तालिबान के पंजसिर पर हमला

अब तक अफगानिस्तान का अभेद्य किला रही पंजशीर घाटी तालिबान के सामने कब तक टिक पाएगी? क्या उसे इंटरनेशनल सपोर्ट मिलेगा?

अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है, लेकिन राजधानी काबुल से 125 किलोमीटर दूर पंजशीर घाटी अभी भी आजाद है। अफगान का यह इलाका अभी तक तालिबान के हाथ नहीं लगा है। पंजशीर घाटी लंबे समय से तालिबान के विरोध का गढ़ रही है। सोवियत यूनियन के खिलाफ लड़ने वाले मुजाहिदीन नेता अहमद शाह मसूद ने इस घाटी को अपना गढ़ बनाया था।

20 साल पहले भी तालिबान ने जब अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में लिया था, तब भी पंजशीर घाटी खुद को बचाने में कामयाब रही थी। हालांकि अब हालात बदल चुके हैं। तालिबान पहले से मजबूत स्थिति में है। खबर है कि उसने पंजशीर को घेरना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में बड़ा सवाल यही हैं कि पंजशीर के लड़ाके कब तक तालिबानियों का मुकाबला कर पाएंगे?

अब अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने विरोध का झंडा उठाया है। हालांकि अहमद मसूद के पास अपने पिता की विरासत के अलावा और कोई बड़ी पहचान नहीं हैं। उप-राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने भी यहीं पनाह ली है। पश्चिमी और तालिबान विरोधी सरकारों के साथ नजदीकी संबंध रखने वाले सालेह मसूद के साथ मिलकर तालिबान के खिलाफ गठजोड़ खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है कि पंजशीर तालिबान को बहुत ज्यादा टक्कर नहीं दे पाएगा।

इस बात की गुंजाइश कम ही है कि पंजशीर को इंटरनेशनल सपोर्ट मिलेगा

अहमद शाह मसूद की पंजशीर के लड़ाकों के साथ फाइल फोटो। मसूद को 2001 में आत्मघाती हमले में मार दिया गया था।

काबुल में मौजूद तालिबान से जुड़े एक सूत्र ने भास्कर से कहा, ‘तालिबान अगर पंजशीर पर नियंत्रण करना चाहेगा तो पंजशीर बहुत दिन तक टिक नहीं पाएगा।’ अफगानिस्तान में रह चुके, CIA और अमेरिका की सुरक्षा परिषद से जुड़े रहे रक्षा विश्लेषक पॉल डी मिलर कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि पंजशीर तालिबान को पंजशीर घाटी के बाहर किसी तरह की कोई चुनौती दे पाएगा, बहुत हद तक वह सिर्फ अपनी ऑटोनॉमी बरकरार रख सकता है।

अमरुल्ला सालेह ने तालिबान के खिलाफ बन रहे गुट की मदद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है, लेकिन मिलर कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता है कि पंजशीर को कोई मदद मिल पाएगी। यदि पंजशीर के लोग विरोध बरकरार रख पाते हैं, तो हो सकता है उन्हें कम दर्जे का अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल जाए ताकि अफगानिस्तान में अल-कायदा और दूसरे आतंकवादी समूहों पर नजर रखी जा सके। कोई खास अंतरराष्ट्रीय समर्थन उन्हें मिलेगा, इस पर मुझे शक है।’

अब ज्यादातर देश तालिबान के साथ हैं

वहीं जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में सिक्योरिटी स्टडीज की प्रोफेसर क्रिस्टीन फेयर कहती हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि पंजशीर तालिबान का मुकाबला कर सकता है। इस समय तालिबान के पास भारी अमेरिकी हथियार हैं। जिनमें ब्लैकहॉक हेलिकॉप्टर भी शामिल हैं। यही नहीं पाकिस्तानी भी निश्चित तौर पर तालिबान की मदद करेंगे।’

ये अफगान सेना के लोग हैं जो हाल ही में पंजशीर पहुंचे थे। पंजशीर के लड़ाकों ने अब तक तालिबान के सामने सरेंडर नहीं किया है।

क्रिस्टीन फेयर कहती हैं कि पंजशीर टिका रहा, क्योंकि उसे बहुत हद तक भारत, ईरान, तजाकिस्तान और कुछ मौकों पर अमेरिका का समर्थन प्राप्त था, लेकिन अब अफगानिस्तान के तालिबान के कब्जे में आ जाने के बाद हालात बहुत हद तक बदल गए हैं। अब चीन और रूस जैसे देश तालिबान के साथ हैं।

