क्‍या है पीएम मोदी के चर्च जाने के पीछे का राज, जानें मास्टर प्लान

कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनावों का त्रिकोणीय मुकाबला बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के बीच है. लेकिन, मुख्य लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस में है. वहीं, जेडीएस भी पूरे जोश के साथ मैदान दिख रही में है. 13 मई को चुनावी परिणाम आने के बाद ये जगजाहिर हो जायेगा कि कौन सबसे आगे है. बीते रविवार (9 अप्रैल) को ईसाईयों का पर्व ईस्टर था. इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी राजधानी दिल्ली के सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च पहुंचे थे. वहां जाकर पीएम मोदी ईसा मसीह की मूर्ति के सामने मोमबत्ती जलाई और ईस्टर की प्रेयर में भी हिस्सा लिया था. ईसाई समुदाय के आध्यात्मिक नेताओं से मुलाकात के बाद चर्च के फादर ने पीएम मोदी का स्वागत किया और कहा कि पहली बार कोई प्रधानमंत्री इस चर्च में पहुंचा है. पीएम मोदी के चर्च जाने की खूब चर्चाएं हो रही है. वहीं, इसके कई सियासी मतलब भी निकाले जा रहे हैं. लेकिन, सवाल ये उठता है कि क्‍या पीएम मोदी के चर्च जाने से कर्नाटक में वोट मिलेगा? पहले हम आपको बताएंगे कि राज्य में कितने प्रतिशत ईसाई वोट हैं?

कर्नाटक में ईसाई वोट प्रतिशत

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक राज्य टोटल जनसंख्या 6.11 करोड़ थी. इनमें सबसे ज्यादा हिंदू धर्म के लोग हैं, जिनकी संख्या 5.13 करोड़ है, जो 84% हैं. दूसरे नंबर में मुस्लिम हैं, जिनकी संख्या 79 लाख है, जो 12.91% है. इसके बाद ईसाई और जैन धर्म हैं. जिनकी संख्या क्रमशः 11 लाख (1.87%) और 4 लाख (0.72%) है. जनसंख्या के लिहाज से राज्य में ईसाई समुदाय का वोट प्रतिशत काफी कम है. वहीं, कर्नाटक में सबसे बड़ा लिंगायत समुदाय है, जिसकी जनसंख्या करीब 17% है. इसके बाद वोक्कालिगा की आबादी 12%, कुरुबा 8%, एससी 17%, एसटी 7% हैं. कर्नाटक की अगड़ी जातियों में लिंगायत समाज की गिनती होती है. कर्नाटक के दो बड़े समुदाय लिंगायत और वीरशैव हैं

पीएम मोदी के चर्च जाने का सियासी मतलब

वैसे तो पीएम नरेंद्र मोदी के हर दौरे के पीछे कोई न कोई वजह जरूर होती है. ऐसे में पीएम मोदी के दिल्ली के चर्च में जाने के पीछे भी कोई खास रणनीति हो सकती है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो देशभर में बीजेपी खुद को हर वर्ग से जुड़ी हुई पार्टी के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहती है. बीजेपी के मिशन साउथ के लिए ये अतिआवश्यक है. हाल के चुनावों में बीजेपी ने नागालैंड और मेघालय जैसे ईसाई बहुल राज्यों में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. अब इसी कड़ी में बीजेपी केरल जैसे अन्य राज्यों में अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रही है. इससे पहले बीजेपी ने मुस्लिमों को साधने की कोशिश की थी. बीजेपी नेताओं का दावा है कि पसमांदा मुस्लिमों में उनकी पैठ बनी है और उनका वोट प्रतिशत बढ़ा है. ऐसे ही बीजेपी खुद को हर धर्म से जुड़ी पार्टी बताने की कोशिश कर रही है. पीएम मोदी का चर्च जाना भी ऐसे ही प्रयास का एक नतीजा है. हालांकि, पीएम मोदी के चर्च दौरे को दक्षिण राज्यों में होने वाले चुनावों और आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. खैर, कर्नाटक चुनाव के परिणामों से ये साफ हो जाएगा कि ईसाई समुदाय के वोट बैंक साधने में बीजेपी कितनी घुसपैठ कर पाती है.

बीजेपी को ईसाइयों को वोट की जरूरत

राजनीतिक जानकार के मुताबिक, बीजेपी हिंदुओं के वोट पर जीतती आई है. पार्टी अब इस छवि को बदलना चाहती है. वो चुनाव को लेकर लगातार तैयारी रहती है और हर चीज से जुड़ी होती है. पिछले करीब 9 साल से लगातार चुनावी मोड में ही काम कर रही है और बीजेपी कैडर लगातार वोटर्स से जुड़ा रहता है. उन्होंने बताया कि बीजेपी को ईसाइयों को वोट की जरूरत है. क्योंकि, आजकल के राजनीतिक माहौल में एक वर्ग के वोट से काम नहीं चलने वाला है. इसीलिए बीजेपी ने दूसरे वर्गों को साधना शुरू कर दिया है. पिछले कई सालों से केरल में बीजेपी की कोशिश जारी है. यहां से बीजेपी को एक सीट मिलना भी मुश्किल है. केरल के लोग बीजेपी को वोट नहीं देते हैं. संघ की लगातार कोशिशें और एग्रेसिव कैंपेनिंग के बाद भी केरल में बीजेपी को कामयाब नहीं हो पाती है. केरल के वोटर्स में ईसाइयों की संख्या काफी ज्यादा है. यहां कई तरह के ईसाई रहते हैं.

केरल की जनसंख्या

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, केरल में सबसे ज्यादा हिंदुओं की जनसंख्या (54.73%) थी. इसके बाद मुस्लिम (26.6%) और फिर ईसाई (18.4%) की जनसंख्या थी. राज्य की कुल 140 विधानसभा सीटों में ईसाई समुदाय के वोट लगभग 33 से ज्यादा सीटों पर असर डालते हैं. सबसे ज्यादा जनसंख्या में ईसाई दक्षिण भारत में हैं. इसके अलावा, नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में भी ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं. देश में कुल जनसंख्या के 2.4% लोग ईसाई समुदाय से आते हैं.

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