धर्म और विज्ञान:नवरात्रि में व्रत उपवास करने से क्या लाभ मिलता है? कन्याओं का पूजन क्यों किया जाता है?

अभी देवी दुर्गा की पूजा का महापर्व नवरात्रि चल रहा है, ये पर्व 14 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। इस उत्सव की सीख यह है कि हर स्थिति में महिलाओं का सम्मान करना चाहिए। दुर्गा मां को सर्व शक्तिशाली माना गया है। प्राचीन समय में महिषासुर का वध शिव जी और विष्णु जी भी नहीं कर पा रहे थे, तब देवी दुर्गा प्रकट हुई थीं और उन्होंने महिषासुर का वध किया था।

दो ऋतुओं के संधिकाल में आती है नवरात्रि

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार नवरात्रि का संबंध हमारी सेहत से भी है। नवरात्रि के दिनों में रखे गए व्रत-उपवास से हमारे स्वास्थ्य को बहुत लाभ मिलते हैं। पंचांग के अनुसार एक वर्ष में चार बार नवरात्रियां आती हैं। नवरात्रि दो ऋतुओं के संधिकाल में मनाई जाती है। संधिकाल यानी एक ऋतु के जाने और दूसरी ऋतु आने का समय।

दो नवरात्रि सामान्य रहती हैं और दो गुप्त रहती हैं। चैत्र मास और आश्विन मास की सामान्य नवरात्रि मानी गई हैं। माघ और आषाढ़ मास में आने वाली गुप्त नवरात्रि होती है। अभी अश्विन मास की नवरात्रि चल रही है। ये वर्षा ऋतु के जाने का और शीत ऋतु के आने का समय है। इन दिनों में पूजा-पाठ करते हुए खान-पान संबंधी सावधानी रखने से हम कई मौसमी बीमारियों से बच सकते हैं।

नवरात्रि में व्रत करने से क्या-क्या लाभ मिलते हैं?

ऋतुओं के संधिकाल में काफी लोगों को मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-जुकाम, बुखार, पेट दर्द, अपच जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आयुर्वेद में ऐसे रोगों से बचाव के लिए लंघन नाम की एक विधि बताई गई है। इस विधि में पाचन तंत्र को आराम दिया जाता है। पाचन तंत्र को आराम देने का ही एक तरीका है व्रत करना। व्रत में अन्न, मसालेदार खाना आदि चीजों का सेवन नहीं किया जाता है, व्रत करने वाले भक्त फलाहार करते हैं। फलों को पचाने में पाचन तंत्र को ज्यादा मुश्किल नहीं आती है और शरीर को भी जरूरी ऊर्जा फलों से मिल जाती है। इस तरह व्रत करने से कई रोगों से बचाव हो सकता है।

देवी पूजा करने वाले भक्तों की दिनचर्या संयमित रहनी चाहिए। अन्न का सेवन करने से आलस्य बढ़ता है और फलाहार करने से शरीर में स्फूर्ति रहती है और आलस्य दूर रहता है। सुबह जल्दी उठना और पूजा-पाठ, ध्यान करने से मन शांत रहता है। क्रोध और अन्य बुरे विकार दूर रहते हैं।

नवरात्रि में कन्या पूजन क्यों करना चाहिए?

शास्त्रों में छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप माना गया है। 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को नवरात्रि में भोजन कराया जाता है, दान दिया जाता है, पूजा की जाती है। उम्र के अनुसार छोटी कन्याओं को अलग-अलग देवियों का स्वरूप माना गया है। 2 वर्ष की कन्या कुमारिका, 3 साल की कन्या त्रिमूर्ति, 4 वर्ष की कन्या कल्याणी, 5 साल की कन्या रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या कालिका, 7 साल की कन्या चंडिका, 8 वर्ष की कन्या सांभवी, 9 वर्ष की कन्या दुर्गा और 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा मानी गई है।

छोटी कन्याएं मन में सभी के लिए पवित्र विचार होते हैं, वे किसी का अहित करने के लिए नहीं सोचती हैं, छोटी कन्याएं सभी बुरी आदतों से दूर रहती हैं, इनके मन में सभी के लिए प्रेम रहता है। नवरात्रि में इन्हें भोजन कराने के बाद पैर धुलवाना चाहिए और उनके पैरों की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धा अनुसार दक्षिणा दें। फल और वस्त्रों का दान करें।

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