ईवीएम पर क्यों उठते है सवाल? लोग क्यों करते हैं बैलेट पेपर की पैरवी, देखिए सर्वें

कल जिस तरह से मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने ईवीएम जैसे गंभीर मुद्दे को अपनी शेरो शायरी से हल्के अंदाज में लिया, उसे देखकर लगता है कि ईवीएम को लेकर प्रशासन या सरकार जनता में तस्वीर साफ करने के मूड में कतई नहीं है। इसके साथ ही शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम से जुड़ी सारी याचिकाओं को खारिज कर दिया, तो लगता है कि ईवीएम और बैलेट के मुद्दे को खास तौर से समझने की ज़रूरत है।

अकसर विपक्षी पार्टियां बैलेट से चुनाव कराने की वकालत करती रहती है और सरकार पर इल्ज़ाम भी लगाती है कि ईवीएम में छेड़छाड़ की जाती है। इसी वजह से सरकार अपनी सीट बचाने में कामयाब हो जाती है।

बैलेट पेपर से कैसे होता था चुनाव?

जब देश आजाद हुआ था, तो साल 1952 में सबसे पहले आम चुनाव हुआ था। उस वक्त मतदाताओं को जो पर्ची दी गई थी, उसमें बैलेट पेपर नंबर के साथ राष्ट्रीय चिन्ह होता था। इसमें उम्मीदवार का नाम नहीं लिखा होता था। मतदाता उस पर्ची को अपनी पसंद की मतपेटी में डाल देता था। वहां रखी मतपेटियों के अंदर भी उम्मीदार का चुनाव चिन्ह होता था ताकि वोट की गिनती करते समय कोई गड़बड़ न हो।

इसके बाद बैलेट में सुधार होता गया। फिर मतदाता का सत्यापन होने के बाद उसे मतपत्र दिया जाता था। वोटर अपनी पसंद के उम्मीदवार/चिह्न पर मोहर लगाकर उसे मतपेटी के अंदर डालता था। इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) और उम्मीदवारों के एजेंटों की उपस्थिति में वोटों को गिनती मैन्युअल तरीके से की जाती थी।

पेपर बैलेट सिस्टम में माना जाता है कि वोटर उम्मीदार के नाम के आगे ही मोहर लगाकर संतुष्ट होता था कि उसने अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट दिया है। साथ ही वोटों की गिनती खुली और पारदर्शी थी।

ईवीएम पर विवाद क्यों?

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, जिसे ईवीएम के नाम से जानते है। इस मशीन को अगर साधारण शब्दों में समझा जाए तो बैटरी से चलने वाली मशीन जिसमें वोटर अपनी पसंद के उम्मीदवार के आगे लगे नीले बटन को दबा देता है। इसमें पेपर या मुहर का प्रयोग नहीं किया जाता। कह सकते हैं कि ये वोट डालने का इलोक्ट्रोनिक तरीका है।

साल 1977 में ईवीएम से चुनाव कराने का विचार रखा गया था और 1982 में केरल के पारूर विधानसभा उपचुनावों में इसे इस्तेमाल किया गया था। हालांकि 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी लेकिन लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत 1989 में इसे फिर से शुरू कर दिया गया।

वैसे भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों जैसे कि अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी में ईवीएम को लेकर हमेशा चर्चा ही रही है। कहा जाता है कि ईवीएम मशीन के रखरखाव में भारी भरकम खर्चा होता है। लोगों को मशीन का इस्तेमाल करने में परेशानी होती है। इसकी पारदर्शिता को लेकर भी अकसर सवाल उठते रहे हैं।

लोगों का कहना है कि मोहर लगाने से उन्हें यकीन था कि हमने अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट दिया है जबकि ईवीएम में बटन दबाने के बाद भी पता नहीं होता कि वोट दर्ज हुआ है या नहीं।

ऐसी कई खामियों के चलते ईवीएम को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इसलिए हाल ही में हमारे संवाददाता ने लखनऊ में लोगों से बैलेट और ईवीएम के चुनाव पर सर्वे किया, आप भी देखिए इस वीडियो को –

 

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