IAS की बेटी से छेड़छाड़-स्टॉकिंग, BJP सांसद ‘सुभाष बराला’ के बेटे से 10 दिन में छिन गया ‘AAG’ का पद !

हरियाणा सरकार ने राज्यसभा सांसद और बीजेपी नेता सुभाष बराला के बेटे विकास बराला को एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) के पद से हटा दिया है। यह फैसला उनकी नियुक्ति के महज 10 दिन बाद लिया गया। 2017 में IAS अधिकारी की बेटी वर्णिका कुंडू से छेड़छाड़ और स्टॉकिंग के गंभीर आरोपों में घिरे विकास बराला को AAG बनाए जाने पर जनता और अफसरशाही के एक वर्ग ने नाराज़गी जताई थी।
विवादित नियुक्ति: आरोपित को मिली संवैधानिक भूमिका
18 जुलाई 2025 को हरियाणा सरकार की ओर से AG ऑफिस के तहत नियुक्त किए गए 97 लॉ ऑफिसर्स की सूची में विकास बराला का नाम भी शामिल था। यह नियुक्ति तुरंत विवाद में आ गई क्योंकि विकास बराला वही व्यक्ति हैं जो 2017 के चर्चित वर्णिका कुंडू स्टॉकिंग केस में मुख्य आरोपी हैं। ऐसे व्यक्ति को सरकार द्वारा संवैधानिक पद देना न केवल नैतिकता पर सवाल उठाता है, बल्कि राज्य की ‘बेटी बचाओ’ जैसी योजनाओं को भी कठघरे में खड़ा करता है।
45 रिटायर्ड IAS अफसरों की चिट्ठी से दबाव बढ़ा
विकास बराला की नियुक्ति के बाद हरियाणा के 45 से अधिक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को पत्र लिखकर इस निर्णय की आलोचना की। पत्र में लिखा गया कि यह नियुक्ति ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के नारे का मखौल उड़ाती है और हरियाणा की छवि को ठेस पहुंचाती है। इन अफसरों ने सरकार से विकास बराला की नियुक्ति रद्द करने की मांग की थी।
जनदबाव और राजनीतिक छींटाकशी के बीच वापसी
नियुक्ति के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर आलोचना शुरू हो गई और जनता के साथ-साथ विपक्षी दलों ने भी सवाल उठाए। इस दबाव के बीच सरकार ने तेजी से कार्रवाई करते हुए 28 जुलाई को विकास बराला का नाम हटा दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह निर्णय संभवतः सुभाष बराला की पहल पर ही लिया गया, जिन्होंने सरकार को अपने बेटे का नाम वापस लेने को कहा।
अब भी चल रहा है केस, 2 अगस्त को सुनवाई
गौरतलब है कि विकास बराला अब भी 2017 के स्टॉकिंग और अपहरण के प्रयास के मामले में आरोपी हैं। वह फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। इस मामले में IPC की धारा 354D (पीछा करना), 365 (अपहरण की कोशिश) और 341 (गलत तरीके से रोकना) जैसी गंभीर धाराएं लगाई गई थीं। मामले की अगली सुनवाई 2 अगस्त 2025 को चंडीगढ़ की अदालत में तय है।
सरकारी जवाबदेही और नैतिकता पर सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जनदबाव और संस्थागत चेतना आज भी लोकतंत्र में प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं। विकास बराला की नियुक्ति और फिर पद से हटाए जाने की तेजी से हुई प्रक्रिया ने राज्य सरकार की साख, प्रशासनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया और नैतिकता के मापदंडों को उजागर किया है।
राजनीतिक ताकत बनाम जनमत
एक आरोपी को AAG जैसे संवैधानिक पद पर नियुक्त करने और फिर वापस लेने की घटना यह दिखाती है कि जनता की निगरानी और लोकतांत्रिक संस्थाएं आज भी सत्ता के फैसलों पर प्रभाव डाल सकती हैं। यह सिर्फ हरियाणा ही नहीं, पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्ति में साख, पात्रता और नैतिकता को प्राथमिकता दी जाए।