मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में पत्रकारों पर राजद्रोह जैसे इतने मामले क्यों?

असम में 'द क्रॉस करंट' नामक एक असमिया न्यूज़ पोर्टल के ख़िलाफ़ राज्य के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय ने 'निर्दोष व्यक्तियों की छवि ख़राब करने के इरादे से झूठी और मनगढ़ंत जानकारी' प्रकाशित करने का पुलिस केस दर्ज करवाया गया है.

‘द क्रॉस करंट’ के ख़िलाफ़ दर्ज पुलिस केस पहला मामला नहीं है, हाल के दिनों में मीडिया बार-बार सरकार के निशाने पर रहा लिहाजा कुछ लोग इसे सेंसरशिप की कोशिश का नाम भी दे रहे हैं.

और मीडिया पर कथित दबाव के ये मामले असम तक ही सीमित नहीं हैं. दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में भी ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जहां सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों पर हमले तक हुए हैं.

कुछ घटनाएं जहां पत्रकारों पर मामले दर्ज हुए है या फिर उन्हें धमकाया गया है –

असम –

असमिया समाचार चैनल ‘प्रतिदिन टाईम’ ने चंद माह पहले एक आडियो क्लिप जारी किए जिसमें चैनल के दावे के मुताबिक़ सरकार के एक मंत्री कथित तौर पर चैनल के दो पत्रकारों को घर से घसीटने और ग़ायब कर देने की धमकी दे रहे थे.

बाद में पत्रकारों ने असम सरकार के मंत्री पीजूष हज़ारिका के ख़िलाफ़ मानहानि, आपराधिक धमकी और दूसरी धाराओं में पुलिस केस दर्ज करवाया.

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के क़रीबी माने जाने वाले जल संसाधन, संसदीय कार्य, सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री पीजूष हज़ारिका को पुलिस ने पूछताछ के लिए भी बुलाया था. पूरा विवाद नागरिकता क़ानून को लेकर चुनावी सभा में मंत्री की पत्नी के भाषण को लेकर उठा.

लवलीना बोरगोहाईं के ओलंपिक क्वालीफाई करने पर लगाए गए पोस्टर्स और होर्डिंग्स

‘द क्रॉस करंट’ के ख़िलाफ़ मामला टोक्यो 2021 ओलंपिक को लेकर लगाए गए पोस्टर्स-होर्डिंग्स से जुड़ा है.

खेल समारोह शुरू होने के दौरान गुवाहाटी में बॉक्सर लवलीना बोरगोहाईं को ओलंपिक क्वालीफाई करने के लिए बधाई संदेश देने के नाम पर जगह-जगह पोस्टर-होर्डिंग्स लगाए गए थे लेकिन इनमें असम की रहने वाली लवलीना की कोई तस्वीर नहीं थी, तस्वीरें थीं तो मुख्यमंत्री और खेल मंत्री की.

सोशल मीडिया पर इन होर्डिंग्स का काफ़ी मज़ाक़ बना और व्यंग्यात्मक प्रतिक्रियाएं आईं. बायोकॉन की प्रबंध निदेशक डॉक्टर किरण मजूमदार शॉ ने भी इसको लेकर एक ट्वीट किया.

दिसपुर पुलिस ने न्यूज़ पोर्टल पर आईपीसी की कई धाराओं और आईटी एक्ट में केस दर्ज किया है.

इसी साल फ़रवरी में एक और मामले में वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की पत्नी की शिकायत पर असम पुलिस ने एक न्यूज पोर्टल के संपादक समेत दो पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया था.

न्यूज़ पोर्टल ने मंत्री की बेटी को गले लगाते हुए एक तस्वीर प्रकाशित की थी वो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. पुलिस ने इसमें प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज क़ानून के तहत मामला दर्ज किया था.

मणिपुर –

मणिपुर जैसे छोटे राज्य में बीते दो सालों में पत्रकारों पर राजद्रोह लगाने के कई मामले सामने आ चुके हैं.

साल 2018 में स्थानीय पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम पर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह पर कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगा दिया गया था जिसके बाद उन्हें साढ़े चार महीने जेल में रहना पड़ा.

जनवरी 2021 में एक अन्य मामले में न्यूज़ पोर्टल ‘द फ्रंटियर मणिपुर’ के दो संपादकों को ’24 घंटे से अधिक’ समय तक पुलिस हिरासत में रखा गया. रिहाई तब हो पाई जब दोनों ने लिखित आश्वासन दिया कि वे ऐसी ग़लती दोबारा नहीं करेंगे.

दोनों पत्रकारों पर मामले में यूएपीए की धारा 39 (आतंकवादी संगठन का समर्थन) और राजद्रोह के इस्तेमाल की बात सामने आई है.

मई में मणिपुर सरकार ने इम्फ़ाल स्थित पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम और राजनीतिक कार्यकर्ता एरेन्ड्रो लेचोम्बाम को उनकी एक फ़ेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ़्तार किया और दोनों पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाया गया था.

