गुजरात में ये सेना कर रही चुनाव में मदद।

गुजरात में ये सेना कर रही चुनाव में मदद।

ये सेना है गुजरात में BJP की ताकत

क्यों पीछे हैं बाकी पार्टियां ?

गुजरात में 182 सीटों के लिए दो चरणों- 1 और 5 दिसंबर को वोट पड़ेंगे और नतीजें आएंगे 8 दिसंबर को, इस चुनाव में संकेत और समीकरण बीजेपी के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं । लेकिन ऐसा है क्यों. और क्यों बीजेपी से बाकी पार्टियां पीछे दिखाई देती हैं । दरअसल बीजेपी के पास गुजरात में एक ऐसी सेना है जो बाकी दलों से बीजेपी को काफी आगे करती है।

ये सेना लोगों से सीधे कनेक्ट है और लोगों से सुख दुख में शरीक होती है। भाजपा के पास यहां ऐसे 80 से 82 लाख लोग हैं। जिनके नाम, संपर्क विवरण, पहचान और पते पार्टी के साथ पंजीकृत हैं और साल में कई स्तरों पर इन्हें सत्यापित किया जाता है, ताकि इन्हें पार्टी के संगठन के साथ जोड़ा जा सके…उदाहरण ऐसे समझिए कि, अगर किसी को कहीं गांव में कोई मेडिकल मदद की जरूरत है तो बीजेपी की इस सेना का सिपाही , सरकार की योजना से इसकी मदद करता है ।

 

बीजेपी जिस पन्ना प्रमुख के कॉन्सेप्ट को पूरे देश में लागू कर चुकी है वो गुजरात से ही पैदा हुआ और गुजरात में ये बहुत मजबूती से काम करता है। पन्ना प्रमुख- मतदाता सूची के एक पेज का प्रमुख- देश भर में बूथ प्रमुखों, पन्ना प्रमुखों और पन्ना समितियों के भाजपा के बहुचर्चित व्यापक नेटवर्क का एक छोटा घटक है, जिस पर पार्टी आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए भरोसा कर रही है। इस नेटवर्क के जरिए पार्टी मतदाताओं की छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे चुनाव के दिन मतदान करने के लिए बाहर आएं, और जब चुनाव नहीं होता है, तो भाजपा की ये पैदल सेना लगभग एक समानांतर प्रशासन प्रणाली चलाते हैं. वे सरकारी योजनाओं को लाभार्थियों के दरवाजे तक लाते हैं, किसी भी काम या समस्याओं को सुलझाने के लिए बिचौलियों के रूप में काम करते हैं। और जाहिर तौर पर भाजपा के लिए प्रचार करते रहते हैं।

 

आपको बता दें कि जब चुनाव का समय नहीं होता है, तो ये सेना रोजाना आधा घंटे काम करती है। इलेक्शन के समय लोग एक्टिव हो जाते हैं। पन्ना प्रमुख का अप्वाइंटमेंट भी अहम है। हर पोलिंग बूथ के लिए एक हेड होता है।  बूथ प्रमुखों के तहत, बूथ स्तर पर हर एक पेज या मतदाताओं के साथ पार्टी के संपर्क के पहले व्यक्ति के तौर पर एक प्रमुख नियुक्त किया जाता है, जिसे पन्ना प्रमुख कहा जाता है. हर पेज में लगभग 30-35 मतदाता हैं। पन्ना प्रमुख का काम यह देखना है कि उनमें से कितने लोग भाजपा को सपोर्ट करते हैं. और जो लोग भाजपा के मतदाता नहीं हैं, तो उन्हें अपने काम और उनकी मदद के जरिए पार्टी के तरफ झुकाना होता है। आप समझ सकते हैं कि गुजरात में शाह और मोदी ने कितनी माइक्रो प्लानिंग की है।  इलेक्शन के लिए और क्यों बीती 28 सालों में बीजेपी को यहां कोई हिला नहीं पाया। दरअसल पन्ना प्रमुख का नाम उसी मतदाताओं के पेज से चुना जाता है जिनकी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाती है।उनके पेज पर 30-35 मतदाता यानी पांच या छह परिवारों होते हैं।

आमतौर पर ये मतदाता उनके पड़ोसी ही होते हैं। ये लोग हम परिवार में रोजाना जाते हैं और उन्हें बीजेपी के पक्ष में मोड़ने का काम करते हैं। बीजेपी गुजरात में इसे और माइक्रो लेबल तक लेकर जा रही है। जहां पहले एक प्रमुख के पास तीस लोगों की जिम्मेदारी होती थी वहीं अब पन्ना समिति मॉडल के साथ हर पांच या छह मतदाताओं के लिए एक जिम्मेदार व्यक्ति काम कर रहा है।ये सेना यानी पन्ना प्रमुख लोगों के साथ स्थानीय बैठकें आयोजित करके और परिवारों को (अपने चुनावी पेज वाले) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ को एक साथ सुनने के लिए आमंत्रित करते हैं। सप्ताह में एक बार स्थानीय विधायक पार्टी के बूथ-स्तरीय कैडर से मिलते हैं और महीने में एक बार स्थानीय सांसद से भी मिलते हैं। विधायक हर महीने एक बार बूथ कार्यकर्ताओं को स्थानीय सरकारी अधिकारियों से मिलाने की भी कोशिश करते हैं।अब अगर किसी पार्टी को या कांग्रेस को ही बीजेपी को गुजरात में हराना है तो उसे इन 80 लाख लोगों की सेना का तोड़ निकालना होगा, और शायद इसका तोड़ अभी किसी पार्टी के पास नहीं है।

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