कोरोना काल में क्यों जरुरी है इजरायली जंग का रुकना

ऐसे समय में जब कोरोना का संकट सामने है इजरायल और फिलिस्तीन के बीच खूनी संघर्ष चिंता की बात है।
इजरायल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्स का ये कहना कि ”हमारी सेना के गाजा पट्टी और फिलिस्तीन में हमले बंद नहीं होंगे। हम अब तब तक रुकने को तैयार नहीं हैं, जब तक दुश्मन को पूरी तरह शांत नहीं कर देते। ” ये हालात को समझने के लिए काफी है। उधर, हमास के नेता हानिया ने कहा है कि अगर इजरायल जंग बढ़ाना चाहता है तो हम भी रुकने को तैयार नहीं हैं। चरमपंथियों ने चेतावनी दी है कि वे इजरायलियों की जिंदगी नर्क कर देंगे।
कुल मिलाकर देखे तो ये जंग सिवाय बड़ी तबाही के कोई और संकेत नहीं दे रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस के सामने चिंता जाहिर करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिख रहा।
फिलिस्तीन में तबाही का आलम इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हजारों लोग अब उन स्कूलों में शरण लेने को मजबूर हैं जिन्हें रिलीफ एजेंसी की तरफ से चलाया जा रहा है। कई जगहों से पलायन तेज हो गया है और हमलों से बचने के लिए सभी दूर-दराज के इलाकों में जा रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि अब कोरोना से बचना है या फिर रॉकेट से या फिर किसी दूसरे हमले से।

दरअसल इस विवाद का संबंध तकरीबन 73 साल पुराना है। इजरायल और फिलीस्तीन मौजूदा वक्त में दो अलग देश माने जाते हैं, लेकिन ये दोनों देश एक दूसरे का वजूद नहीं मानते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव लाकर दोनों ही देशों को अलग किया, जिसके बाद इजरायल पहली बार दुनिया के सामने आया।
1947 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव 181 पारित किया, जिसका मूल रूप बंटवारे को लेकर था। इस प्रस्ताव के तहत ब्रिटिश राज वाले इस इलाके को दो भागों मे बांट दिया गया, जिसमें एक अरब इलाका और दूसरा यहूदियों का इलाका माना गया। इसतरह संयुक्त राष्ट्र और दुनिया की नज़र में पहली बार इज़रायल देश का जन्म हुआ।

लेकिन हाल की हिंसा की वजह अलग है। इजरायली सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वी यरुशलम से फिलिस्तीनियों के सात परिवारों को हटाने का आदेश जारी किया था। आदेश में इजरायल के गठन से पहले 1948 में यहूदी रिलिजन एसोसिएशन के अधीन आने वाले घरों को खाली करने के निर्देश दिए गए थे। इसका पालन करते हुए इजरायल में स्थिति शेख जर्रा जगह में रहने वाले 70 फिलिस्तीनियों को हटाकर यहूदियों को बसाया जाने लगा। लेकिन फिलिस्तीनी कोर्ट के इस आदेश से नाखुश थे, उन्होंने इसके विरोध में इजरायल में जगह-जगह पर आंदोलन किए। हिंसा तब और फैली जब फिलिस्तीनियों की तरफ से इजरायली पुलिस पर पथराव और पुलिस की तरफ से आंसू गैस के गोले छोड़े जाने के बीच एक प्रमुख मस्जिद में हैंड ग्रेनेड जा गिरा।

हालांकि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष की दूसरी वजह यरुशलम-डे भी बताया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि 1967 में हुए अरब-इजरायल युद्ध में इजरायल की जीत के जश्न के रूप में 10 मई को यरुशलम-डे मनाया जाता है। इस दिन इजरायली, यरुशलम से वेस्टर्न वॉल तक मार्च करते हुए प्रार्थना करते हैं। वेस्टर्न वॉल यहूदियों का एक पवित्र स्थल माना जाता है। इस मार्च के दौरान भी हिंसा हुई थी।

यरूशलम इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों में बेहद अहम स्थान रखता है। यरूशलम में मुस्लिमों की तीसरी सबसे पवित्र अल अक्सा मस्जिद है। वहीं, मस्जिद के बगल में यहूदियों का पवित्र मंदिर भी है और इसी वजह से विवाद होता रहता है। पैगंबर इब्राहीम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले ये तीनों ही धर्म यरूशलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं। शहर के बीच एक पुराना इलाका है। जहा संकरी गलियों और ऐतिहासिक वास्तुकला की भूलभुलैया इसके चार इलाक़ों- ईसाई, इस्लामी, यहूदी और अर्मेनियाईं- को परिभाषित करती हैं। ईसाइयों के दो इलाके हैं।
क्योंकि अर्मेनियाई भी ईसाई ही होते हैं। चारों इलाकों में सबसे पुराना अर्मेनियाइयों का ही है।

