ओपी राजभर के लिए जहूराबाद की जंग आसान नहीं! जानिए क्यों

भाजपा से प्रत्याशी बनाए गए कालीचरन राजभर दो बार इस सीट से बसपा के सिंबल पर विधायक बनें

वाराणसी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है. उधर, पूर्वांचल की गाजीपुर जिले की जहूराबाद सीट इस बार कई मायनों से चर्चा में है. पिछली बार इस सीट से भाजपा के साथ गठबंधन में बंधकर पूर्व मंत्री और सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर जीते थे, लेकिन इस बार वो सपा के सारथी बनकर मैदान में है. 2012 में इस सीट से सपा की टिकट पर जीतकर विधायक बनीं शादाब फातिमा की जब इस बार सपा से उम्मीदें खत्म हो गईं तो वो बसपा के टिकट पर मैदान में है. वहीं भाजपा से प्रत्याशी बनाए गए कालीचरन राजभर दो बार इस सीट से बसपा के सिंबल पर विधायक बनें.

बता दे कि कालीचरन, राजभर 2002 और 2007 में विधायक रहे. लेकिन दस सालों में हाथी से साइकिल की सवारी करते हुए करीब तीन पहले पहले भगवा खेमे में शामिल हुए और अब भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में है. यानी जहूराबाद की जंग में तीनों बड़े चेहरे इस बार दल बदलकर मैदान में है. अखिलेश सरकार में मंत्री रही शादाब फात्मा शिवपाल यादव की करीबी मानी जाती हैं. 2017 के चुनाव में जब चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच जंग हुई तो पार्टी के दिग्गज नेता भी दो धड़ों में बंट गए. शादाब फात्मा ने शिवपाल यादव को चुना माना जाता है कि शायद इसीलिए पिछले चुनाव में उनको टिकट नहीं मिला.

ओमप्रकाश राजभर के लिए जातीय समीकरण

इस बार के चुनाव में चाचा- भतीजे तो मिल गए लेकिन शायद दो धड़ों में बंटे नेताओं को लेकर रार खत्म हो गई. सियासी जानकार मानते हैं कि शायद इसीलिए शादाब फात्मा को इस बार भी सपा से टिकट नहीं मिली. हालांकि दूसरी बड़ी सियासी वजह ये है कि ओमप्रकाश राजभर के लिए जातीय समीकरण के लिहाज से जहूराबाद सीट सुरक्षित दिख रही थी. इसलिए पहले शिवपुर से चुनाव लड़ने की बात कहने वाले ओमप्रकाश राजभर ने यू टर्न लेते हुए एक बार फिर जहूराबाद से ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया. सपा गठबंधन में ओमप्रकाश राजभर बड़ा चेहरा हैं. इसलिए अखिलेश यादव को उनकी सीट पर उनकी मर्जी को मानना सियासी मजबूरी भी है.

जानें इस विधानसभा में सबसे अधिक दलित वोटर्स

मोटे तौर पर जो जातीय समीकरण इस सीट को लेकर गिनाए जाते हैं, उसके लिहाज से इस सीट पर ओमप्रकाश राजभर समेत शादाब फात्मा और कालीचरन राजभर के लिए आसान नहीं है. सामान्य अनुमान के अनुसार इस करीब पौने चार लाख वोटर वाली इस विधानसभा में सबसे अधिक दलित वोटर्स हैं. यहां दलित वोटर्स की तादाद तकरीबन 70 से 75 हजार के बीच में है. जबकि दूसरे नंबर पर राजभर वोटर हैं. राजभर वोट करीब 65 से 67 हजार के बीच में है. वहीं यहां यादव मतदाताओं की संख्या करीब 45 हजार है. जबकि करीब 35 हजार चौहान वोटर्स, करीब 30 हजार मुस्लिम मतदाता और करीब 15 हजार ब्राह्मण मतदाता भी जंग को दिलचस्प बनाते हैं. अब ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा कि जहूराबाद की जंग कौन जीतेगा

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