साहित्य का नोबेल:तंजानिया के अब्दुलरजाक गुर्नाह को साहित्य का नोबेल,

कमेटी बोली- उपनिवेशवाद के खिलाफ उन्होंने कोई समझौता नहीं किया

साहित्य का नोबेल पुरस्कार इस साल (2021) तंजानिया के उपन्यासकार अब्दुलरजाक गुर्नाह को दिया गया है। नोबेल कमेटी ने अपने बयान में कहा- उपनिवेशवाद के खिलाफ रजाक ने किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने इस बुराई की जड़ पर अपने साहित्य के जरिए प्रहार किया। गुर्नाह की कोशिश है कि महाद्वीपों के बीच सांस्कृतिक अंतर की गहरी खाई को लेखनी के जरिए भरा जाए।

बचपन से ही साहित्य में रुचि
नोबेल एकेडमी की तरफ से जारी बयान में कहा गया- अब्दुल संस्कृति के विस्तार के हिमायती रहे हैं। उन्हें बचपन से ही साहित्य के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने का शौक था। आप उनकी जीवन यात्रा में इसकी झलक देख सकते हैं। जीवन के आखिरी दौर में भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा।

अब तक 118 लोगों को साहित्य का नोबेल प्रदान किया जा चुका है। इनमें से 16 महिलाएं हैं। पिछले साल साहित्य का नोबेल अमेरिकन कवि लुईस लक को दिया गया था। उनका ताल्लुक येल यूनिवर्सिटी से था।

शरणार्थी समस्या पर पैनी नजर
गुर्नाह का जन्म तंजानिया के जेंजिबार में हुआ, लेकिन जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा उन्होंने ब्रिटेन में गुजारा। वे केन्ट यूनिवर्सिटी से रिटायर हुए हैं। यहां वे अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। यहीं उन्होंने उनपनिवेशवाद पर साहित्य की कई रचनाएं कीं।

अब तक उनके 10 उपन्यास और कई लघु कथाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। शरणार्थी समस्याओं पर उनकी पैनी नजर रही। 2005 में आए उनके नॉवेल डिर्जश्न ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं। इसमें उन्होंने एक यूरोपीय व्यक्ति के प्रेम प्रसंग को दिल छू लेने वाले अंदाज में पेश किया था। अब्दुल के साहित्य में आपको दास प्रथा के अलावा पुर्तगाल, भारत, जर्मनी, अरब और ब्रिटिश संस्कृति की भी झलक मिलती है।

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