26 जुलाई 2019 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। भाजपा ने तय कर रखा है कि 75 वर्ष में नेताओं को रिटायरमेंट देना है, पर येदियुरप्पा इसके अपवाद साबित हुए। उन्होंने कर्नाटक में भाजपा के लिए कई रिकॉर्ड बनाए। वे भाजपा के नेतृत्व वाले NDA के 18 मुख्यमंत्रियों के साथ ही पार्टी के पदाधिकारियों और केंद्रीय मंत्रियों में भी सबसे बुजुर्ग रहे।उन पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने का दबाव बन रहा था। 16 जुलाई को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और उसके बाद से ही अफवाहों का दौर शुरू हो गया था। हालांकि, येदियुरप्पा पत्रकारों से बातचीत में इन दावों को खारिज करते रहे और 26 जुलाई को उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मार्च में इस्तीफा दिया था। कारण जानने पर रावत ने कहा था कि दिल्ली जाकर पूछिए।

त्रिवेंद्र सिंह रावतः हरिद्वार कुंभ में कोविड-19 मैनेजमेंट रहा फेल

10 मार्च को उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान यह बदलाव हुआ था। सूत्रों का कहना है कि इस बदलाव की बड़ी वजह हरिद्वार कुंभ में कोविड-19 का मिस-मैनेजमेंट रहा था। त्रिवेंद्र से कई साधु-संत भी नाराज हो गए थे और उन्होंने भी इस्तीफे की मांग की थी।

असम में सोनोवाल और हिमंता में मुख्यमंत्री पद के लिए बराबरी का संघर्ष था। बाद में पार्टी ने हिमंता को मुख्यमंत्री बनाया और सोनोवाल को केंद्रीय मंत्री बनाया।

सर्बानंद सोनोवालः सरमा को देना था चांस

भाजपा ने 2016 में असम विधानसभा चुनाव सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में लड़ा। उस समय वे केंद्रीय मंत्री थे। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर असम भेजा गया। भाजपा ने पहली बार असम में अपनी सरकार बनाई थी। सोनोवाल पांच साल मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद भी 2021 के चुनावों में पार्टी ने सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया।भाजपा नए मुख्यमंत्री के तौर पर सोनोवाल या हिमंता विसवा सरमा में से एक को चुनने को लेकर पसोपेश में थी। चुनाव के नतीजे 2 मई को घोषित हुए और इसके बाद हिमंता का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित हुआ। इसके बाद 7 जुलाई को केंद्रीय कैबिनेट में फेरबदल के समय सोनोवाल को मंत्री बनाया गया।

तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली और 2 जुलाई को इस्तीफा दे दिया।

तीरथ सिंह रावतः विधायक बनना आसान न था

भाजपा के जिन पांच मुख्यमंत्रियों को बदला गया है, उनमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का कार्यकाल सबसे छोटा रहा। उन्होंने 10 मार्च को पदभार ग्रहण किया और 2 जुलाई को इस्तीफा दे दिया। वे तीन महीने भी कुर्सी पर नहीं रह सके।तीरथ गढ़वाल से लोकसभा सांसद थे। दावा यह भी किया गया कि उत्तराखंड में एक साल बाद चुनाव होने थे। इस वजह से चुनाव आयोग किसी भी विधानसभा सीट पर उपचुनाव नहीं करवाने वाला था। अगर तीरथ मुख्यमंत्री बने रहते तो उनके लिए विधानसभा सदस्य बन पाना मुश्किल हो सकता था। कानूनन उन्हें 10 सितंबर तक किसी भी स्थिति में विधानसभा का सदस्य होना आवश्यक था। तीरथ के बाद पुष्कर सिंह धामी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। तीरथ अब भी लोकसभा सदस्य हैं।

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