क्रिस्टीन कहती हैं, ‘अब रूस तालिबान की मदद कर रहा है। मुझे शक है कि तजाकिस्तान अब इस खेल का हिस्सा होना चाहेगा। बिना तजाकिस्तान के भारत मदद कैसे पहुंचाएगा? भारत तजाकिस्तान के जरिए अफगान सेना को मदद पहुंचा रहा था, लेकिन अब मुझे इस पर शक है।’

उधर, अहमद मसूद ने कहा है कि पंजशीर के लड़ाके अंतिम सांस तक लड़ेंगे, लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि पंजशीर को तालिबान पर किसी भी तरह की बढ़त हासिल नहीं है। हालांकि यहां की आबादी अहमद शाह मसूद के साथ है। अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्सों ने बिना लड़े तालिबान के सामने समर्पण कर दिया, लेकिन पंजशीर डटा हुआ है। इसकी वजह बताते हुए क्रिस्टीन कहती हैं, ‘पंजशीर के लोग अपनी जमीन के लिए लड़ने के लिए तैयार हैं।’

सरकार में हिस्सा चाहते हैं अहमद मसूद

विश्लेषक मानते हैं कि पंजशीर तालिबान के खिलाफ विद्रोह का कोई बड़ा केंद्र या गढ़ नहीं बन पाएगा। इसकी वजह बताते हुए क्रिस्टीन कहती हैं, ‘अब पंजशीर के बाहर कोई विरोध बचा ही नहीं हैं। ऐसी कोई ताकत अब अफगानिस्तान में नहीं है जो तालिबान के खिलाफ पंजशीर के समर्थन में आ सके।’ इसी बीच तालिबान के एक दल ने शुक्रवार को पंजशीर में प्रतिनिधियों से मुलाकात की। पंजशीर से जुड़े कुछ सूत्रों का दावा है कि स्थानीय बुजुर्गों ने खून खराबा रोकने के लिए अमरुल्ला सालेह से कहा है कि वे घाटी छोड़कर चले जाएं।

ये तस्वीर पंजशीर के लड़ाकों की है, जब उन्होंने पुल-ए-हिसार को तालिबान के कब्जे से छुड़ाया।

अहमद मसूद तालिबान से तालिबान सरकार में शामिल होने के लिए वार्ता तो कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने हथियार नहीं डाले हैं। पंजशीर पर नजर रख रहे एक सुरक्षा विश्लेषक के मुताबिक मसूद सरकार में बड़ा हिस्सा चाहते हैं। सूत्रों के मुताबिक अहमद मसूद ने पिछले कुछ महीनों से हथियार-बारूद इकट्ठा किया है और नए लड़ाके भी तैयार किए हैं। यदि तालिबान और पंजशीर के लड़ाकों में जंग छिड़ती है तो खून बहना तय है।

इस बीच शुक्रवार के घटनाक्रम ने तनाव को और बढ़ा दिया है। पंजशीर समर्थक लड़ाकों ने तालिबान पर हमले करके तीन पड़ोसी जिलों को छुड़ा लिया है। इस लड़ाई में एक दर्जन से अधिक तालिबान लड़ाके मारे गए और कुछ कब्जे में भी आ गए। अफगानिस्तान में जीत का जश्न मना रहे तालिबान लड़ाकों तक जब ये खबर पहुंची तो उनमें आक्रोश बढ़ गया। कुछ तालिबान सूत्रों ने भास्कर से कहा है कि तालिबान लड़ाकों का एक वर्ग बहुत गुस्से में है और वह बदला लेना चाहता है।

उधर, तालिबान नेता खलील हक्कानी ने दावा किया है कि अहमद मसूद ने तालिबान का समर्थन कर दिया है। उन्होंने अहमद शाह मसूद को शहीद भी कहा। हालांकि बाद में तालिबान ने इसका खंडन कर दिया। अहमद मसूद कहते रहे हैं कि यदि कोई अफगानिस्तान पर ताकत के दम पर कब्जा करता है तो पंजशीर उसके खिलाफ खड़ा होगा। अब सवाल ये है कि पंजशीर खड़ा तो हो गया है, लेकिन देखना यही है कि वह तालिबान के सामने कितनी देर तक टिक पाता है?

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