बीजेपी छोड़ने को क्यो मजबूर दारा सिंह, जानिए वजह

2022 विधानसभा चुनाव में इस बार यहां के समीकरण बिल्कुल अलग

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय देश की स्वतंत्रता के दीवानों ने मधुबन थाने पर तिरंगा फहराया था। जिससे इस धरती का नाम पूरे देश में हो गया आजादी मिलने के बाद जिले का गठन हुआ जी मैं बात कर रहा हूँ, मऊ जनपद की विधानसभा सीट मधुबन की। मधुबन सीट काफी चर्चित विधानसभा सीट है। लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव में इस बार यहां के समीकरण बिल्कुल अलग दिखाई दे रहे हैं।

जनपद मऊ के उत्तरी छोर पर घाघरा नदी के किनारों की तटवर्ती व जनपद गोरखपुर देवरिया एवं आजमगढ़ को जोड़ने वाली इस विधानसभा में घाघरा नदी का पाट एवं तलहटी होने के कारण देवांचल का अधिक जमीनी हिस्सा इस क्षेत्र में पड़ता है ।यह तो रहा जनपद मऊ के विधानसभा मधुबन का भौगोलिक इतिहास । चलिए एक नजर डालते हैं यहां के राजनीतिक ताने-बाने पर।

जानिए अब तक विधानसभा के बारें में

1996 चुनावी दौरान के समय समाजवादी पार्टी के बैनर तले सुधाकर सिंह विधायक बने फिर 2002 में बसपा से कपिल देव विधायक चुने गए यही नहीं 2007 में बसपा के बैनर तले उमेश चंद ने चुनाव जीतकर 2012 तक बसपा की बादशात को कायम रखा। और और चुनावी बिगुल आते-आते 2017 में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दारा सिंह चौहान ने चुनाव जीतकर बीजेपी को पहली बार इस सीट पर जीत दिलाई और 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इस सीट पर अपना खाता खोलने का मौका मिला। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े दारा सिंह को 86238 वोट प्राप्त हुए थे। जनपद मऊ के मधुबन विधानसभा से भाजपा के टिकट पर विधायक दारा सिंह वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश सरकार में वन एवं पर्यावरण पर्यावरण मंत्री भी हैं।

बहुजन समाज पार्टी

बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में रहने के बाद वह भाजपा से विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री बने 2 फरवरी 2015 को उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की थी ।और उसके बाद मधुबन से चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी।वैसे ही पूरे मधुबन में दारा सिंह की लोकप्रियता मंत्री रहने से पहले भी बेहद अच्छी रही है। क्षेत्र में जाकर वह हमेशा समस्याओं को सुनते हैं लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए सियासी पारा अपने सातवें आसमान पर है और उत्तर प्रदेश की मधुबन विधानसभा सातवें चरण के इंतजार में है। कि कब दारा सिंह समाजवादी पार्टी का दामन थामेंगे लिहाजा यह दिलचस्प है कि कैबिनेट मंत्री की कुर्सी पाने के बाद भी आखिर ऐसी क्या वजह बनी कि बीजेपी को छोड़कर समाजवादी पार्टी के समर्थन में उतरने का मन बना रहे।

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