सत्ताधारियों के कब्जे में है सरकारी अस्पतालों की स्वास्थ व्यवस्था

स्वास्थ्य यानी मनुष्य के जीवन से जुड़ा हुआ एक हिस्सा. बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वास्थ्य साथ देता है यदि स्वास्थ्य में कुछ भी कमी होती है या फिर मनुष्य को कोई भी बीमारी पकड़ती है तो वह अस्पतालों में जाता है ताकि उसका स्वास्थ्य सही रहे और उसका जीवन भी सुख में चलता रहे लेकिन आज के समय में स्वास्थ्य का हाल बेहाल है जिसका कारण जहरीली हवा रसायन से भरी सब्जियां, फल और तो और जंक फूड यानी बर्गर, चाऊमीन इत्यादि है.ये हमारे स्वास्थ्य को असंतुलित कर रही है मनुष्य जब बीमार होता है तो वह अपने नजदीकी अस्पताल में जाने की सोचता है ताकि उसका सही समय पर इलाज हो सके या फिर कोई भी दुर्घटना हुई वह भी नजदीकी अस्पताल में जाने के लिए सोचता है. लेकिन जिस मनुष्य को स्वास्थ संबंधित कोई भी दिक्कत होती है यही चाहता है कि हमारा इलाज अच्छे से हो सके ताकि हम जल्दी से अस्वस्थ से स्वस्थ हो सके. यदि उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति नहीं सही है तो ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में भी जाने का सोचता है लेकिन आज के सरकारी अस्पतालों की बात निराली हो चुकी है सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बजट पास करती है बजट को भी पास करने के लिए लाखों-करोड़ों लगते हैं और जब बजट पास हो जाता है जब स्वास्थ के लिए अस्पतालों में व्यवस्थाएं कराई जाती है तब पर भी लाखों-करोड़ों लगते हैं. जरा सोचिए यह लाखों-करोड़ों उस मनुष्य तक पहुंच रहा है? जिसको वास्तव मे जरूरत है, जिसके पास आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है क्या वह सरकारी अस्पतालों का लाभ उठा पा रहा है? मेरा मानना है कि जो सरकार पैसा पास करती है सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करने में लगी रहती है वह सब उनके सत्ता में आए हुए लोगों के लिए ही लगाता है. एक उदाहरण के तौर पर एक गरीब व्यक्ति को बुखार है वह व्यक्ति एक वक्त की रोटी के लिए मजदूरी करता है अपने इलाज के लिए वह सरकारी अस्पताल में जाता है तो उसे सबसे पहले एक रुपए के पर्चे के लिए पूरे दिन की लंबी लाइन लगानी पड़ती है और तो और समय आया तो ठीक है वरना दूसरे दिन भी वही लंबी लाइन दोहरानी पड़ती है. उसके बाद जब नंबर आता है तो डॉक्टर उसे एक पर्चे में लिखकर बोलते हैं यहा सिर्फ एक ही दवाई है और सब आप को बाहर से लेनी पड़ेगी फिर उसकी कुछ जाचे होती है उसके लिए भी उसे 4 दिन दौड़ाया जाता है. जरा सोचिए एक गरीब व्यक्ति अपने इलाज के लिए 4 से 5 दिन का समय व्यर्थ करता है फिर भी इलाज उसका सही से नहीं हो पाता है.सरकारी अस्पताल के द्वारा लिखी हुई बाहर की दवाई वो भी उस व्यक्ति को खरीदना पड़ता है. एक मजदूर व्यक्ति 1 दिन में मजदूरी करके 200 रु से 300 रु  कमाता है, चार-पांच दिन काम ना करके वह इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में ही बैठा रहता है उसका कितना नुकसान होता है. यह था उदाहरण एक गरीब व्यक्ति का और हम आपको उदाहरण नहीं बल्कि आपको एक सच्चाई बताते हैं कि उसी सरकारी अस्पताल में कोई नेता मंत्री या जो सत्ता में हो उसका कोई व्यक्ति उस सरकारी अस्पताल में आता है तो उसका इलाज बिना लाइन में लगाए हुए बिना समय खर्च किए हुए बिना पैसा लगाए हुए वह भी सुचारू रूप से किया जाता है क्योंकि उस अस्पताल में बैठे डॉक्टरों पर सत्ताधारी वा मंत्रियों का दबाव होता है ऐसे में अगर उस व्यक्ति का इलाज नहीं किया तो डॉक्टर अपनी नौकरी भी खो सकता है. उसको तुरंत इलाज दिया जाता है. वही एक गरीब व्यक्ति जो मजदूरी करके अपना पेट भरता है वह अपना निजी अस्पताल में इलाज सही से ना करा पाने पर वह सरकारी अस्पतालों में जाता है उसे इलाज नहीं मिलता बल्कि उसे दर-दर भटकना पड़ता है. यह है आज के सरकारी अस्पतालों की स्थिति जिस व्यक्ति को वास्तव में सरकारी अस्पतालों की इलाज की जरूरत है उसे आज नहीं मिल रहा है वह इतना सक्षम नहीं है कि वह अपना इलाज निजी अस्पतालों में कराए फिर सरकार को दिखावा किस बात का कि वह सरकारी अस्पतालों के लिए व्यवस्थाए पूरी करते हैं.

एक गरीब तबके का व्यक्ति अपने इलाज के लिए खून पसीना निकाल कर दौड़ते है ताकि उन्हे मुफ्त इलाज मिल जाए लेकिन उन्हे सही ढंग से इलाज नहीं मिल रहा है वह इलाज उन सत्ता धारियों को मिल रहा है जो जो सत्ता में हो. जिसके कारण उस गरीब तबके के घर की रोशनी बुझ जाती है यानी उसकी मृत्यु हो जाती है  वक्त पर सही से इलाज ना हो पाने पर उसे अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ जाता है. ऐसे में सरकारी अस्पतालों की स्थिति बदहाल और सत्ता के कब्जे में हो चुकी है.

                                                                           – विवेक कुमार साहू 

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