आइये जानते हैं उत्तर प्रदेश की अलग अलग होलियों के बारे में

यूपी की अजब-गजब होली:कहीं जूतामार तो कहीं लठमार, पीलीभीत में तो मुस्लिमों को रंग के साथ गाली देकर मनाई जाती है होली

 

UP में 5 जगहें ऐसी हैं जहां की होली पूरे देश में सुर्खियां बटोरती हैं। ब्रज की लठमार, शाहजहांपुर की जूतामार और इटावा की बिच्छू होली अपने आप में खास हैं। वहीं वाराणसी की चिता की राख से खेली जाने वाली होली भी लोगों को एक्साइट करती है। पीलीभीत की होली में तो मुस्लिमों को रंग लगाकर उनको गाली देने का रिवाज है।

आइए, आपको एक-एक कर उन जगहों तक ले चलते हैं…

जूतामार होली

लोग लाट साहब को मारने के लिए उतावले हो रहे हैं।
लोग लाट साहब को मारने के लिए उतावले हो रहे हैं।
इस तरह की होली की शुरुआत अंग्रेजों के जमाने में हुई थी। UP के शाहजहांपुर जिले में आज भी खेली जाती है। दरअसल, ये जूतामार होली अंग्रेजों के प्रति गुस्सा दिखाने के मकसद से खेली जाती है। शाहजहांपुर के लोग भैंसा गाड़ी पर लाट साहब का पुतला बैठाते हैं और पूरे शहर में घुमाते हैं। शहर भर के लोग भैंसा गाड़ी पर बैठे लाट साहब को जूते-चप्पलों से कूटते हैं।

माहौल एकदम मजेदार हो जाता है। बूढ़े, बच्चे और नौजवान सभी जोश में रहते हैं। हालांकि, इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था बड़ी चौकस रहती है, ताकि कोई धार्मिक हिंसा या उपद्रव ना हो।

मसान की राख से होली

वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर भोलेनाथ के भक्त डमरू की ध्वनि के बीच श्मशान की राख से जमकर होली खेलते हैं।
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर भोलेनाथ के भक्त डमरू की ध्वनि के बीच श्मशान की राख से जमकर होली खेलते हैं।
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट में चिता की राख से होली खेली जाती है। इस तरह की होली फाल्गुन एकादशी के दूसरे दिन खेली जाती है। भोलेनाथ के भक्त डमरू की ध्वनि के बीच श्मशान की राख से जमकर होली खेलते हैं। वाराणसी में पिछले कई सौ सालों से इस तरह की होली मनाई जाती है। इसे मसान की राख वाली होली भी कहा जाता है।

मुस्लिमों को रंग लगा कर गाली देने वाली होली

शेरपुर की होली में हिंदू से ज्यादा मुस्लिम एक्साइटेड होते हैं।
शेरपुर की होली में हिंदू से ज्यादा मुस्लिम एक्साइटेड होते हैं।
UP के पीलीभीत जिले में शेरपुर गांव है। होली के दिन वहां के हिन्दू लोग मुस्लिम भाइयों को रंग लगाकर गाली देते हैं या कह लें व्यंगात्मक ढंग से मजे लेते हैं। बढ़िया बात ये है कि मुस्लिम लोग इस बात का बुरा नहीं मानते। उल्टा खुशी खुशी रंग लगवाते हैं, लगाते हैं और होली की बधाइयां देते हैं।

और तो और रंग लगाने और गाली देने के बदले हिन्दुओं को नजराना भी देते हैं। गांव के लोग बताते हैं, ये परंपरा नवाबों के दौर से चल रही है। सबसे खास बात ये है कि 45 हजार की आबादी वाले गांव में हिंदुओं की संख्या केवल ढाई हजार है।

लठमार होली

ब्रज की महिलाएं पुरुषों पर लाठी बरसा रही हैं।
ब्रज की महिलाएं पुरुषों पर लाठी बरसा रही हैं।
ब्रज के बरसाने और नंदगांव की लठमार होली को देखने देशभर के लोग आते हैं। यहां की महिलाएं महीनेभर पहले से ही इसकी तैयारी में जुट जाती हैं। बढ़िया-बढ़िया लठों को सिलेक्ट करके उन्हें तेल में भिगो कर रख दिया जाता है। होली के दिन महिलाएं इन लठों को पुरुषों पर बरसाती हैं।

पुरुष ढाल की मदद से लाठियों से बचने की कोशिश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये होली राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन यहां की महिलाएं दूध, दही और माखन भी खाती हैं।

इटावा की बिच्छू होली

सैंथना के बच्चों के हाथ में बिच्छू रेंग रहा है। होली में डंक नहीं मारता।
सैंथना के बच्चों के हाथ में बिच्छू रेंग रहा है। होली में डंक नहीं मारता।
UP के इटावा जिले के सैंथना गांव के लोग बिच्छुओं के साथ होली मनाते हैं। यहां के लोग होली के अगले दिन भैसान देवी के टीले पर चढ़ते हैं। इस टीले पर सैकड़ों बिच्छू निकलते हैं। लोग इन बिच्छुओं की पूजा करते हैं और फिर सभी इन बिच्छुओं को हाथ में रख कर घुमते हैं। बिच्छू उनके पूरे शरीर पर रेंगते रहते हैं। कहते हैं, इस दिन बिच्छू उन्हें डंक नहीं मरता। यहां के सभी लोग बिच्छुओं के साथ ही होली खेलते हैं।

 

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