भारत के किसानों ने अमेरिका को दिया करारा जवाब: टैरिफ की धमकी पर उठी स्वाभिमान की आवाज़

अमेरिका ने एक बार फिर दोस्ती की परिभाषा बदल दी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 1 अगस्त 2025 से भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा, सिर्फ एक व्यापारिक निर्णय नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता, किसानों के आत्मसम्मान और स्वाभिमान पर सीधा प्रहार है। जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे पुरानी सभ्यता के अन्नदाता को चुनौती देती है, तो जवाब केवल आर्थिक नहीं, सांस्कृतिक और रणनीतिक भी होना चाहिए। यह लेख इसी जवाब की मजबूत और व्यावहारिक रेखा खींचता है — एक ऐसी रणनीति जो भारत के किसानों, उसकी मिट्टी और उसकी नीतिगत दृढ़ता को केंद्र में रखती है।
जब दोस्ती व्यापारिक तानाशाही बन जाए
डॉ. राजाराम त्रिपाठी लिखते हैं कि अमेरिका, जो हमेशा दोस्ती और सहयोग की बात करता रहा है, अब खुलकर व्यापारिक दादागीरी दिखा रहा है। 1 अगस्त 2025 से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा ने केवल आर्थिक संबंधों को नहीं, बल्कि भारत के स्वाभिमान को भी गहरी चुनौती दी है। भारत के 70 करोड़ लोग खेती पर निर्भर हैं, और 140 करोड़ लोगों की थाली का संबंध खेतों से है — ऐसे में यह टैरिफ सिर्फ आर्थिक आघात नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न है।
असली मुद्दा: बाज़ार खोलो या टैरिफ झेलो?
डॉ. त्रिपाठी सवाल उठाते हैं — “क्या अमेरिका की यह कार्रवाई सिर्फ रूस से भारत के सैन्य संबंधों की वजह से है, या यह दबाव है कि भारत अपना कृषि बाज़ार अमेरिकी GM फसलों, सब्सिडी वाले डेयरी और मीट उत्पादों के लिए खोल दे?” वे कहते हैं कि यह तथाकथित ‘स्वतंत्र व्यापार’ दरअसल एकतरफा दबाव है, जिसमें भारत के किसान की मेहनत, उसकी मिट्टी की सुगंध और सामूहिक कृषि संस्कृति को रौंदा जा रहा है।
क्या अमेरिका को याद है हमारी ‘अमूल क्रांति’?
डॉ. त्रिपाठी याद दिलाते हैं कि भारतीय सहकारी आंदोलन ने दूध में आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम की। अमूल जैसे मॉडल ने छोटे किसानों को सशक्त किया। ऐसे में अमेरिकी डेयरी लॉबी के सब्सिडी मॉडल को भारत में प्रवेश देना, हमारे सहकारिता आंदोलन और किसान की आत्मनिर्भरता का अपमान होगा। वे कहते हैं — “हमारे किसान सिर्फ आंकड़े नहीं, एक जीवंत विरासत हैं।”
सरकार को स्पष्ट “ना” कहने का समय
लेखक के अनुसार, अब समय है कि भारत सरकार अमेरिका के दबावों को सिरे से खारिज करे। रूस के साथ भारत के संबंध या कोई भी अन्य आरोप केवल बहाने हैं। “सरकार को किसानों की खाद्य सुरक्षा, आत्मनिर्भर नीति और अस्तित्व की रक्षा के लिए मजबूती से खड़ा होना चाहिए।”
25% टैरिफ का वास्तविक आर्थिक असर
डॉ. त्रिपाठी ने लेख में विस्तृत आर्थिक आंकड़ों के माध्यम से अमेरिका के इस टैरिफ के असर को समझाया है:
- भारत का कुल विदेश व्यापार: ~$1.3 ट्रिलियन
- भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार: ~$150 अरब
- भारत से अमेरिका को कृषि-निर्यात: ~$15 अरब
- 25% टैरिफ की अतिरिक्त लागत: ~$3.75 अरब
- निर्यात में संभावित गिरावट: 20–30%
- GDP पर असर: 0.3–0.5%
- विदेश व्यापार में गिरावट: 1.5–2%
यह सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि रणनीतिक और सामाजिक झटका भी है।
भारत का व्यवहारिक रणनीतिक रोडमैप
डॉ. त्रिपाठी का सुझाव है कि अब भारत को बहुआयामी और व्यवहारिक रणनीति अपनानी चाहिए:
1. निर्यात का विविधीकरण:
फूल, औषधीय पौधे, जैविक मसाले, मिलेट्स, मोरिंगा जैसे सुपरफूड्स, और प्रोसेस्ड उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
2. नए बाजारों की खोज:
पूर्वी एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे नए क्षेत्रों में कृषि उत्पादों के लिए ब्रांड उपस्थिति बढ़ानी चाहिए।
3. आयात प्रतिस्थापन:
कृषि रसायनों, मशीनरी, और अल्पज्ञात दलहनों का स्वदेशी उत्पादन बढ़ाना जरूरी है।
4. लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन सुधार:
बंदरगाह, रेलवे और हाइवे कनेक्टिविटी को सुधारना होगा ताकि एक्सपोर्ट कॉस्ट कम हो।
5. जैविक खेती और वैश्विक मानक:
यूरोपीय यूनियन जैसी जगहों के लिए प्रमाणीकरण और क्वालिटी मानकों के अनुरूप उत्पादन जरूरी है।
6. डिजिटल और ई-कॉमर्स निर्यात:
भारत के उत्पादों को Amazon, Walmart, Tmall और डिजिटल पोर्टल्स के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाना चाहिए।
7. स्किलिंग और लेबर-इंटेंसिव उद्योग:
ग्रामीण युवाओं को कृषि, फूड प्रोसेसिंग, हर्बल उत्पादों और MSME में प्रशिक्षित कर आगे बढ़ाया जाए।
रूस से सबक: आत्मनिर्भर कृषि की दिशा में
डॉ. त्रिपाठी, जो इस समय रूस की यात्रा पर हैं, बताते हैं कि रूस ने कैसे अमेरिकी पाबंदियों की परवाह किए बिना अपनी कृषि नीति को वैज्ञानिक और स्वदेशी बना लिया है। जैविक खेती, रिसर्च आधारित इनोवेशन और किसान-प्रधान नीति ने रूस को आत्मनिर्भर बना दिया है। वह भारत के लिए एक प्रेरणास्रोत हो सकता है।
स्वाभिमान और रणनीतिक विविधता ही रास्ता
लेख के अंत में डॉ. त्रिपाठी लिखते हैं:
“सच्चे मित्र वही हैं जो हमारी ज़मीन, हमारे किसान और हमारी संप्रभुता का सम्मान करें।”
अमेरिकी टैरिफ का दबाव चाहे जितना हो, अब समय है बहुपक्षीय, व्यावहारिक और किसान-समर्थ नीति का। रूस, अफ्रीका और एशिया में हमारे रिश्ते आत्मनिर्भर भारत के लिए नई बुनियाद रख सकते हैं।
“भारत अमेरिका से डरने वाला नहीं,
हमारे किसान घुटने टेकने वाले नहीं,
और सरकार अब नई सोच के साथ आगे बढ़ने को तैयार है।”
भारत की मिट्टी की सुगंध, किसान की ताकत और रणनीतिक विवेक — यही हमारी असली पूंजी है।