तेजप्रताप-तेजस्वी की ‘X’ तक सीमित रह गई बातचीत ? दिया ‘जयचंद’ वाले ट्वीट का शॉकिंग रिप्लाई, हुआ Viral

बिहार की राजनीति में एक ओर जहां विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आरजेडी के अंदरूनी हालात भी अब खुलकर सामने आने लगे हैं। लालू यादव के दो सपूत – तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव – जिनके रिश्ते कभी अर्जुन और कृष्ण जैसे माने जाते थे, अब एक-दूसरे से संवाद करने के लिए सिर्फ सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। एक ट्वीट करता है, तो दूसरा ट्वीट से ही जवाब देता है। सवाल यह है कि क्या यह मतभेद निजी है या इसके पीछे बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा बदलने वाला है?

तेज प्रताप का भावुक ट्वीट: “मेरे अर्जुन से मुझे अलग करने वालों…”

तेज प्रताप यादव ने हाल ही में एक भावुक ट्वीट कर पार्टी और परिवार के भीतर हो रही साजिशों का इशारों में खुलासा किया। उन्होंने लिखा,

“मेरे अर्जुन से मुझे अलग करने का सपना देखने वालों, तुम कभी अपनी साजिशों में सफल नहीं हो सकोगे। कृष्ण की सेना तो तुम ले सकते हो लेकिन खुद कृष्ण को नहीं।”

इस ट्वीट में उन्होंने खुद को ‘कृष्ण’ और तेजस्वी को ‘अर्जुन’ बताते हुए यह जताने की कोशिश की कि भाईचारे के इस रिश्ते को तोड़ने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन वो सफल नहीं होंगी। तेज प्रताप ने यह भी कहा कि वो हर परिस्थिति में तेजस्वी के साथ हैं और जल्द ही सभी साजिशों को बेनकाब करेंगे।

“जयचंद हर जगह हैं…”: अंदरूनी राजनीति पर तेज प्रताप का इशारा

तेज प्रताप के ट्वीट का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा था जब उन्होंने लिखा –

“मेरे भाई मम्मी-पापा का ख्याल रखना। जयचंद हर जगह हैं। अंदर भी और बाहर भी। इसीलिए सावधान रहना।”

इस बयान में उन्होंने आरजेडी के भीतर ‘जयचंद’ यानी गद्दारों के होने की बात कही। यह इशारा पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं या करीबी माने जाने वालों की तरफ था, जो संभवतः तेजस्वी को प्रभावित कर रहे हैं। यह पारिवारिक भावनाओं और राजनीतिक संकेतों का एक ऐसा मिश्रण था जिसने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी।

तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया: “राष्ट्रीय अध्यक्ष का निर्णय ही सर्वोपरि”

तेज प्रताप के ट्वीट के बाद तेजस्वी यादव से जब पत्रकारों ने इस पर सवाल किया तो उन्होंने बेहद सख्त और राजनीतिक अंदाज़ में जवाब दिया। उन्होंने कहा,

“राष्ट्रीय अध्यक्ष (लालू प्रसाद यादव) ने जो निर्णय लिया है, वह पार्टी और बिहार की भलाई के लिए है। उनके निर्णय के आगे मैं कुछ नहीं कहूंगा। मैं किसी के निजी जीवन पर टिप्पणी नहीं करता।”

तेजस्वी का यह बयान भले ही नपा-तुला हो, लेकिन यह उनके कड़े रुख को भी दर्शाता है। उन्होंने यह भी जताया कि अब आरजेडी में निर्णय लालू यादव के निर्देश पर लिए जा रहे हैं, चाहे वह किसी भी सदस्य को पसंद आए या न आए।

क्या टूट रहा है परिवार का साथ? सिर्फ ट्वीट्स से हो रही बातचीत

राजनीति में मतभेद आम बात है, लेकिन जब बात परिवार की हो, तो भावनाएं और गहरी हो जाती हैं। लालू परिवार की राजनीति अब ऐसी मोड़ पर आ खड़ी हुई है, जहां दो सगे भाई – जो कभी साथ मंच साझा करते थे – अब सार्वजनिक मंच की बजाय ट्विटर पर संवाद कर रहे हैं। न मुलाकात, न फोन कॉल – बस ट्वीट।

एक भाई भावुक होकर खुद को कृष्ण बताता है, तो दूसरा राजनीति की आड़ में हर सवाल को दरकिनार कर देता है। यह नजारा बताता है कि आरजेडी के भीतर सबकुछ सामान्य नहीं है।

पारिवारिक दरार का असर बिहार की राजनीति पर

बिहार की राजनीति में लालू यादव का परिवार एक प्रतीक रहा है – सत्ता, संघर्ष और विरासत का। लेकिन अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक है, आरजेडी के दो सबसे अहम चेहरे अगर आपस में ही मनमुटाव में उलझे रहेंगे, तो इसका सीधा असर पार्टी की रणनीति, जनाधार और चुनावी तैयारियों पर पड़ेगा।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सार्वजनिक मतभेद विरोधियों के लिए मौका बन सकता है। बीजेपी और जेडीयू को बैठे-बिठाए यह नैरेटिव मिल सकता है कि आरजेडी अपने ही घर को संभाल नहीं पा रही, तो बिहार कैसे संभालेगी?

सोशल मीडिया से नहीं सुलझते पारिवारिक रिश्ते

तेजस्वी और तेज प्रताप दोनों ही युवा, कद्दावर नेता हैं। लेकिन जब राजनीतिक मतभेद पारिवारिक रिश्तों पर हावी हो जाएं, तो पार्टी का भविष्य भी अनिश्चित हो जाता है। आज जरूरत है खुलकर बातचीत की, न कि ट्वीट्स के जरिए संकेत देने की। बिहार की राजनीति अब निर्णायक मोड़ पर है, और ऐसे में ‘कृष्ण’ और ‘अर्जुन’ का एक मंच पर आना ही जनता के भरोसे को मजबूत कर सकता है।

 

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