PM के जनजातीय सम्मेलन का सियासी गणित:डेढ़ लाख लोग निमाड़-महाकौशल से बुलाए

BJP को 15 सीटों का नुकसान इन्हीं इलाकों से हुआ

2013 की तुलना में BJP को 2018 में आदिवासी बहुल 25 सीटें कम मिली थीं

मध्यप्रदेश में भले ही अभी विधानसभा चुनाव में 2 साल बाकी हों, लेकिन भाजपा ने मिशन 2023 के लिए जमीनी तैयारी शुरू कर दी है। शिवराज सरकार भोपाल में 15 नवंबर को जनजातीय सम्मेलन का आयोजन कर रही है। सम्मेलन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संबोधित करेंगे। इसमें प्रदेशभर से 2 लाख आदिवासियों को लाने का टारगेट तय किया है। निमाड़ और महाकौशल से डेढ़ लाख आदिवासियों को भोपाल लाया जा रहा है। सम्मेलन का आयोजन का सियासी मकसद भी है। जानिए क्या है इसके पीछे का गणित…

2018 में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी
मध्य प्रदेश में आदिवासी आबादी करीब 23% है। प्रदेश में विधानसभा की 230 में से 47 सीटें इस वर्ग के लिए रिजर्व हैं। इनके अलावा, 84 सीटें ऐसी भी हैं, जहां आदिवासी जीत और हार तय करते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी बहुल 84 में से 34 सीट पर ही जीत हासिल की थी। इससे पहले 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। यानी, भाजपा को 25 सीटों पर नुकसान हुआ था। भाजपा को सरकार बनाने के लिए बहुमत (116 सीटें) से 7 सीटें कम मिली थीं। इससे साफ है कि आदिवासियों का साथ नहीं मिलने के कारण भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी और कमलनाथ सत्ता में आ गए थे।

सबसे ज्यादा नुकसान मालवांचल में
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को ट्राइबल रिजर्व सीटों पर सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। मालवा में आदिवासियों के लिए रिजर्व 22 में से मात्र 6 सीटें बीजेपी को मिली थीं, जबकि कांग्रेस ने 16 सीटें जीती थीं। 2013 में आदिवासियों ने भाजपा का साथ दिया था, तब पार्टी को यहां 18 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। यही वजह है कि जनजातीय सम्मेलन में निमाड़-मालवा से डेढ़ लाख आदिवासियों को लाने का टारगेट रखा गया है। इसके बाद महाकौशल में 15 में से 4 सीटें ही बीजेपी जीत पाई थी। अब इस इलाके पर फोकस किया जा रहा है। यही वजह है कि भाजपा ने जबलपुर में आयोजन किया था।

इंदौर को सबसे ज्यादा 50 हजार आदिवासी लाने का टारगेट
आयोजन में मालवांचल से आने वाले आदिवासियों का टारगेट सबसे ज्यादा 50 हजार इंदौर प्रशासन को दिया गया है। संभाग के आसपास के जिलों से आदिवासियों को इंदौर में नाइट हॉल्ट की व्यवस्था की गई है। इन आदिवासियों को रहने-खाने से लेकर भोपाल तक लाने और ले जाने का इंतजाम इंदौर में किया गया है। चूंकि इंदौर में 50 हजार लोगों को ठहराने की व्यवस्था बन सकती है, इसलिए यहां बड़े पैमाने पर इंतजाम किया है। प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं, जबकि अन्य मंत्री और जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदारी दी गई है।

2 महीने में 14 घोषणाएं लागू होंगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मप्र सरकार की आदिवासियों से जुड़ी 14 घोषणाएं लागू करेंगे। ये घोषणाएं 18 सितंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जबलपुर गोंड राजा रघुनाथ शाह-शंकर शाह के शहीदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में की थीं, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे। इन घोषणाओं काे लागू करने का ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।

पहली बार इतने बड़े पैमाने पर आयोजन
आदिवासी बहुल जिले झाबुआ, मंडला, डिंडोरी, बड़वानी, धार, खरगोन, खंडवा, रतलाम, बैतूल, सिवनी, बालाघाट, शहडोल, उमरिया, सीधी, श्योपुर, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा है। प्रदेश में इस समुदाय की आबादी एक करोड़ 53 लाख से ज्यादा है। यह पहला अवसर है, जब आदिवासियों से जुड़ा कोई आयोजन इतने बड़े पैमाने पर आयोजित किया जा रहा है। कांग्रेस भी समय-समय पर आयोजन करती आई है, लेकिन इस वर्ग को साधे रखने की राजनीतिक तौर पर कवायद नहीं हुई।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 40 हजार छात्रों ने छोड़ दिया स्कूल
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आदिवासी बहुल जिलों में 40 हजार छात्रों ने स्कूल छोड़ दिया। इससे पहले 20 जिलों के 89 आदिवासी ब्लॉकों के करीब 2800 स्कूलों को बंद करने पर सरकार को इस वर्ग की नाराजगी झेलना पड़ी थी। अब सरकार की कोशिश है कि स्कूली शिक्षा के साथ आदिवासी युवाओं को जोड़ने की है। इसके लिए स्वरोजगार के कोर्स शुरू किए जा रहे हैं।

इन 14 घोषणाओं को लागू करेंगे मोदी

राशन आपके द्वार योजना 89 ट्राइबल ब्लॉक में शुरू होगी।सिकेल सेल एनीमिया बीमारी से निजात पाने के लिए मिशन प्रारंभ होगा।छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकर शाह होगा।मध्यप्रदेश औषधीय पादप बोर्ड का गठन।देवारण्य औषधीय पादक बोर्ड का गठन।सामुदायिक वन प्रबंधन का अधिकार आदिवासी समाज को दिया जाएगा।पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) (PESA) एक्ट चरणबद्ध तरीके से प्रदेश में लागू होगा।आदिवासी विद्यार्थियों को कक्षा 9वीं से ही NEET और JEE मेंस की परीक्षा की तैयारी के लिए स्मार्ट क्लासेस शुरू होगी।वनोपज से बांस-बल्ली और जलाऊ लकड़ी पर समिति को अधिकार।प्रत्येक गांव में 4 व्यक्तियों को ग्रामीण इंजीनियर के रूप में ट्रेनिंग दी जाएगी।आदिवासी युवाओं को पुलिस व सेना में भर्ती के लिए ट्रेनिंग।एक साल में सरकारी बैकलॉग के रिक्त पदों पर भर्ती का अभियान चलाकर भरा जाएगा।जल जीवन मिशन के अंतर्गत हर गांव में पानी की टंकी का निर्माण कर हर घर में नल कनेक्शन।मछली, मुर्गी व बकरी पालन के लिए एकीकृत स्कीम लागू होगी।

आदिवासी बाहुल्य सीटों पर समीकरण बदले

2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थीं, जबकि 1998 में कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव था।2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी।2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।2018 के इलेक्शन में पांसा पलट गया। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी। कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली, जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई। 

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