ये दुनिया में अर्मेनियाइयों का सबसे प्राचीन केंद्र भी है। सेंट जेंम्स चर्च और मोनेस्ट्री में अर्मेनियाई समुदाय ने अपना इतिहास और संस्कृति सुरक्षित रखी है। ईसाई क्षेत्र में ‘द चर्च आफ़ द होली सेपल्कर’ है। ये दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है। यहीं ईसा मसीह की मौत हुई थी, उन्हें सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं से वो अवतरित हुए थे। ईसाई परंपराओं के मुताबिक, ईसा मसीह को यहीं ‘गोलगोथा’ पर सूली पर चढ़ाया गया था। इसे ही हिल ऑफ़ द केलवेरी कहा जाता है। ईसा मसीह का मक़बरा सेपल्कर के भीतर ही है।

मुसलमानों का इलाका चारों इलाक़ों में सबसे बड़ा है और यहीं पर डोम ऑफ़ द रॉक और मस्जिद अल अक़्सा है। मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद ने मक्का से यहां तक एक रात में यात्रा की थी और यहां पैगंबरों की आत्माओं के साथ चर्चा की थी। यहां से कुछ क़दम दूर ही डोम ऑफ़ द रॉक्स का पवित्र स्थल है यहीं पवित्र पत्थर भी है। मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद ने यहीं से जन्नत की यात्रा की थी।

यहूदी इलाके में ही कोटेल या पश्चिमी दीवार है। ये वॉल ऑफ़ दा माउंट का बचा हिस्सा है। माना जाता है कि कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था। यहूदियों का विश्वास है कि यही वो स्थान है जहां से विश्व का निर्माण हुआ और यहीं पर पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी। कई यहूदियों का मानना है कि वास्वत में डोम ऑफ़ द रॉक ही होली ऑफ़ द होलीज़ है।

जाहिर है जब मामला कई धर्मों की आस्था से भी जुड़ा हो वहां आमराय से शांति स्थापित कर पाना टेढ़ी खीर है।
यही वजह रही कि फिलिस्तीन और इजरायली विवाद के केंद्र में यरूशलम शुरू से रहा। अधिकतर इजरायली यरूशलम को अपनी अविभाजित राजधानी मानते हैं। जब इजरायल राष्ट्र की स्थापना हुई थी, तब इजरायली संसद को शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थापित किया गया था। लेकिन 1967 के युद्ध में इजरायल ने पूर्वी यरूशलम पर भी कब्जा कर लिया । प्राचीन शहर इजरायल के नियंत्रण में तो आ गया लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। फिलिस्तीनियों का नज़रिया इससे बिलकुल अलग है। वो पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में मांगते हैं । यरूशलम की एक तिहाई आबादी फिलिस्तीनी मूल की है जिनमें से कई के परिवार सदियों से यहां रहते आ रहे हैं। शहर के पूर्वी हिस्से में यहूदी बस्तियों का विस्तार भी विवाद का एक बड़ा का कारण है। अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत ये निर्माण अवैध हैं पर इजरायल इसे नकारता रहा है।

मौजूदा हालत में प्रत्यक्ष शांति बहाली के लिए बातचीत को तत्काल फिर से शुरू करने और दो राष्ट्र समाधान को लेकर प्रतिबद्धता जताने की जरूरत है। जिसमे सभी बड़े देशों की भागीदारी जरुरी है। क्योंकि इस लड़ाई में सिर्फ भारत सहित तमाम देशों के नागरिक जान से हाथ नहीं धो रहे हैं, बल्कि संकट एक समृद्ध सभ्यता और संस्कृति के मिटने का भी है।
प्राचीन शहर इजरायल के नियंत्रण में तो आ गया लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। फिलिस्तीनियों का नज़रिया इससे बिलकुल अलग है। वो पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में मांगते हैं । यरूशलम की एक तिहाई आबादी फिलिस्तीनी मूल की है जिनमें से कई के परिवार सदियों से यहां रहते आ रहे हैं। शहर के पूर्वी हिस्से में यहूदी बस्तियों का विस्तार भी विवाद का एक बड़ा का कारण है। अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत ये निर्माण अवैध हैं पर इजरायल इसे नकारता रहा है। मौजूदा हालत में प्रत्यक्ष शांति बहाली के लिए बातचीत को तत्काल फिर से शुरू करने और दो राष्ट्र समाधान को लेकर प्रतिबद्धता जताने की जरूरत है। जिसमे सभी बड़े देशों की भागीदारी जरुरी है। क्योंकि इस लड़ाई में सिर्फ भारत सहित तमाम देशों के नागरिक जान से हाथ नहीं धो रहे हैं, बल्कि संकट एक समृद्ध सभ्यता और संस्कृति के मिटने का भी है।

 

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