इस बात पर हैरान थी दुनिया जब शपथ ले रहे थे मोदी!

नरेंद्र मोदी की 2.0 वाली सरकार के शपथ ग्रहण समारोह की चर्चा यूं तो पूरी दुनिया भर में हो रही है, लेकिन इस शपथ की तस्वीर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की शपथ ग्रहण से काफी मिलती जुलती है। जब नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, ठीक उसी समय राष्ट्रपति भवन एक नए इतिहास का गवाह बन रहा था.। ये नजारा वैसा ही था, जैसा जनवरी 2009 में वॉशिंगटन डीसी के कैपिटॉल का था। बराक ओबामा पहली बार राष्ट्रपति की शपथ ले रहे थे और उनके सामने लिंकन मेमोरियल तक मौजूद था 18 लाख लोगों का हुजूम। करीब 3 किमी तक लोग ही लोग नजर आ रहे थे। ठीक इसी तरह जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति भवन के फोर कोर्ट पर प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उनके सामने 8000 लोगों की भीड़ थी और देश-विदेश के प्रतिष्ठित लोग भी। इससे पहले 2014 में नरेंद्र मोदी ने 5000 लोगों के सामने शपथ ली थी। ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह में शहर में सुरक्षा के लिए करीब 16 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे, जबकि इस बार नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में दिल्ली की सुरक्षा के लिए 10 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात थे।

शपथ लेते रहे मोदी देखती रही दुनिया

ओबामा के शपथ समारोह में कैपिटॉल से लेकर नेशनल मॉल तक कोई सजावट नहीं थी। लेकिन मोदी के शपथ ग्रहण में राष्ट्रपति भवन के फोर कोर्ट को सजाया गया था। फोर कोर्ट के 12 खंभों के बीच बड़े-बड़े फूलों के गमले लगाए गए थे। 31 सीढ़ियों पर भी लाल कारपेट और फूलों के गमले लगाए गए थे। उसके बाद बनाया गया था स्टेज। जिस पर मंत्रियों ने शपथ ली, वह भी फूलों से सजाया गया था। इसके अलावा राष्ट्रपति भवन को चारों तरफ से तिरंगे के रंग में रोशन किया गया था।

दुनिया भर में मोदी सरकार 2.0 छायी रही

नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह की खबरें, वीडियो और तस्वीरें इंटरनेट पर करीब 6 करोड़ बार खोजी गईं जबकि, ओबामा के शपथ समारोह को 2 करो़ड़ लोगों ने लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग के जरिए देखा था।

चंदे से होता है अमेरिकी शपथ ग्रहण समारोह

अमेरिका में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह की राशि सरकार नहीं देती। वहां, राष्ट्रपति के चयनित होते ही प्रेसिडेंशियल इनॉग्रल कमेटी सक्रिय हो जाती है। वह लोगों से चंदा जमा करती है। कमेटी ने 2009 के शपथ समारोह के लिए करीब 53 मिलियन डॉलर (370 करोड़ रु.) जमा किए थे जबकि, पूरा आयोजन इससे ढाई गुना ज्यादा महंगा था। इसमें आधा दर्जन से ज्यादा कार्यक्रम होते हैं. बाकी पैसे का इंतजाम सरकार करती है…।

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