त्रिपुरा –

इसी साल मई में एक समूह ने त्रिपुरा के वरिष्ठ पत्रकार समीर धर के आवास को देर रात निशाना बनाया. असेंबली ऑफ़ जॉर्नलिस्ट नामक संगठन के उपाध्यक्ष समीर धर के घर पर 2018 के बाद तीन बार ऐसे हमले हो चुके हैं. उन्हें बार-बार धमकियां भी मिली हैं.

मीडिया अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करनेवाली असेंबली ऑफ़ जर्नलिस्ट्स ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब द्वारा जारी एक कथित धमकी के बाद पिछले छह महीनों में राज्य में कम से कम 23 पत्रकारों पर हमले हो चुके हैं.

आरोप है कि मुख्यमंत्री देब ने कहा था कि कोरोनो वायरस संकट के कथित कुप्रबंधन की कहानियों को प्रकाशित करने के लिए मीडिया के एक वर्ग को माफ़ नहीं करेंगे.

मुख्यमंत्री देब के इस बयान की आलोचना करनेवाले एक पत्रकार पाराशर विश्वास को भी पीटा था.

पूर्वोत्तर राज्यों में पत्रकारों पर हमले और ख़बरें करने के चलते पुलिस केस दर्ज मामले दर्ज किए जाने को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी कहते हैं, “इस तरह के मामले एक तरह से पत्रकारों को डराने-धमकाने के लिए किए जाते हैं. हमने इससे पहले असम में कभी नहीं देखा कि किसी सरकारी विभाग ने मीडिया पर इस तरह पुलिस में मामला दर्ज कराया हो. दरअसल यह साफ़ संदेश है कि मीडिया सरकार की लाइन में चले वरना इसी तरह मामले दर्ज कर उसे परेशान किया जाएगा. अभी इसकी शुरुआत छोटे मीडिया संस्थान से की जा रही है लेकिन ये बड़े पत्रकारों और संस्थानों को लिए भी मैसेज है.”

सोशल मीडिया के नए नियमों पर हंगामा क्यों?

असम में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे न्यूज़ वेबसाइट नॉर्थ ईस्ट नाउ के मुख्य संपादक अनिर्बान रॉय कहते हैं कि “अगर किसी पत्रकार ने कोई ग़लत ख़बर प्रकाशित की है तो सरकार उसके ख़िलाफ़ कई अन्य तरीकों से एप्रोच कर सकती है. लेकिन डीआईपीआर ने अपनी शिकायत में पुलिस को आईटी एक्ट की उस धारा को लगाने का अनुरोध किया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही रद्द कर दिया है. यह एक तरह से सबसे बड़ी अदालत के फ़ैसले का उल्लंघन है.”

मणिपुर के इंफाल-स्थित वरिष्ठ पत्रकार तथा इंफाल कला और राजनीति की समीक्षा के संपादक प्रदीप फंजोबम कहते हैं कि उनके राज्य में 2017 में बीजेपी का शासन आने के बाद से मीडिया पर काफी दबाव है.

हाल की घटनाओं पर बात करते हुए प्रदीप फंजोबम ने बीबीसी से कहा, “पहले सरकारें आलोचनाओं को लेकर इतनी आक्रमक नहीं हुआ करती थीं. लेकिन अब प्रेस को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है और काफी हद तक इसमें सफल भी हो रही है. दरअसल यह प्रेस के लिए बहुत खतरनाक संकेत है क्योंकि मीडिया को अपने पक्ष में रखने के लिए ताक़त का इस्तेमाल किया जा रहा है.”

मणिपुर में पत्रकारों पर दर्ज हुए मामलों के बारे में प्रदीप फंजोबम कहते हैं, “इससे पहले राज्य में पहले की सरकार कई बार पत्रकारों की आलोचनाओं पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं देती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. प्रेस को डराने की कोशिश की जा रही है. यहां धीरे-धीरे ‘सेल्फ-सेंसरशिप’ शुरू हो गया है. सरकार दो तरफ़ से प्रेस पर नियंत्रण बनाना चाहती है. इसमें मीडिया हाउस को विज्ञापन देने से लेकर पत्रकारों को लैपटॉप बांटने जैसी कई बातें शामिल हैं. दूसरी तरफ़ जो लोग सरकार के ख़िलाफ़ जाते हैं उनपर मामले दर्ज कर दबाव बनाया जाता है. पिछले एक साल में चार लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है जिनमें दो पत्रकारों को लंबे समय तक जेल में बंद रहना पड़ा.”

त्रिपुरा में भाजपा प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य ने हाल ही में मीडिया के समक्ष कहा था कि पत्रकारों पर हमले की घटनाओं को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि उनके राज्य में पत्रकारों पर हमले वाम मोर्चा शासन के दौरान बहुत अधिक हुए थे.

असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता विजय कुमार गुप्ता न्यूज पोर्टल पर दर्ज कराए गए मामले को सही ठहराते हैं और कहते हैं कि उसमें पुलिस जांच हो.

उन्होंने कहा कि किसी भी ख़बर को चलाने का आधार होना ज़रूरी है, बाक़ी बातें जांच में सामने आ जाएंगी.

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