घाटी में आम नागरिकों को निशाना बनाकर क्या चाहते हैं आतंकी? कहीं ये वजहें तो नहीं

कश्मीर में आम नागरिकों को लक्ष्य बनाकर की जा रही हत्या को आतंकियों की नई रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। जानकार इसे अभी 90 के दशक जैसी स्थिति बनाने की कोशिश से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि, आतंकी गुटों की कमजोर स्थिति के मद्देनजर सुरक्षा बल इस संभावना से इनकार कर रहे हैं। ताजा घटनाओं को आतंकी गुटों के शीर्ष नेतृत्व के खात्मे की वजह से बौखलाहट और घाटी में जनसांख्यिकीय बदलाव की आशंका के मद्देनजर आम नागरिकों को निशाना बनाकर दहशत फैलाने की कोशिश और तालिबान के कब्जे के बाद उभरते कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है।

आसान लक्ष्य तलाश रहे हैं आतंकी
जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी एसपी वैद का कहना है कि आतंकी आसान लक्ष्य तलाश रहे हैं। उनके सर्वोच्च नेतृत्व को घाटी में खत्म किया जा चुका है। वे सीधे सुरक्षाबलों का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में छोटे हथियारों के जरिए आम नागरिक को निशाना बनाया जा रहा है। हमलों का मकसद आम नागरिकों में दहशत फैलाना है, जिससे वे घाटी में आने का प्रयास न करें।

आतंक के जिंदा रहने का संदेश
वैद ने कहा, मंत्रियों के दौरे और गृहमंत्री अमित शाह के प्रस्तावित कश्मीर दौरे और विकास परियोजना में तेजी के बीच आतंकी जताना चाहते हैं कि स्थिति सामान्य नहीं है। आमजनों पर हमले से ये संदेश दिया जा रहा है कि घाटी में आतंक जिंदा है। स्थानीय आतंकियों को सीमा पार से निर्देश मिल रहे हैं।

तालिबान के बाद कट्टरपंथी उत्साहित
उधर, बीएसएफ के पूर्व एडीजी पीके मिश्रा ने कहा कि दो तीन चीजें बहुत अहम हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद खुफिया रिपोर्ट में घाटी में कट्टरपंथ बढ़ने की आशंका जताई गई है। उसका असर दिखने लगा है। ऐसे गुट उत्साहित हैं।

गैर मुस्लिमों को नौकरी के खिलाफ
पूर्व एडीजी के मुताबिक दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु ये है कि पलायन करके गए लोगों को घाटी मे वापस लाने की केंद्र सरकार की मुहिम के खिलाफ संदेश देने की कोशिश हो रही है। ऐसे लोगों को नौकरी पर रखने की योजना को भी जनसांख्यिकीय बदलाव की कोशिश बताकर आतंकी लक्षित हत्या कर रहे हैं। ताजा हत्या इसका साफ संकेत है।

पाक में बैठे हैंडलर्स सक्रिय
उधर, पाकिस्तान कश्मीर के मसले पर अलग-थलग पड़ने के चलते कश्मीर में आतंक और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। पाकिस्तान की आईएसआई हैंडलर्स के जरिए घाटी में वारदात तेज करने का संदेश स्थानीय आतंकियों को भेज रहा है, जिससे भारत सरकार की शांति व विकास की कोशिशों में देर हो और दुनिया को बता सके कि कश्मीर अशांत है।

कभी हरकत उल अंसार का गढ़ था इलाका
पूर्व एडीजी ने कहा कि जिस ईदगाह इलाके में शिक्षकों को मौत के घाट उतारा गया, वह 90 के दशक में हरकत उल अंसार का गढ़ हुआ करता था। उस इलाके में कमाण्डेन्ट के तौर पर मैंने खुद हरकत उल अंसार के घाटी में प्रमुख को मारा था। यहां आतंकी गुट लगातार नाम बदलकर सक्रिय रहे हैं। अभी भी द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) लश्कर का ही हिस्सा है।

धारा 370 खत्म होने का मिला जुला असर
जानकारों का कहना है कि धारा 370 समाप्त होने के बाद केंद्र सरकार ने कई स्तरों पर शांति व विकास का संदेश दिया है। वहां बीडीसी, डीडीसी के चुनाव हुए हैं। आम लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश के तहत विकास योजनाओं पर फोकस बढ़ा है। कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए कई नियम बनाए गए हैं। इनमें से एक उनकी अचल संपत्ति को कब्जे से मुक्त कराने और जमीन वापस दिलाने की मुहिम भी है। पलायन करने वालों को नौकरी की योजना से भी कट्टरपंथी नाखुश हैं।

आतंकी हमले में अब तक 25 आम नागरिकों की मौत
इस साल अब तक आतंकी हमलों में 25 आम नागरिक की जान जा चुकी है। इस साल सबसे ज्यादा श्रीनगर में 10, पुलवामा और अनंतनाग में 4-4, कुलगाम में 3, बारामुला में 2, बडगाम और बांदीपुरा में 1-1 सिविलयन की आतंकी हमलों में मौत हुई है। ध्यान देने वाली बात यह है कि ज्यादातर मामलों में आतंकियों ने पहले से अपना लक्ष्य तय किया हुआ था और उनकी हत्या कर दी। बम विस्फोट जैसी घटनाओं में आतंकियों का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को मौत के घाट उतारना होता है, लेकिन इन मामलों में चुन-चुनकर हत्या की गई।

धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने खत्म किया था। उसके बाद अक्तूबर 2019 में आतंकियों ने पांच मजदूरों की हत्या कर दी। छुट्टी के दौरान घर गए सेना और पुलिस के जवानों पर हमले तेज हुए। सरपंचों को निशाना बनाया जाने लगा। भाजपा से जुड़े नेताओं को निशाना बनाया गया। जून 2020 में अनंतनाग में कश्मीरी पंडित अजय पंडित को उनके घर में गोलियों से भून दिया गया। वह सरपंच थे और कांग्रेस से जुड़े थे। अब आतंकियों की हिटलिस्ट में कश्मीरी पंडित समेत आम नागरिक टॉप पर हैं।

आतंकी हमलों में कमी का दावा,नागरिक फिर भी निशाने पर
पिछले मानसून सत्र के दौरान गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि 2019 के मुकाबले 2020 में आतंकी हमलों में 59 प्रतिशत कमी आई। जून 2021 तक पिछले साल की उसी अवधि से तुलना में 32 प्रतिशत की कमी आई। मंत्रालय ने बताया कि 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 के खात्मे के बाद अगस्त 2021 तक आतंकी हमलों में कुल 59 सिविलियन की मौत हुई। इसके अलावा 168 सिविलियन जख्मी हुए।

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