BJP राज्यसभा सांसद के बेटे पर यौन उत्पीड़न का केस, फिर भी बनाया गया AAG.. IAS की बेटी का पीछा कर..

हरियाणा सरकार की हालिया नियुक्ति ने एक बार फिर सियासी गलियारों में सवाल खड़े कर दिए हैं। 18 जुलाई को जारी अधिसूचना के तहत विकास बराला को हरियाणा का असिस्टेंट एडवोकेट जनरल (AAG) नियुक्त किया गया है — वहीं विकास वही शख्स हैं जिनपर एक आईएएस अधिकारी की बेटी ने यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया था। मामला अभी अदालत में लंबित है, और ऐसे में इस नियुक्ति को लेकर न केवल न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि यह भी पूछा जा रहा है कि क्या एक प्रभावशाली पिता की सत्ता में मौजूदगी ने बेटे के रास्ते आसान कर दिए?
पहले से ही यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज
दरअसल, विवादों में घिरे विकास बराला को सरकारी पद सौंप दिया गया है। 18 जुलाई 2025 को जारी अधिसूचना के अनुसार, उन्हें हरियाणा का सहायक एडवोकेट जनरल (Assistant Advocate General) नियुक्त किया गया है। हैरानी की बात यह है कि विकास पर पहले से ही यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज है, जिसकी कानूनी प्रक्रिया अभी तक जारी है। इस फैसले से सरकार की मंशा और न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
IAS की बेटी ने दर्ज कराई थी शिकायत, मामला अभी अदालत में
विकास बराला पर जिस महिला ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, वह कोई आम नागरिक नहीं, बल्कि एक IAS अधिकारी की बेटी है। शिकायत के अनुसार, बराला ने न सिर्फ महिला से अश्लील बातें कीं, बल्कि उसे गलत तरीके से छूने और बाद में धमकी देने की भी कोशिश की। यह मामला अदालत में लंबित है, और अभी तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं आया है।
पिता की सत्ता से मिल रहा है संरक्षण?
विकास बराला हरियाणा बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सुभाष बराला के बेटे हैं। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या उन्हें अपने पिता की सत्ता का सीधा लाभ मिल रहा है? पहले यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद सरकार ने उन्हें सहायक महाधिवक्ता के पद पर बहाल किया गया है।
2017 में भी पीछा करने के आरोप में फंसे थे विकास
विकास बराला पर 2017 में आरोप लगा था कि पीड़ित युवती का पीछा किया, और जबरन उसकी कार में घुसकर अभद्र व्यवहार किया। यह मामला उस वक्त भी देशभर में चर्चा का विषय बना। इस मामले में वे गिरफ्तार भी हुए थे। बाद में उन्हें जमानत तो मिल गई थी लेकिन उनकी छवि पहले ही सवालों के घेरे में आ गई थी। अब एक बार फिर उन पर लगे आरोप उनके राजनीतिक संरक्षण पर सवाल उठा रहे हैं।
सरकारी नियुक्ति को लेकर उठे सवाल, विपक्ष ने साधा निशाना
18 जुलाई की अधिसूचना सामने आने के बाद विपक्ष ने सरकार को घेर लिया है। कांग्रेस, आप और अन्य दलों ने इसे “महिला सुरक्षा का मज़ाक” करार दिया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार की कथनी और करनी में फर्क साफ नज़र आता है — एक ओर ‘बेटी बचाओ’ की बात, दूसरी ओर यौन उत्पीड़न के आरोपी को संवैधानिक पद।
महिला आयोग और सोशल मीडिया पर नाराज़गी
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भी इस नियुक्ति पर हैरानी जताई है और स्वत: संज्ञान लेने की बात कही है। सोशल मीडिया पर भी जनता में आक्रोश है और हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। कई महिला संगठनों ने सवाल उठाया है कि क्या न्याय व्यवस्था केवल रसूख वालों के लिए है?
सत्ता का लाभ या कानून का मज़ाक?
इस पूरे प्रकरण से यह साफ होता है कि सत्ता में बैठे लोगों के लिए कानून और नैतिकता अलग मापदंड रखती है। यौन उत्पीड़न के केस में फंसे व्यक्ति को दोबारा संवैधानिक पद सौंपना, उस पीड़िता और पूरे सिस्टम के लिए एक बड़ा सवाल है। आने वाले समय में देखना होगा कि क्या यह मामला भी अन्य केसों की तरह दबा दिया जाएगा या न्याय की उम्मीद बाकी है।