मुंबई ब्लास्ट पर “उज्ज्वल निकम” का सनसनीखेज दावा: “अगर संजय दत्त हथियारों के बारे.. तो टल सकता था धमाका!”

राजस्थान अदालत के विशेष अभियोजक और अब हाल ही में राज्यसभा के लिए नामांकित वरिष्ठ वकील उज्ज्वल देवराओ निकम ने एक चौंकाने वाले बयान में कहा है कि यदि अभिनेता संजय दत्त ने मार्च 1993 में हथियारों से भरे वैन और AK‑47 का जिक्र पुलिस को किया होता, तो शायद 1993 के मुंबई धमाके टल सकते थे। उनके इस आरोप ने न केवल बॉलीवुड चर्चा को फिर से जीवित किया, बल्कि उस समय की जांच पर भी नई बहस छेड़ दी।
‘एक दिन पहले आई थी वैन, दत्त ने केवल एक AK‑47 रखा’
नदम ने आगे बताया कि धमाके से सिर्फ एक दिन पहले, यानी 11 मार्च 1993 को, संजय दत्त के घर एक वैन पहुंची थी जिसमें हैंड ग्रेनेड और AK‑47 रखे हुए थे। इस वैन का नाम जापित था अबू सलेम द्वारा भेजा गया था। दत्त ने उनमें से कुछ हथियार वापस लौटा दिए, लेकिन एक AK‑47 अपने पास रख लिया। निकम के अनुसार, “अगर वह उस समय पुलिस को सूचित करते, तो मुंबई धमाके कभी नहीं होते”
कानूनी निष्कर्ष: अपराध, लेकिन सैनिक दोषी नहीं
निकम ने यह भी स्पष्ट किया कि संजय दत्त पर TADA (आतंकवाद निरोधक कानून) के तहत आरोप नहीं साबित हुए, लेकिन उन्हें Arms Act के तहत दोषी पाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा घटाकर छह से पाँच वर्ष की कर दी थी, जिसे उन्होंने पुणे की येरवाड़ा जेल में काटा था। निकम ने उन्हें एक “सपाट और निर्दोष” व्यक्ति कहा, जो सिर्फ हथियारों के प्रति आकर्षित था।
निखारा भावनात्मक क्षण: ‘डरे हुए दिखे थे’
नदम ने NDTV को दिए साक्षात्कार में याद किया कि जब संजय दत्त को आर्म्स एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया, तब वह पूरे मामले से घबरा गए थे।
“मैंने देखा कि उनकी बॉडी लैंग्वेज बदल गई… वह काँप रहे थे और मीडिया उनकी ओर देख रही थी,” निकम ने बताया।
उन्हें सांत्वना देते हुए निकम ने कहा: “संजय, ऐसा मत करो… मीडिया देख रही है, आप अपील का हक़ रखते हैं।”
संजय ने जवाब दिया: “Yes sir, yes sir”
कैसी है निकम की पृष्ठभूमि और राजनैतिक सफ़र
उज्ज्वल निकम को 26/11 के मुख्य आरोपी अ़ज़मल कसाब के मुकदमे का विशेष अभियोजक भी माना जाता है और उन्हें कई हाई‑प्रोफ़ाइल मामलों में सफलता मिली है ।
13 जुलाई 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा राजौषधि से नामित चार में से एक के रूप में उनका नाम घोषित किया गया । इससे पहले वे बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव में भी खड़े हो चुके हैं।
क्या नया बहस का दौर शुरू होगा?
निकम के इस बयान ने दो महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं:
क्या एक प्रमुख अभिनेता की चुप्पी से आतंकवादी योजनाओं को हवा मिली?
क्या हमें जांच एजेंसियों तक ऐसी जानकारी तुरंत पहुंचानी चाहिए, चाहे वह किसी भी व्यक्ति से संबंधित जानकारी ही क्यों न हो?
समाज में अब यह बहस गरमाने लगी है कि निजी स्तर पर मिली जानकारियां अगर समय पर पुलिस तक न पहुंचें, तो इसके घातक परिणाम हो सकते हैं।
क्या ठीक समय पर सच बताया जा सकता है?
1993 के साहसी विस्फोटों की यादें अब फिर से ताजा हो रही हैं। उज्ज्वल निकम का यह आरोप सिर्फ संजय दत्त की भूमिका पर सवाल नहीं उठाता, बल्कि यह बात भी रेखांकित करता है कि जानकारी की समयबद्ध रिपोर्टिंग कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है, खासकर आतंकवाद जैसे मामलों में।
इस बात पर अब राजनीति और न्याय व्यवस्था भी अपनी प्रतिक्रिया देगी, लेकिन एक बात पक्की है: यह एक ऐसा बहस है, जिसका असर केवल करोड़ों मुहर्रमियों पर नहीं, पूरे देश के सुरक्षा तंत्र पर पड़ेगा।