सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा घर खरीद पर पूरे देश में हो एक जैसा एग्रीमेंट? जानें इससे आपको क्या फायदा होगा

इसी हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीद पर पूरे देश में एक जैसे एग्रीमेंट को लेकर केंद्र को नोटिस जारी किया। वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने पिछले साल यह याचिका लगाई थी। याचिका में मकान खरीदने और बेचने वालों के लिए पूरे देश में एक मॉडल बिल्डर-बायर एग्रीमेंट लागू करने की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि बिल्डर फ्लैट बेचते समय अपने फायदे का एग्रीमेंट बनवाते हैं। कई पन्नों के एग्रीमेंट को पढ़ना और समझना खरीदार के लिए संभव नहीं होता है। इसका नुकसान फ्लैट खरीदारों को होता है। इसके साथ ही खरीदार को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक परेशानियों से बचाने के लिए भी कदम उठाने की मांग याचिका में की गई है।

याचिकाकर्ता की मांग क्या है? पूरे देश में एक जैसे मॉडल की जरूरत क्या है? राज्यों के एग्रीमेंट में कितना अंतर? एग्रीमेंट में किस-किस तरह की गड़बड़ियां होती हैं? एग्रीमेंट का एक मॉडल बनने से कैसे फायदा होगा? और ये कैसा होना चाहिए? इन सभी सवालों पर हमने याचिका लगाने वाले सीनियर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय से बात की… आइए उन्हीं से समझते हैं

इस मामले में कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि खरीदारों की प्रोटेक्शन एक अहम मुद्दा है, जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। देश में घर खरीदने को लेकर कोई समानता नहीं है। हमें समानता लानी होगी। बिल्डर किसी भी क्लॉज में कुछ भी डाल सकता है। हमने हाल ही में एक मामले की सुनवाई की जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार ने RERA जैसा ही कानून बनाया और कहा कि इसमें कोई विरोधाभास नहीं है। हमने इसे रद्द किया। कोर्ट के मुताबिक इस तरह का मॉडल एग्रीमेंट घर या फ्लैट खरीदने वालों को बिल्डर के शोषण से बचाएगा।

इससे पहले फरवरी में इसी तरह की एक याचिका की सुनवाई के लिए पूर्व चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच राजी हुई थी। उस वक्त कोर्ट ने कहा था कि 20 राज्यों में करार की शर्तें अलग-अलग हैं। हमें देखना होगा कि केंद्र सरकार कोई मॉडल बना सकती है या नहीं?

याचिकाकर्ता की मांग क्या है?
2016 में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (RERA) आया जिससे बिल्डरों की मनमानी को रोका जा सके। लेकिन रेरा का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया। राज्यों ने रेरा के तहत कोई एग्रीमेंट नहीं बनाया। जो बिल्डरों ने एग्रीमेंट दिए उसे ही रेरा ने लागू कर दिया। ऐसे में एग्रीमेंट बिल्डरों के मुताबिक बने।

याचिका में मांग की गई है कि इस सेक्टर में पारदर्शिता लाने के लिए कोर्ट निर्देश दे। इसके लिए एक समान बिल्डर-बायर एग्रीमेंट और एजेंट-बायर एग्रीमेंट बनाया जाए। इससे खरीदारों के साथ धोखाधड़ी के मामले कम हों साथ ही बिल्डर और प्रमोटर्स की मनमानी पर रोक लग सके।

पूरे देश में एक जैसे मॉडल की जरूरत क्या है?
हर राज्य में करार की शर्तें अलग-अलग हैं। कहीं 20 पेज का तो कहीं 12 पेज का एग्रीमेंट बनता है। यह अभी बहुत जटिल होता है, जिसे पूरा पढ़ने के बावजूद उसके कानूनी पेंच समझना आम लोगों के लिए लगभग नामुमकिन है। इसी का फायदा उठाकर कुछ बिल्डर एग्रीमेंट में मनमानी शर्तें जोड़ देते हैं, जिसके असल मायने खरीदार को बाद में पता चलते हैं। एग्रीमेंट सिर्फ 2 पेज का भी हो सकता है। अंग्रेजी के बजाय स्थानीय भाषा में हो तो ठीक रहेगा।

हर राज्य के लिहाज से देखें तो अलग-अलग राज्य में इनमें बहुत ज्यादा अंतर आ जाता है। राज्यों ने अपने-अपने नियम बना रखे हैं। हमारे पास लगातार ऐसे केस आ रहे हैं कि बिल्डर की मनमानी के आगे खरीदार बेबस हैं। कोर्ट में पता चलता है कि एग्रीमेंट ही बहुत जटिल बना है।

किस-किस तरह की गड़बड़ियां हैं?
उदाहरण के लिए ज्यादातर राज्यों में बिल्डर एग्रीमेंट में यह शर्त भी जुड़वा देते हैं कि अगर फ्लैट की किस्त का चेक बाउंस हुआ तो खरीदार को 12% से 18% तक ब्याज हर्जाने के रूप में देना होगा। जबकि, इस बात का जिक्र कहीं नहीं होता कि अगर पजेशन 3 की बजाय 5 साल में दिया तो बिल्डर को भी खरीदार से वसूली रकम पर इतना ही ब्याज देना होगा। ऐसे ही बिल्डर कभी ये नहीं बताता कि वो जो घर बनाएगा उसमें किस तरह की सीमेंट, सरिया, ईंट का इस्तेमाल होगा। सीमेंट-बालू का रेश्यो क्या होगा।

एक जैसे एग्रीमेंट में क्या होना चाहिए?
अभी समय पर फ्लैट या घर का पजेशन नहीं देने पर बिल्डर पर कार्रवाई या जुर्माने का कोई कड़ा प्रावधान नहीं है। अगर किसी बिल्डर ने इटालियन टाइल्स, स्विमिंग पूल इत्यादि का जिक्र किया है और उसे वो पूरा नहीं करता तो उस पर कार्रवाई का नियम एग्रीमेंट में दर्ज नहीं होता। ऐसी कई बातें हैं, जो एग्रीमेंट में जोड़नी जरूरी हैं।

एक मॉडल से कैसे फायदा होगा?
अगर खरीदार भुगतान में देरी करता है या बिल्डर समय पर पजेशन नहीं देता तो दोनों ही पक्षों पर एक बराबर जुर्माना लगना चाहिए। बिल्डर हवा-हवाई वादे नहीं कर पाएंगे। उदाहरण के तौर पर कई बिल्डर फ्लैट में फाइव स्टार सुविधाएं देने की बात करते हैं, लेकिन ऐसा होता कुछ नहीं। मॉडल एग्रीमेंट होने पर इस तरह के परेशानियां नहीं होंगी। दोनों पक्षों के लिए समान नियम होंगे।

एक समान मॉडल कैसे बन सकता है?
नया खाका केंद्र सरकार को तय करना चाहिए, तभी यह राज्यों में एक साथ लागू हो सकेगा। यह कम से कम पेज में और स्थानीय भाषा में होना चाहिए। इसलिए हमने अपनी याचिका में केंद्र के साथ ही सभी राज्यों को भी पार्टी बनाया है।

खबरें और भी हैं…

Related Articles

Back to top button